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तीन बेगमों के साथ यहां दफन हैं अवध के पहले बादशाह, अनोखा रहा है इतिहास

अवध अपनी तहजीब, अदब, ऐतिहासिक इमारतों और जुबान की मिठास के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. बदलते जमाने के साथ लखनऊ शहर की तस्वीर तो बदली, लेकिन मिजाज आज भी पुराना है. यहां की ऐतिहासिक इमारतों को अपने शान-ओ-शौकत के लिए प्रसिद्धि प्राप्त है. इसी में से एक है 'शाहनजफ', पढ़िए ये खास रिपोर्ट...

स्पेशल रिपोर्ट.
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Published : Mar 29, 2021, 12:51 PM IST

लखनऊ: राजधानी में अवध के नवाबों ने एक से बढ़कर एक खूबसूरत इमारतों का निर्माण कराया है. यह इमारतें आज 200 सालों से भी अधिक समय से अपनी मजबूती और सुंदरता का मिसाल दे रही हैं. अवध के पहले बादशाह गाजीउद्दीन ने भी लखनऊ में बेहद खूबसूरत इमारतों का निर्माण कराया है. इनमें से छतर मंजिल, मुबारक मंजिल, शाह मंजिल, मोती महल, सहादत अली खान और मुशीर जादी का मकबरा शामिल है. इन्हीं में से एक मकबरा है गाजीउद्दीन का 'शाहनजफ'.

स्पेशल रिपोर्ट.

1827 में दफनाया गया था

गाजीउद्दीन हैदर ने इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हजरत मोहम्मद साहब के दामाद हजरत इमाम अली अलैहिस्सलाम की याद में इमामबाड़ा शाहनजफ को बनवाया था. उनकी वसीयत के अनुसार, यहीं पर गाजीउद्दीन हैदर को उनकी मृत्यु के बाद सन् 1827 में दफनाया गया. लखौरी ईटों और चूने के मसालों से निर्मित इस इमारत के ऊपरी छोर पर बड़ा सा गुंबद है.

हजरत अली का रोजा इराक के शहर नजफ में है, इसलिए इस इमारत का नाम भी शाहनजफ रखा गया. हालांकि यह इमारत भारतीय पुरातत्व विभाग के द्वारा संरक्षित है, लेकिन चारों तरफ से भू माफियाओं का अतिक्रमण हो रहा है. वहीं इमारत की खूबसूरती पर भी अब दाग लगने लगा है.

वास्तुकला के ढंग से अनोखा है शाहनजफ

अवध के पहले बादशाह गाजीउद्दीन हैदर ने लखनऊ में जिन खूबसूरत इमारतों का निर्माण कराया, उनमें शाहनजफ का नाम भी शामिल है. रौजा-ए-शाहनजफ में दाखिल होने के लिए एक बहुत ही सुंदर फाटक बना हुआ है. जिस पर दो शेर, मछलियां और बादशाह का ताज है. वहीं इस रोजे में वर्मा से आयातित लकड़ी के दरवाजे लगाए गए हैं. बड़े गुंबद के नीचे अलम, ताजिये और झाड़ फानूस , लकड़ी और चांदी की बेहतरीन जरी रखी गई है. छत में भी खूबसूरत नक्काशी की गई है और बेल-बूटे भी लगाए गए हैं. इस मकबरे में गाजीउद्दीन को उनकी तीनों पत्नियों के साथ दफनाया गया है. उनकी बेगम मुबारक महल, मुमताज महल और सरफराज महल की कब्र को उनकी कब्र के आसपास बनाई गई है. इन कब्रों पर चांदी और एक पर लकड़ी का कठेरा भी लगाया हुआ है.

क्यों मशहूर है गाजीउद्दीन हैदर

गाजीउद्दीन हैदर अवध के पहले बादशाह हैं. उन्होंने अंग्रेजों से सांठगांठ करके खुद को बादशाह घोषित कर दिया और फिर अपना सिक्का भी चलाया. इसके पहले वह दिल्ली सल्तनत के वजीर हुआ करते थे. वह अवध में 1814 से लेकर 1827 तक बादशाह की गद्दी पर रहे.

बादशाह को खूबसूरत इमारतों का शौक था

गाजीउद्दीन हैदर को लखनऊ में खूबसूरत इमारतों के निर्माण के लिए भी याद किया जाता है. अपने दौर में उन्होंने छतर मंजिल, मुबारक मंजिल, शाह मंजिल, मोती महल और अपने पिता सहादत अली खान और मां मुशीर जादी के मकबरे का भी निर्माण कराया. वहीं गाजीउद्दीन हैदर ने यूरोपियन बेगम के लिए विलायती बाग का भी निर्माण करवाया था.

