लखनऊ : मुख्यमंत्री योगी 2025 तक उत्तर प्रदेश को एक ट्रिलियन डालर यानी 80 लाख करोड़ रुपये की अर्थव्यवस्था वाला राज्य बनाना चाहते हैं. यह सपना पूरा करने के लिए वह कहते हैं कि राज्य के शहरों को निवेश आकर्षित करते हुए रोजगार सृजन में वृद्धि कर ग्रोथ इंजन के रूप में आगे आने की जरूरत है. निस्संदेह मुख्यमंत्री का सपना शानदार है, लेकिन कोई भी सपना तभी पूरा हो सकता है, जब उसे पूरा करने की दिशा में जरूरी कदम उठाए गए हों. किसी भी देश या राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ आधारभूत ढांचा यानी सड़क, बिजली और पानी होते हैं. बिजली-पानी की स्थिति तो ठीक है, पर राज्य में सड़कों की स्थिति कतई अच्छी नहीं है. सड़कों का उचित रखरखाव न होने की स्थिति में कोई भी निवेशक कभी आकर्षित नहीं होगा.
राज्य सरकार दावा करती (state government claims) है कि उसने यूपी को सबसे अधिक एक्सप्रेस वे (express way) वाला राज्य बना दिया है. यह दावा सही भी है, लेकिन इन एक्सप्रेस वे पर उचित व्यवस्था होनी भी जरूरी है. हाल ही में बनाए गए बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे पर छुट्टा पशुओं के रेले हादसे का कारण बनते हैं. एक्सप्रेस वे बनाते समय ही ऐसे इंतजाम किए जाने चाहिए थे कि वहां कभी छुट्टा पशुओं की आमद न हो सके. पूर्वांचल एक्सप्रेस वे का भी यही हाल है. आगरा एक्सप्रेस वे, जहां यात्रा करने के लिए टोल के लिए मोटी रकम वसूली जाती, पर भी कई जगह गड्ढे भरने के लिए पैचवर्क से काम चलाया गया है.
राष्ट्रीय राजमार्गों (national highways) की हालत भी किसी से छिपी नहीं है. लखनऊ से बरेली को जोड़ने वाला एनएच-24, जो टोल रोड है और यात्री पैसे देकर ही यात्रा कर सकते हैं, पर भी पैच वर्क से काम चलाया जा रहा है. इस राजमार्ग के निर्माण के दशकों बाद भी कुछ स्थानों पर ओवर ब्रिजों का निर्माण नहीं हो सका है. इनमें से एक जगह लखनऊ से सीतापुर के बीच सिधौली कस्बा है. इस कस्बे में ओवर ब्रिज बनना है, पर यह कब बन पाएगा, कोई नहीं जानता. इस राष्ट्रीय राजमार्ग पर सीतापुर से बरेली के बीच का काम दशकों से चल रहा है, पर पूरा आज तक नहीं हो पाया. यह मामला संसद में भी कई बार गूंजा है. अन्य राष्ट्रीय राजमार्गों की भी अपनी समस्याएं हैं.
शहरों और कस्बों की सड़कों का भी बुरा हाल है. राजधानी लखनऊ सहित प्रदेशभर के शहरी क्षेत्रों में गड्ढा मुक्ति के नाम पर सिर्फ पैच वर्क हो रहा है. राजधानी के कई पॉश इलाकों की सड़कों के गड्ढे जानलेवा साबित हो रहे हैं. इसी तरह अभी हाल ही में पीलीभीत में लोक निर्माण विभाग द्वारा बनाई गई एक सड़क को लोगों ने अपने हाथों से उखाड़ दिया. यहां सड़क निर्माण के नाम पर सीधे मिट्टी पर डामर डाल दिया गया था. प्रदेशभर में सड़कों का यही हाल है. कई स्थानों पर पैचवर्क भी इतनी घटिया ढंग से किया गया है कि गिट्टियां निकल रही हैं. मुख्यमंत्री के सपनों पर विभागीय अधिकारी ही मिट्टी डाल रहे हैं.
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सरकार का दावा है (Government claims) कि 59,572 किलोमीटर लक्ष्य के सापेक्ष 12 नवंबर तक 46,684 किलोमीटर मार्ग गड्ढा मुक्त किए गए. प्रदेश की 78 फीसदी सड़कें गड्ढा मुक्त कर दी गईं. 4596 किलोमीटर की सड़कों का नवीनीकरण भी किया गया. वहीं प्रदेश की 6142 किलोमीटर की लंबाई के विशेष मरम्मत कार्य भी पूरे किए गए. हालांकि यह सरकारी दावे हैं. लोगों को तो वह हकीकत ही दिखाई देती है, जिससे वह दो-चार होते हैं. यह गड्ढा मुक्ति का अभियान 15 नवंबर तक पूरा होना है, यानी अब महज तीन दिन शेष हैं. तीन दिन में सड़कें कैसे गड्ढा मुक्त हो पाएंगी कहना कठिन है, लेकिन सरकारी आंकड़े तो पूरे हो ही जाएंगे.