लखनऊः राजधानी स्थित बीरबल साहनी पुरा-वनस्पति विज्ञान संस्थान में जीवाश्म शैवाल यानी फॉसिल एलगी पर 12वां अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम आयोजित किया गया. अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम तीन दिन तक चलेगा. इस आयोजन में भारत समेत देश-विदेश से भी शैवाल विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने भाग लिया और फॉसिल एलगी पर कई तरह की जानकारियां साझा की.
फॉसिल एलगी पर 12वां अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम आयोजित
बीरबल साहनी पुरा-वनस्पति विज्ञान संस्थान में जीवाश्म शैवाल यानी फॉसिल एलगी पर अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर पुरा जीव विज्ञान प्रोफेसर अशोक साहनी उपस्थित रहे. साथ ही विशिष्ट अतिथि की भूमिका में इटली की प्रोफेसर डेनियला मारिया बासो ने भी व्याख्यान दिया.
पहली बार भारत में आयोजित किया गया अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम
सीनियर साइंटिस्ट डॉ. अमित घोष ने बताया कि यह सिंपोजियम हर चार साल पर आयोजित किया जाता है. इसके पहले यह दुनिया भर के कई देशों जैसे फ्रांस, जर्मनी, इटली, चाइना, जापान आदि में आयोजित किया जा चुका है. यह पहली बार है कि कार्यक्रम भारत में आयोजित किया जा रहा है. हिंदुस्तान के विभिन्न संस्थानों के वैज्ञानिकों और राजधानी के युवा वैज्ञानिकों के लिए यह एक बहुत अच्छा मौका है कि वह इस इंटरनेशनल प्लेटफार्म पर अपने रिसर्च को बेहतरीन ढंग से पेश कर सकें.
जीव विज्ञान प्रोफेसर अशोक साहनी ने बताई एलगी पौधे की खास बात
जीव विज्ञान प्रोफेसर अशोक साहनी ने बताया कि एलगी एक ऐसा पौधा हैं, जो 200 करोड़ वर्ष पहले भी थे और आज भी जिंदा हैं. यह इस बात का प्रतीक है कि यदि आप साधारण और श्रेष्ठ हैं तो आप दुनिया में काफी अधिक सरवाइव कर सकते हैं. पृथ्वी पर कई कैटास्ट्रोफे आई अर्थात कई ऐसे काल आए, जिसमें तमाम प्रजातियां और जीव जंतु नष्ट हो गए, लेकिन इन सभी के बीच यह एलगी हमेशा से बचा रहा. इसका महत्व यह है कि जो हम ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं, इसके लिए सायनोबैक्टीरिया और एलगी का योगदान सबसे अधिक है, क्योंकि जब पृथ्वी पर ऑक्सीजन खत्म हो गई थी, तब एलगी के द्वारा ही ऑक्सीजन दोबारा पृथ्वी पर आई थी.