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सपा सरकार के प्रोजेक्ट जेपी सेंटर का बजट बढ़ाने की फाइल गायब, दर्ज होगी FIR - JP CENTER BUDGET FILE MISSING

समाजवादी पार्टी की सरकार के समय लगभग 860 करोड़ रुपये में बनाए गए जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय केंद्र की जांच अटक गई है.

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जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय केंद्र की जांच अटक (Photo Credit- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 2, 2025, 2:58 PM IST

लखनऊ: समाजवादी पार्टी की सरकार के समय लगभग 860 करोड़ रुपये में बनाए गए जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय केंद्र की जांच अटक गई है. सपा सरकार के समय इसका बजट रिवाइज किया गया था. बजट रिवाइज करने के दौरान डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट भी रिवाइज की गई थी. उसे डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट संबंधित फाइल अब गायब है. इस फाइल की तलाश को लेकर अब लखनऊ विकास प्राधिकरण की ओर से मुकदमा दर्ज कराया जा रहा है.

पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के समय बने जय प्रकाश नारायण इंटरनेशनल सेंटर (जेपीएनआईसी) की डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) एलडीए के गुप्त अलमारी से गायब हो गई है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आठ साल पहले इस प्रकरण में भ्रष्टाचार की जांच का आदेश दिया था, लेकिन कोई प्रगति नहीं हुई. अब शासन ने प्राधिकरण प्रशासन को डीपीआर गायब होने की एफआईआर दर्ज कराने का निर्देश दिया है.

लखनऊ विकास प्राधिकरण के ठीक पीछे बना जेपीएनआईसी पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट था. 17 मंजिला इस इमारत में 860 करोड़ खर्च हुए थे. 2017 में सत्ता में आई योगी सरकार ने भ्रष्टाचार को लेकर इसकी जांच के आदेश दिए थे. डीपीआर को देखकर ही जांच आगे बढ़ती, लेकिन इसके गायब होने से यह जांच लटक गई.

इस प्रकरण में कौन दोषी हैं: शासन ने शुरू में जब एलडीए से जेपीएनआईसी का डीपीआर मांगा तो पहला डीपीआर शासन को दिया गया लेकिन जब बाद में संशोधित डीपीआर मांगा गया तो पता चला कि प्राधिकरण में संशोधित डीपीआर की कोई प्रति नहीं है. संशोधित डीपीआर के बिना संपूर्ण जांच आसान नहीं है. शासन ने लगभग एक सप्ताह पहले एलडीए उपाध्यक्ष को पत्र लिखते हुए पूछा कि डीपीआर रखने के लिए कौन उत्तरदायी है? साथ ही डीपीआर के गायब होने के सम्बन्ध में पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करने के निर्देश दिए.

बता दें कि जेपी सेंटर बनाने का काम एलडीए ने किया था. 260 करोड़ की योजना से शुरू होते हुए ये 860 करोड़ तक पहुंच गई थी. अभी भी काम पूरा नहीं है और बिल्डिंग बंद रहने से उसका रख रखाव भी नहीं हो रहा है. इसे पूर्ण करने के लिए 130 करोड़ रुपये चाहिए लेकिन कब जांच पूरी होगी और कब इसका काम पूर्ण होगा यह सवाल है.

कैसे गायब हुआ डीपीआर: जानकारों की मानें तो एलडीए के पास डीपीआर की पांच से भी अधिक प्रतियां होनी चाहिए. इसमें उपाध्यक्ष कार्यालय, सचिव कार्यालय, अपर सचिव कार्यालय, सीटीपी कार्यालय, मुख्य अभियंता कार्यालय एफसी कार्यालय हैं. अगर डीपीआर में कोई संशोधन हुआ हो, तो संशोधित प्रति भी हर एक कार्यालय में उपलब्ध कराई जाती ताकि कोई भी सक्षम अधिकारी कभी भी अपने कार्य के सम्बन्ध में योजना का निरीक्षण कर डीपीआर से मिलान कर सके.

सचिव की जवाबदेहीः शासन द्वारा लिखे पत्र में मामले पर कार्रवाई संबंधी आख्या न मिलने पर प्राधिकरण के सचिव पर उत्तरदायित्व निर्धारित कर कार्रवाई करने बात कही गई है. दिसंबर में लखनऊ विकास प्राधिकरण के एक अधिकारी ने बताया कि जांच की शुरुआत की जा चुकी है. जल्द ही मुकदमा दर्ज कराया जाएगा. लखनऊ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष प्रथमेश कुमार इस संबंध में पहले ही आदेश दे चुके हैं.