दुर्दशा का शिकार है ये इमारत

गाजीउद्दीन हैदर का मकबरा शाहनजफ को सही ढंग से संरक्षण नहीं मिल पा रहा है. संरक्षण के अभाव में इमारत दुर्दशा का शिकार हो रहा है. इस इमारत पर अब भू माफियाओं की नजर है, जिसके चलते कई जगह से चारदीवारी तोड़कर लोगों ने कब्जा करना शुरू कर दिया है. इस अतिक्रमण को न तो भारतीय पुरातत्व विभाग रोक पा रहा है और न ही इनका संरक्षण करने में सक्षम है.

लखनऊ: राजधानी में अवध के नवाबों ने एक से बढ़कर एक खूबसूरत इमारतों का निर्माण कराया है. यह इमारतें आज 200 सालों से भी अधिक समय से अपनी मजबूती और सुंदरता का मिसाल दे रही हैं. अवध के पहले बादशाह गाजीउद्दीन ने भी लखनऊ में बेहद खूबसूरत इमारतों का निर्माण कराया है. इनमें से छतर मंजिल, मुबारक मंजिल, शाह मंजिल, मोती महल, सहादत अली खान और मुशीर जादी का मकबरा शामिल है. इन्हीं में से एक मकबरा है गाजीउद्दीन का 'शाहनजफ'.

स्पेशल रिपोर्ट.

1827 में दफनाया गया था

गाजीउद्दीन हैदर ने इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हजरत मोहम्मद साहब के दामाद हजरत इमाम अली अलैहिस्सलाम की याद में इमामबाड़ा शाहनजफ को बनवाया था. उनकी वसीयत के अनुसार, यहीं पर गाजीउद्दीन हैदर को उनकी मृत्यु के बाद सन् 1827 में दफनाया गया. लखौरी ईटों और चूने के मसालों से निर्मित इस इमारत के ऊपरी छोर पर बड़ा सा गुंबद है.

हजरत अली का रोजा इराक के शहर नजफ में है, इसलिए इस इमारत का नाम भी शाहनजफ रखा गया. हालांकि यह इमारत भारतीय पुरातत्व विभाग के द्वारा संरक्षित है, लेकिन चारों तरफ से भू माफियाओं का अतिक्रमण हो रहा है. वहीं इमारत की खूबसूरती पर भी अब दाग लगने लगा है.

वास्तुकला के ढंग से अनोखा है शाहनजफ

अवध के पहले बादशाह गाजीउद्दीन हैदर ने लखनऊ में जिन खूबसूरत इमारतों का निर्माण कराया, उनमें शाहनजफ का नाम भी शामिल है. रौजा-ए-शाहनजफ में दाखिल होने के लिए एक बहुत ही सुंदर फाटक बना हुआ है. जिस पर दो शेर, मछलियां और बादशाह का ताज है. वहीं इस रोजे में वर्मा से आयातित लकड़ी के दरवाजे लगाए गए हैं. बड़े गुंबद के नीचे अलम, ताजिये और झाड़ फानूस , लकड़ी और चांदी की बेहतरीन जरी रखी गई है. छत में भी खूबसूरत नक्काशी की गई है और बेल-बूटे भी लगाए गए हैं. इस मकबरे में गाजीउद्दीन को उनकी तीनों पत्नियों के साथ दफनाया गया है. उनकी बेगम मुबारक महल, मुमताज महल और सरफराज महल की कब्र को उनकी कब्र के आसपास बनाई गई है. इन कब्रों पर चांदी और एक पर लकड़ी का कठेरा भी लगाया हुआ है.

क्यों मशहूर है गाजीउद्दीन हैदर

गाजीउद्दीन हैदर अवध के पहले बादशाह हैं. उन्होंने अंग्रेजों से सांठगांठ करके खुद को बादशाह घोषित कर दिया और फिर अपना सिक्का भी चलाया. इसके पहले वह दिल्ली सल्तनत के वजीर हुआ करते थे. वह अवध में 1814 से लेकर 1827 तक बादशाह की गद्दी पर रहे.

बादशाह को खूबसूरत इमारतों का शौक था

गाजीउद्दीन हैदर को लखनऊ में खूबसूरत इमारतों के निर्माण के लिए भी याद किया जाता है. अपने दौर में उन्होंने छतर मंजिल, मुबारक मंजिल, शाह मंजिल, मोती महल और अपने पिता सहादत अली खान और मां मुशीर जादी के मकबरे का भी निर्माण कराया. वहीं गाजीउद्दीन हैदर ने यूरोपियन बेगम के लिए विलायती बाग का भी निर्माण करवाया था.

दुर्दशा का शिकार है ये इमारत

गाजीउद्दीन हैदर का मकबरा शाहनजफ को सही ढंग से संरक्षण नहीं मिल पा रहा है. संरक्षण के अभाव में इमारत दुर्दशा का शिकार हो रहा है. इस इमारत पर अब भू माफियाओं की नजर है, जिसके चलते कई जगह से चारदीवारी तोड़कर लोगों ने कब्जा करना शुरू कर दिया है. इस अतिक्रमण को न तो भारतीय पुरातत्व विभाग रोक पा रहा है और न ही इनका संरक्षण करने में सक्षम है.

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