लखनऊ: संविधान दिवस के अवसर पर ईटीवी भारत के साथ लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व शिक्षक और संविधान विशेषज्ञ प्रोफेसर रमेश दीक्षित ने बातचीत की. इस दौरान उन्होंने संविधान निर्माण में योगदान देने वाली शख्सियतों के बारे में बताया. साथ ही संविधान कैसे देश के प्रत्येक नागरिक की रक्षा करता है और लोगों को बराबरी का अधिकार देता है, ऐसी तमाम जानकारियां उन्होंने साझा कीं.
26 नवंबर 1949 को संविधान निर्माताओं ने संविधान को संविधान सभा में प्रस्तुत किया था, जिसे संविधान सभा ने स्वीकार कर लिया था. उसके दो महीने बाद 26 जनवरी 1950 को यह संविधान अमल में लाया गया.
डेढ़ सौ साल का संघर्ष है संविधान
प्रोफेसर रमेश दीक्षित बताते हैं कि भारतीय संविधान लंबे संघर्षों का परिणाम है. अचानक नहीं कि कुछ लोग बैठे और इस प्रकार का दस्तावेज तैयार कर दिया. संविधान डेढ़ सौ साल का संघर्ष है. उन्होंने आगे बताया कि 1857 में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ आजादी के लिए बिगुल शुरू हुआ और इसके बाद कैबिनेट मिशन ने संविधान सभा बनाना तय किया. 1946 में संविधान सभा के चुनाव संपन्न हुए. पिछड़े हुए देश में एक आधुनिक नियमों का दस्तावेज तैयार करना एक बड़ा काम था. यह केवल दस्तावेज नहीं बल्कि एक तरह की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक क्रांति थी.
सबको दिया बराबरी का अधिकार
प्रोफेसर रमेश दीक्षित कहते हैं कि दुनिया का कोई भी संविधान इस तरह से सामाजिक क्रांति का वाहक नहीं बना है. एक झटके में भारतीय संविधान ने औरतों को बराबरी दी. अमेरिका और ब्रिटेन में लंबा समय लग गया. यूरोप के तमाम देशों ने स्त्रियों को मताधिकार देने में बड़ी कंजूसी की, पर हमारे संविधान के निर्माताओं ने जिस दिन संविधान बनाया, उस दिन सबको बराबरी का अधिकार दिया. ये अधिकार देकर यह साबित कर दिया कि संविधान निश्चित तौर पर सभी का है. न कोई बड़ा है न कोई छोटा. यह संविधान की बड़ी बात है.
संविधान ने देश को दी आदर्श व्यवस्था
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में साफ कर दिया गया है कि हमारे संविधान में क्या-क्या है. न्याय, बराबरी, बंधुत्व, आजादी समेत तमाम चीजें और व्यक्ति की गरिमा, जो सबसे बड़ी चीज है, इसे संविधान की प्रस्तावना में ही लिख दिया गया है. संविधान ने देश में तमाम बुरी चीजों को बदलते हुए एक आदर्श व्यवस्था कायम की है. संविधान के दस्तावेजों को सभी को पढ़ना चाहिए.
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सभा में अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ हुए शामिल
प्रोफेस रमेश दीक्षित ने बताया कि संविधान सभा के लिए महात्मा गांधी ने कांग्रेस के चार दिग्गज नेताओं डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सरदार पटेल, मौलाना आजाद और नेहरू से कहा कि जिनका देश के हित में बड़ा योगदान है. उन सभी को सभा से जोड़ा जाए. इस प्रक्रिया में कांग्रेस पार्टी ने ऐसे तमाम लोगों को संविधान सभा में आने का मौका दिया, जो कांग्रेस पार्टी के मेंबर नहीं थे. कांग्रेस पार्टी ने उदार मन दिखाते हुए तमाम लोगों को जोड़ा.
तीन तरह के लोग नहीं हुए थे शामिल
तीन तरह के लोग संगठन के स्तर पर संविधान सभा में शामिल नहीं हुए थे. कम्युनिस्टों ने कहा था कि हम संविधान सभा में शामिल नहीं होंगे. उनका विरोध था कि ये अधिकार उनके पास नहीं है. हिंदू महासभा ने भी संगठन के स्तर पर संविधान सभा में शामिल न होने का फैसला किया था. समाजवादी आचार्य नरेंद्र देव, जय प्रकाश नारायण, डॉक्टर लोहिया जैसे लोग संविधान सभा में शामिल होने से इंकार कर दिया था. मगर समाजवादी सोच के बहुत सारे लोग जो कांग्रेस में थे वह शामिल हुए. कुल मिलाकर 93 लोग रजवाड़ों के थे. 296 लोग विधानसभा के सदस्य थे. देखने वाली बात यह थी कि संविधान सभा में किसी भी वर्ग, क्षेत्र, समुदाय, धर्म के लोगों को छोड़ा नहीं गया. सारे लोगों को इसमें शामिल किया गया.