ये भी पढ़ें- VIDEO : महाकुंभ से सुर्खियों में आईं मोनालिसा बोलीं- मुझे अभी नहीं मिले पैसे, सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही अफवाह

लखनऊ: समाजवादी पार्टी की सरकार के समय लगभग 860 करोड़ रुपये में बनाए गए जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय केंद्र की जांच अटक गई है. सपा सरकार के समय इसका बजट रिवाइज किया गया था. बजट रिवाइज करने के दौरान डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट भी रिवाइज की गई थी. उसे डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट संबंधित फाइल अब गायब है. इस फाइल की तलाश को लेकर अब लखनऊ विकास प्राधिकरण की ओर से मुकदमा दर्ज कराया जा रहा है.

पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के समय बने जय प्रकाश नारायण इंटरनेशनल सेंटर (जेपीएनआईसी) की डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) एलडीए के गुप्त अलमारी से गायब हो गई है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आठ साल पहले इस प्रकरण में भ्रष्टाचार की जांच का आदेश दिया था, लेकिन कोई प्रगति नहीं हुई. अब शासन ने प्राधिकरण प्रशासन को डीपीआर गायब होने की एफआईआर दर्ज कराने का निर्देश दिया है.

लखनऊ विकास प्राधिकरण के ठीक पीछे बना जेपीएनआईसी पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट था. 17 मंजिला इस इमारत में 860 करोड़ खर्च हुए थे. 2017 में सत्ता में आई योगी सरकार ने भ्रष्टाचार को लेकर इसकी जांच के आदेश दिए थे. डीपीआर को देखकर ही जांच आगे बढ़ती, लेकिन इसके गायब होने से यह जांच लटक गई.

इस प्रकरण में कौन दोषी हैं: शासन ने शुरू में जब एलडीए से जेपीएनआईसी का डीपीआर मांगा तो पहला डीपीआर शासन को दिया गया लेकिन जब बाद में संशोधित डीपीआर मांगा गया तो पता चला कि प्राधिकरण में संशोधित डीपीआर की कोई प्रति नहीं है. संशोधित डीपीआर के बिना संपूर्ण जांच आसान नहीं है. शासन ने लगभग एक सप्ताह पहले एलडीए उपाध्यक्ष को पत्र लिखते हुए पूछा कि डीपीआर रखने के लिए कौन उत्तरदायी है? साथ ही डीपीआर के गायब होने के सम्बन्ध में पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करने के निर्देश दिए.

बता दें कि जेपी सेंटर बनाने का काम एलडीए ने किया था. 260 करोड़ की योजना से शुरू होते हुए ये 860 करोड़ तक पहुंच गई थी. अभी भी काम पूरा नहीं है और बिल्डिंग बंद रहने से उसका रख रखाव भी नहीं हो रहा है. इसे पूर्ण करने के लिए 130 करोड़ रुपये चाहिए लेकिन कब जांच पूरी होगी और कब इसका काम पूर्ण होगा यह सवाल है.

कैसे गायब हुआ डीपीआर: जानकारों की मानें तो एलडीए के पास डीपीआर की पांच से भी अधिक प्रतियां होनी चाहिए. इसमें उपाध्यक्ष कार्यालय, सचिव कार्यालय, अपर सचिव कार्यालय, सीटीपी कार्यालय, मुख्य अभियंता कार्यालय एफसी कार्यालय हैं. अगर डीपीआर में कोई संशोधन हुआ हो, तो संशोधित प्रति भी हर एक कार्यालय में उपलब्ध कराई जाती ताकि कोई भी सक्षम अधिकारी कभी भी अपने कार्य के सम्बन्ध में योजना का निरीक्षण कर डीपीआर से मिलान कर सके.

सचिव की जवाबदेहीः शासन द्वारा लिखे पत्र में मामले पर कार्रवाई संबंधी आख्या न मिलने पर प्राधिकरण के सचिव पर उत्तरदायित्व निर्धारित कर कार्रवाई करने बात कही गई है. दिसंबर में लखनऊ विकास प्राधिकरण के एक अधिकारी ने बताया कि जांच की शुरुआत की जा चुकी है. जल्द ही मुकदमा दर्ज कराया जाएगा. लखनऊ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष प्रथमेश कुमार इस संबंध में पहले ही आदेश दे चुके हैं.


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