लखनऊ. लखनऊ विश्वविद्यालय में सोमवार को प्लाज्मा साइंस और इसके आयामों पर चर्चा के लिए 12वीं अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया. यह तीन दिवसीय कॉन्फ्रेंस 13 नवंबर तक चलेगा. आयोजन के आयोजक प्रो. पुनीत कुमार ने बताया कि यह आयोजन पहली बार भारत में हो रहा है. इसमें दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया है. इस कॉन्फ्रेंस की थीम 'मानवता के हित में प्लाज्मा साइंस का योगदान' रखा गया है.
प्रो. पुनीत कुमार ने बताया कि प्लाज्मा साइंस हमारे जीवन का काफी गहरा हिस्सा बनता जा रहा है. विज्ञान में तमाम ऐसे शोध होते रहते हैं, जो हमारे आम जीवन को सरल बनाने के काम आते हैं. विज्ञान में हर दिन, हर पल नए-नए रिसर्च होते रहते हैं और उन पर तमाम चर्चाएं भी होती हैं. ऐसे में भारत में पहली बार प्लाज्मा साइंस और उसके विभिन्न आयामों पर एक अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया.
गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी अमृतसर, पंजाब से आई रिसर्च स्कॉलर सुनिधि ने बताया कि प्लाज्मा साइंस सिर्फ धरती पर ही नहीं, बल्कि सौरमंडल में भी अपना काम कर रहा है. इस पर हम रिसर्च कर रहे हैं. यहां पोस्टर प्रेजेंटेशन में भाग लेने आई हूं. इसमें हमें बताया गया कि गैलेक्सी में जब किसी भी तरह का सॉलिटन किसी दूसरे सॉलिटन से टकराता है तो उसकी एनर्जी में तो चेंज आता है, लेकिन स्ट्रक्चर में कोई चेंज नहीं आता. ऐसे ही कई तरह के पहलू हमने अपने पोस्टर में दिखाने की कोशिश की है.
इस मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में उत्तर प्रदेश के विधि एवं न्याय मंत्री बृजेश पाठक, विशिष्ट अतिथि के रूप में एकेटीयू के कुलपति प्रो. विनय पाठक और सिक्किम सेंट्रल यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. अविनाश खरे मौजूद रहे. इनके अलावा रशिया से आए प्रो. ए वी किम और यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के प्रो. एट ऑस्टिन, यूएसए से आए प्रो. स्वदेश महाजन आदि उपस्थित रहे.
प्लाज्मा रिसर्च के तमाम आयाम हैं, जो हमारे आसपास मौजूद हैं. जिन पर दिन प्रतिदिन हम काम भी करते आ रहे हैं. टीवी. कम्प्यूटर और मोबाइल फोन में प्लाज्मा इस्तेमाल होने के बाद अब प्लाज्मा के मेडिसिनल वैल्यू भी सामने आ रही हैं. कृषि में भी इसके इस्तेमाल पर बात की जा रही है. खेती में प्लाज्मा के इस्तेमाल से कीटनाशकों और कृमिनाशकों के उपयोग में कमी की जा रही है, ताकि मानव शरीर पर इसका नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सके. इन्हीं आयामों पर हम चर्चा कर रहे हैं, जो हमारे लिए बेहद जरूरी है.
-सर्वेश्वर शर्मा, साइंटिस्ट, इंस्टीट्यूट फॉर प्लाज्मा रिसर्च