सर्व समावेशी सभा थी संविधान सभा
डॉ. दीक्षित कहते हैं कि सबसे बड़ी बात गौर करने वाली यह है कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी हिंदू महासभा के उपाध्यक्ष थे. उन्हें भारत सरकार ने 15 अगस्त 1947 में मंत्री बनाया था. मंत्री होने की हैसियत से उनको संविधान सभा में रखा गया. वह कांग्रेस कोटे से थे. भारतीय संविधान सभा एक सर्व समावेशी सभा थी. जिसमें हिंदुस्तान की सार्वजनिक जिंदगी के जितनी भी विचारधाराएं थी, जितनी भी चिंतन धाराएं थी, जितने भी वर्ग थे, सबका संविधान में प्रतिनिधित्व किया गया. ताकि जो लोग उसमें शामिल हैं, देश के बारे में अच्छा फैसला कर सकें.
संविधान सभा में 15 महिलाएं हुईं शामिल
जिस समय भारत का संविधान बना, उस समय बहुत सारे देशों के संविधान बने, लेकिन उनकी धज्जियां उड़ गईं. वह इतने लंबे समय तक नहीं चल पाए. वहीं, भारत का संविधान आज भी अस्तित्व में है, क्योंकि उसने सबकी चिंता की. इसमें बदलाव और संशोधन की गुंजाइश छोड़ी गई है. संशोधन किया भी गया है. यह महत्वपूर्ण बात है. संडीला की बेगम एजाज रसूल भी संविधान सभा की सदस्य थीं. संविधान सभा में केवल 15 महिलाएं थी.
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संविधान से आई सामाजिक क्रांति
दुनिया में किसी संविधान ने सामाजिक क्रांति लाने का काम नहीं किया है. संविधान का तीसरा अध्याय मूलभूत अधिकारों का है, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 12 से 35 तक सारे अधिकार दिए गए हैं. आजादी का अधिकार, समानता का अधिकार, शोषण के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने का अधिकार, अगर हमारे खिलाफ राज्य कुछ कर रहा है, समाज कुछ कर रहा है तो न्यायालय के पास जाने का अधिकार, इस संविधान में दिया गया है.
अंबेडकर की भूमिका पर उठते सवाल
अक्सर लोग कह देते हैं कि संविधान बनाने में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का कितना योगदान रहा होगा. अरुण शौरी अपनी किताब में लिखते हैं कि अंबेडकर का ज्यादा योगदान नहीं था, लेकिन मैं आज सदस्य के तौर पर कह रहा हूं कि ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्य टीटी कृष्णमाचारी का कहना था कि संविधान को ड्राफ्ट करने में सारा परिश्रम भीमराव अंबेडकर का था. इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है. संविधान सभा में बहस के दौरान जो भी सवाल उठते थे, उसका समाधान करने की जिम्मेदारी दो लोगों पर आती थी. एक तो जवाहरलाल नेहरू और दूसरे बाबा साहब भीमराव अंबेडकर पर. यही जाहिर करता है कि भारतीय संविधान में बाबा साहेब अंबेडकर और जवाहरलाल नेहरू के ज्यादा प्रयासों की जुगलबंदी दिखाई पड़ती है. बाकी सब का योगदान रहा है.
महत्वपूर्ण दस्तावेज है संविधान
अल्पसंख्यक कमेटी में सरदार पटेल थे. इस कमेटी ने अल्पसंख्यकों के अधिकार को अद्भुत तरीके से संरक्षित और वर्णित किया है. भारतीय बहुलता एवं विविधता की एक बानगी है. अगर आज देश दुनिया के ताकतवर देशों के सामने बराबरी के साथ खड़ा हुआ है. तो उसका बहुत बड़ा योगदान हमारे संविधान का है. इसलिए यह संविधान हमारे देश का लीगल डॉक्यूमेंट ही नहीं है बल्कि हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक बदलाव का एक बहुत ही महत्वपूर्ण दस्तावेज है.