लखनऊः कृषि कानूनों के विरोध में किसान संगठनों से 5 सितंबर को मुजफ्फरनगर में किसानों की महापंचायत बुलाई है. राजनीति और समाज में महापंचायत अपने आप में काफी मायने रखते हैं. इनमें होने वाले फैसले समाज के बीच के माने जाते हैं. लोग इनका पालन करते हैं. ऐसे में किसान महापंचायत पश्चिमी यूपी में आने वाले समय में कई तरह के सियासी घटनाक्रम को बदलने वाली साबित हो सकती है.
दरअसल, राजनीतिक घटनाक्रम के अंतर्गत सरकार के नए कृषि कानूनों के विरोध में होने वाली किसान महापंचायत अपने आप में बहुत मायने रखती है. अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को सबक सिखाने और कई तरह के बड़े फैसले लेने को लेकर तमाम किसान संगठनों ने यह महापंचायत करने का एलान किया है. तमाम मुद्दों पर पहले भी कई बार महापंचायत आयोजित करने की परंपरा रही है. ईटीवी भारत आपको बताएगा कि महापंचायत क्या है और कैसे समाज के बीच इनकी पकड़ और पहुंच रहती है जिससे इनमें होने वाले फ़ैसलों को समाज के बीच माना जाता है.
एक समाज में रहने वाले लोगों का आपस में सामाजिक संबंधों का जाल होता है
दरअसल, व्यक्ति और व्यक्तियों के बीच पाए जाने वाले संबंध एक समाज का निर्माण करते हैं. इनकी अपनी सामाजिक संबंधों का जाल होता है. देश में संवैधानिक कानूनों के इतर एक समाज के लोग अपनी परंपरा और प्रथा के अनुसार निर्वहन करते हैं. इनके बीच सामाजिक संबंधों के नियंत्रण की व्यवस्था होती है. हर समाज में आपसी विवाद और दूसरी समस्या को निपटाने के लिए पंचायत और महापंचायत होते रहे हैं, जो आज भी कई मायनों में महत्वपूर्ण हैं.
बता दें कि भारत में प्राचीन समय से ही महापंचायत बुलाने की परंपरा रही है. इसमें अलग-अलग जाति, सम्प्रदाय के लोग मिलकर एक साथ एकत्रित होते हैं. जिस विषय पर महापंचायत बुलाई जाती है और उस पर चर्चा करते हुए पंचायत अपना फैसला सुनाती रही है. महापंचायत में जो फैसले होते हैं उसे अमिट मान कर भविष्य में उसपर समाज के लोग अमल करते हैं और उसे एक तरह से नजीर बना देते हैं. महापंचायत में लाखों की संख्या में समाज के विभिन्न वर्ग के लोग शामिल होते हैं और अपनी बात को एक राय बनाकर उसपर फैसला करती है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पंचायत का परंपरा पुरानी
पहले की परंपरा की बात करें तो किसान नेता रहे महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कई बार महापंचायत बुलाई गईं और उनमें जो फैसले हुए वह समाज के बीच माने गए. किसान मुद्दे पर किसान महापंचायत बुलाई गई है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले यह तमाम तरह के सियासी मायने में महत्वपूर्ण होने वाली है.
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं कि यदि राजनीतिक नजरिए से महापंचायतों के फैसलों की बात करें तो यह बात सामने आती है कि महापंचायत एक बहुत बड़े वोट बैंक को प्रभावित करती हैं. जब चुनाव के नजदीक महापंचायत का आयोजन हो और सरकार के फैसले के विरोध में तो यह अपने आप मे बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है. महापंचायत के फैसले एक तरह से एक बहुत बड़े वोट बैंक को प्रभावित करने का काम करती हैं. इनके एक आह्वान पर तमाम बड़े परिणाम जिनमें हार जीत देखने को मिलती है.
महापंचायतों के साथ बहुत बड़ी संख्या में किसान और समाज के अन्य वर्ग के लोग जुड़े होते हैं. इन सबके परिवार और रिश्तेदारों को मिलाकर देखा जाए तो एक ऐसा वर्ग तैयार होता है जो अपने (महापंचायत) नेतृत्व के एक इशारे पर कुछ भी करने के लिए जी जान लगा देता है. ऐसे में अब जब 5 सितंबर को किसानों ने महापंचायत बुलाई है तो कोई बड़ा फैसला होता है यूपी की सियासत को प्रभावित करने वाले भी साबित हो सकते हैं.
ब्रिटिश काल में भी थी महापंचायत की अहमियत
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं कि प्रदेश के अनेक क्षेत्रों में जातिगत पंचायतों का पुराने समय से महत्व रहा है. ब्रिटिश काल में भी इनकी अहमियत थी. इनके माध्यम से अनेक प्रकार की सामाजिक समस्याओं का समाधान किया जाता था. उस समय शासन प्रशासन व पुलिस की भूमिका भी यहां सीमित हुआ करती थी. इस तथ्य से ब्रिटिश शासक भी परिचित थे. आजादी के बाद भी यह व्यवस्था चलती रही.
सामाजिक विवादों के समाधान के साथ ही राजनीतिक विषयों पर भी पंचायत के निर्णय होते रहे हैं. इस समय किसानों के नाम पर चल रहे आंदोलन में भी पश्चिम उत्तर प्रदेश से जुड़ी कतिपय पंचायतों की भूमिका देखी जा रही है, लेकिन अब अनेक सामाजिक विषयों पर युवा वर्ग असहमति भी व्यक्त करने लगा है. समय के साथ पंचायत व्यवस्था में बदलाव हो रहे है.