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भारत में पहली बार अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम आयोजित, वैज्ञानिकों ने दी फॉसिल एलगी पर जानकारी - फॉसिल एलगी पर 12वां अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम आयोजित

राजधानी लखनऊ के बीरबल साहनी पुरा-वनस्पति विज्ञान संस्थान में 12वां अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में देश-विदेश से आए शैवाल विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने भाग लिया. वैज्ञानिकों ने कार्यक्रम में मौजूद छात्र-छात्रों को फॉसिल एलगी पर कई तरह की जानकारी प्रदान की.

अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम कार्यक्रम का आयोजन.
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Published : Sep 18, 2019, 1:34 PM IST

लखनऊः राजधानी स्थित बीरबल साहनी पुरा-वनस्पति विज्ञान संस्थान में जीवाश्म शैवाल यानी फॉसिल एलगी पर 12वां अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम आयोजित किया गया. अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम तीन दिन तक चलेगा. इस आयोजन में भारत समेत देश-विदेश से भी शैवाल विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने भाग लिया और फॉसिल एलगी पर कई तरह की जानकारियां साझा की.

अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम कार्यक्रम का आयोजन.
इसे भी पढ़ें:- बहराइच: मानव तस्करी पर अकुंश लगाने के लिए आयोजित की गई कॉन्फ्रेंस

फॉसिल एलगी पर 12वां अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम आयोजित
बीरबल साहनी पुरा-वनस्पति विज्ञान संस्थान में जीवाश्म शैवाल यानी फॉसिल एलगी पर अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर पुरा जीव विज्ञान प्रोफेसर अशोक साहनी उपस्थित रहे. साथ ही विशिष्ट अतिथि की भूमिका में इटली की प्रोफेसर डेनियला मारिया बासो ने भी व्याख्यान दिया.

पहली बार भारत में आयोजित किया गया अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम
सीनियर साइंटिस्ट डॉ. अमित घोष ने बताया कि यह सिंपोजियम हर चार साल पर आयोजित किया जाता है. इसके पहले यह दुनिया भर के कई देशों जैसे फ्रांस, जर्मनी, इटली, चाइना, जापान आदि में आयोजित किया जा चुका है. यह पहली बार है कि कार्यक्रम भारत में आयोजित किया जा रहा है. हिंदुस्तान के विभिन्न संस्थानों के वैज्ञानिकों और राजधानी के युवा वैज्ञानिकों के लिए यह एक बहुत अच्छा मौका है कि वह इस इंटरनेशनल प्लेटफार्म पर अपने रिसर्च को बेहतरीन ढंग से पेश कर सकें.

जीव विज्ञान प्रोफेसर अशोक साहनी ने बताई एलगी पौधे की खास बात
जीव विज्ञान प्रोफेसर अशोक साहनी ने बताया कि एलगी एक ऐसा पौधा हैं, जो 200 करोड़ वर्ष पहले भी थे और आज भी जिंदा हैं. यह इस बात का प्रतीक है कि यदि आप साधारण और श्रेष्ठ हैं तो आप दुनिया में काफी अधिक सरवाइव कर सकते हैं. पृथ्वी पर कई कैटास्ट्रोफे आई अर्थात कई ऐसे काल आए, जिसमें तमाम प्रजातियां और जीव जंतु नष्ट हो गए, लेकिन इन सभी के बीच यह एलगी हमेशा से बचा रहा. इसका महत्व यह है कि जो हम ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं, इसके लिए सायनोबैक्टीरिया और एलगी का योगदान सबसे अधिक है, क्योंकि जब पृथ्वी पर ऑक्सीजन खत्म हो गई थी, तब एलगी के द्वारा ही ऑक्सीजन दोबारा पृथ्वी पर आई थी.

लखनऊः राजधानी स्थित बीरबल साहनी पुरा-वनस्पति विज्ञान संस्थान में जीवाश्म शैवाल यानी फॉसिल एलगी पर 12वां अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम आयोजित किया गया. अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम तीन दिन तक चलेगा. इस आयोजन में भारत समेत देश-विदेश से भी शैवाल विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने भाग लिया और फॉसिल एलगी पर कई तरह की जानकारियां साझा की.

अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम कार्यक्रम का आयोजन.
इसे भी पढ़ें:- बहराइच: मानव तस्करी पर अकुंश लगाने के लिए आयोजित की गई कॉन्फ्रेंस

फॉसिल एलगी पर 12वां अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम आयोजित
बीरबल साहनी पुरा-वनस्पति विज्ञान संस्थान में जीवाश्म शैवाल यानी फॉसिल एलगी पर अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर पुरा जीव विज्ञान प्रोफेसर अशोक साहनी उपस्थित रहे. साथ ही विशिष्ट अतिथि की भूमिका में इटली की प्रोफेसर डेनियला मारिया बासो ने भी व्याख्यान दिया.

पहली बार भारत में आयोजित किया गया अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम
सीनियर साइंटिस्ट डॉ. अमित घोष ने बताया कि यह सिंपोजियम हर चार साल पर आयोजित किया जाता है. इसके पहले यह दुनिया भर के कई देशों जैसे फ्रांस, जर्मनी, इटली, चाइना, जापान आदि में आयोजित किया जा चुका है. यह पहली बार है कि कार्यक्रम भारत में आयोजित किया जा रहा है. हिंदुस्तान के विभिन्न संस्थानों के वैज्ञानिकों और राजधानी के युवा वैज्ञानिकों के लिए यह एक बहुत अच्छा मौका है कि वह इस इंटरनेशनल प्लेटफार्म पर अपने रिसर्च को बेहतरीन ढंग से पेश कर सकें.

