लखनऊ: ऊर्जा विभाग के करीब 26 सौ करोड़ रुपये के पीएफ घोटाले के पीछे जिन अधिकारियों का नाम एक-एक कर के सामने आ रहा है, उन पर सरकार मजबूती से शिकंजा नहीं कस पा रही है. योगी सरकार ने जिन पांच अधिकारियों पर कार्रवाई की है, उनमें से तीन अधिकारी गैर आईएएस हैं. उन्हें ही सलाखों के पीछे भेजा गया है. जबकि दोनों आईएएस अधिकारी का केवल ट्रांसफर कर दिया गया है.
पीएफ घोटाला उजागर होने के वक्त सरकार ने इसकी जांच सीबीआई से कराने की बात की थी, लेकिन सूत्रों का कहना है कि अभी तक सरकार ने इसे सीबीआई को सुपुर्द नहीं किया है.
सरकार ने की थी सीबीआई जांच की सिफारिश की बात
ऊर्जा विभाग का पीएफ घोटाला उजागर होने के वक्त सरकार बैकफुट पर आ गयी थी. सरकार ने आनन-फानन प्रेस कॉन्फ्रेंस करके दावा किया था कि जल्द ही इस पूरे प्रकरण के आरोपी सामने आ जाएंगे. प्राथमिक स्तर पर इसकी जांच के लिए सरकार ने ईओडब्ल्यू को इसकी जिम्मेदारी सौंपी थी. अभी ईओडब्ल्यू की जांच चल रही है. इसके साथ ही सरकार ने कहा था कि इस पूरे प्रकरण की जांच सीबीआई से कराई जाएगी. लेकिन अभी तक सरकार ने सीबीआई से जांच की सिफारिश ही नहीं की है. इसके बाद सरकार की मंशा पर सवाल खड़े हो रहे हैं.
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सीबीआई जांच में आईएएस अधिकारियों का अड़ंगा
यूपीपीसीएल के पीएफ का पैसा जब डीएचएफएल में निवेश का फैसला हुआ या फिर जब यह घोटाला उजागर हुआ. दोनों ही वक्त के सभी जिम्मेदारों पर कार्रवाई की तलवार लटक रही है. पीएफ के पैसे को दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (डीएचएफएल) में निवेश करने के लिए जिस बैठक में निर्णय लिया गया, उसमें बतौर चेयरमैन संजय अग्रवाल (आईएएस), एमडी एपी मिश्रा, निदेशक वित्त सुधांशु द्विवेदी, निदेशक कार्मिक प्रबंधन एवं प्रशासन स्व.सत्य प्रकाश पाण्डेय और सचिव प्रवीण कुमार गुप्ता शामिल थे.
तत्कालीन एमडी एपी मिश्र को जेल भेज दिया गया. तत्कालीन चेयरमैन आईएएस अफसर संजय अग्रवाल पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है. जब यह घोटाला उजागर हुआ तब एमडी के पद पर तैनात रहीं आईएएस अधिकारी अपर्णा यू और चैयरमैन आईएएस अफसर आलोक कुमार का केवल स्थानांतरण कर दिया गया.
मंत्री श्रीकांत शर्मा मीडिया में दे चुके सफाई
विपक्षी दल कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने इस प्रकरण को लेकर ऊर्जा मंत्री की घेराबंदी की. उन पर भ्रष्टाचार करने के आरोप में इस्तीफा मांगा तो ऊर्जा मंत्री ने अजय कुमार लल्लू द्वारा सार्वजनिक रूप से उनके खिलाफ दिए गए आपत्तिजनक और अमर्यादित बयान देने का हवाला देकर नोटिस दी.
नोटिस में कहा कि उनकी डीएचएफएल या सबलिंक कंपनी को धन हस्तांतरण में कोई भूमिका नहीं रही है. अपनी सफाई के बहाने शर्मा ने दावा किया कि वह सितंबर-अक्टूबर में ही नहीं बल्कि कभी विदेश यात्रा पर नहीं गए. भविष्य निधि का प्रबंधन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है, जिसमें वह किसी पद पर नहीं है और इस कार्य में उनकी कोई भूमिका भी नहीं है.
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सरकारी मामलों के जानकार डॉ पी.एन. द्विवेदी का कहना है सरकार किसी की भी हो आईएएस अफसरों की लॉबी अपने को बहुत ही सशक्त रखती है. सरकार की नीतियां बनाने में इनका अहम योगदान होता है. ऐसे में जब कोई अधिकारी कहीं से भी किसी जांच के दायरे में आता है तो पूरी आईएएस लॉबी उसे बचाने में लग जाती है. जहां तक पावर कॉरपोरेशन के कर्मचारियों के पीएफ घोटाले की बात है, पीएफ के पैसे के निवेश का निर्णय ट्रस्ट लेता है और उस ट्रस्ट का चेयरमैन वही होता है, जो पावर कारपोरेशन का चैयरमैन होता है.