लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी (सिविल) अस्पताल, लखनऊ के लावारिस वार्ड की बद्तर हालत को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पूछा है कि लावारिस मरीजों के इलाज के लिए अलग से किसी बजट की व्यवस्था है अथवा नहीं. न्यायालय ने यह भी बताने को कहा है कि ऐसे मरीजों के लिए क्या कोई विशेष अस्पताल चिन्हित किया गया है. मामले की अगली सुनवाई सात नवंबर को होगी. यह आदेश न्यायमूर्ति एआर मसूदी व न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने ज्योति राजपूत की जनहित याचिका पर पारित किया है. न्यायालय ने कहा कि यदि ऐसे मरीजों के लिए कोई विशेष अस्पताल है तो उसको प्रचारित किया जाना आवश्यक है ताकि ऐसे मरीजों को समय से इलाज मिल सके.
याचिका में कहा गया है कि याची ने 29 मई को रास्ते में सूरज चंद्र भट्ट नाम के एक बुजुर्ग व्यक्ति को देखा जो लकवाग्रस्त अवस्था में था और उसने कमर के नीच कोई कपड़े भी नहीं पहने थे. याची ने न्यायालय को यह भी बताया कि उक्त व्यक्ति लगातार मल त्याग कर रहा था और उसके पास से महीनों से न नहाने के कारण बुरी दुर्गंध आ रही थी. इस पर याची ने 108 नंबर पर कॉल कर के एम्बुलेंस मंगाई और उसे सिविल अस्पताल के इमरजेंसी में भर्ती कराया.
याची का कहना है कि 30 मई को जब वह मरीज को दोबारा देखने गई तो पाया कि उस दिन तक उसे कोई इलाज नहीं मिला था और न ही उसे किसी ने देखा था. कहा गया कि बाद में मरीज को लावारिस वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया. जहां की स्थिति और भी बद्तर थी. याची के अनुसार वहां छह मरीज और थे जो लकवाग्रस्त अवस्था में थे. उक्त लावारिस वार्ड में भी चारों तरफ दुर्गंध फैली हुई थी. याचिका पर संज्ञान लेते हुए न्यायालय ने पूर्व में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव को अस्पताल का और विशेष रूप से लावारिस वार्ड का निरीक्षण करने व निरीक्षण की रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया था.
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