जीव विज्ञान प्रोफेसर अशोक साहनी ने बताई एलगी पौधे की खास बात
जीव विज्ञान प्रोफेसर अशोक साहनी ने बताया कि एलगी एक ऐसा पौधा हैं, जो 200 करोड़ वर्ष पहले भी थे और आज भी जिंदा हैं. यह इस बात का प्रतीक है कि यदि आप साधारण और श्रेष्ठ हैं तो आप दुनिया में काफी अधिक सरवाइव कर सकते हैं. पृथ्वी पर कई कैटास्ट्रोफे आई अर्थात कई ऐसे काल आए, जिसमें तमाम प्रजातियां और जीव जंतु नष्ट हो गए, लेकिन इन सभी के बीच यह एलगी हमेशा से बचा रहा. इसका महत्व यह है कि जो हम ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं, इसके लिए सायनोबैक्टीरिया और एलगी का योगदान सबसे अधिक है, क्योंकि जब पृथ्वी पर ऑक्सीजन खत्म हो गई थी, तब एलगी के द्वारा ही ऑक्सीजन दोबारा पृथ्वी पर आई थी.

Intro:लखनऊ। राजधानी स्थित बीरबल साहनी पुरा विज्ञान संस्थान में जीवाश्म शैवाल यानी फॉसिल एलगी पर 12वां अंतर्राष्ट्रीय सिंपोजियम आयोजित किया गया है। यह आयोजन 3 दिन तक चलेगा। इस आयोजन में भारत समेत देश विदेशों से भी शैवाल विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने प्रतिभाग किया है और फॉसिल एलगी पर कई तरह की जानकारियां साझा कर रहे हैं।


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बीएसआईपी में आयोजित हुए 12 में अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम में मुख्य अतिथि के तौर पर पुरा जीव विज्ञानी प्रोफेसर अशोक साहनी उपस्थित रहे साथ ही विशिष्ट अतिथि की भूमिका में इटली की प्रोफेसर डेनियला मारिया बासो ने भी व्याख्यान दिया।

इस आयोजन के ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेट्री और बीरबल साहनी पुरा विज्ञान संस्थान के सीनियर साइंटिस्ट डॉ अमित घोष ने बताया कि यह सिंपोजियम हर 4 साल पर आयोजित किया जाता है। इसके पहले यह दुनिया भर के कई देशों जैसे फ्रांस, जर्मनी, इटली, चाइना, जापान आदि में आयोजित किया जा चुका है। यह पहला मौका है कि भारत में यह आयोजित किया जा रहा है। लखनऊ के लिए यह गर्व का विषय है कि बीरबल साहनी पुरा विज्ञान संस्थान में इस सिंपोजियम को आयोजित किया गया है।

डॉ घोष ने बताया कि हिंदुस्तान के विभिन्न संस्थानों के वैज्ञानिकों और लखनऊ के युवा वैज्ञानिकों के लिए यह एक बहुत अच्छा मौका है कि वह इस इंटरनेशनल प्लेटफार्म पर अपने रिसर्च को बेहतरीन ढंग से पेश कर सकें और अपनी बात बखूबी रख सकें।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप भूमिका में उपस्थित पुरा जीव विज्ञानी प्रोफेसर अशोक साहनी ने बताया कि एलगी एक ऐसे पौधे हैं जो 200 करोड़ों वर्ष पहले भी थे और आज भी जिंदा है। यह इस बात का प्रतीक है यदि आप साधारण और श्रेष्ठ हैं तो आप दुनिया में काफी अधिक सरवाइव कर सकते हैं। प्रो साहनी कहते हैं कि पृथ्वी पर कई कैटास्ट्रोफे आई अर्थात कई ऐसे काल आए जिसमें तमाम प्रजातियां और जीव जंतु नष्ट हो गए, लेकिन इन सभी के बीच यह एलगी हमेशा से बचे रह गए और अभी तक मिल रहे हैं। इसका महत्व यह है कि जो हम ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं इसके लिए सायनोबैक्टीरिया और एलगी का योगदान सबसे अधिक है क्योंकि जब पृथ्वी पर ऑक्सीजन खत्म हो गया था, तब एलगी के द्वारा ही ऑक्सीजन दोबारा पृथ्वी पर आई थी। हम और आप अब तक इसलिए जिंदा है क्योंकि हम ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं।


Conclusion:प्रो साहनी ने बताया कि एलगी और जीवाश्म शैवाल पर रिसर्च हो रहे हैं। यह अच्छी बात है यह शैवाल मरीन लाइफ के लिए भी बहुत इंपॉर्टेंट होते हैं और यह पर्यावरण को शुद्ध करने में काफी सहायक होते हैं।

बाइट- डॉ अमित घोष, सीनियर साइंटिस्ट बीएसआईपी
बाइट- प्रो अशोक साहनी, पुरा जीव विज्ञानी


रामांशी मिश्रा
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