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चिकित्सा विभाग में बड़े पैमाने पर लिपिकों के तबादले पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा जवाब

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने चिकित्सा विभाग में बड़े पैमाने पर हुए लिपिकों के तबादले पर राज्य सरकार से जवाब तलब किया है. न्यायालय ने सरकार के अधिवक्ता को दो दिनों का समय देते हुए निर्देश प्राप्त कर कोर्ट को अवगत कराने को कहा है.

लखनऊ हाईकोर्ट
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Published : Aug 5, 2021, 10:49 PM IST

लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने चिकित्सा विभाग में बड़े पैमाने पर हुए लिपिकों के तबादले पर राज्य सरकार से जवाब तलब किया है. न्यायालय ने सरकार के अधिवक्ता को दो दिनों का समय देते हुए निर्देश प्राप्त कर कोर्ट को अवगत कराने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई 10 अगस्त को होगी.


यह आदेश न्यायमूर्ति इरशाद अली की एकल पीठ ने आशीष कुमार सिंह व अन्य की सेवा सम्बंधी याचिका पर पारित किया. याचिका में कहा गया है कि 15 जुलाई को जारी तबादला आदेश में इस बात का कहीं जिक्र नहीं है कि तबादले जनहित में या प्रशासनिक कारणों से किये जा रहे हैं. लिहाजा उक्त तबादला आदेश गैरकानूनी है.

याचिका में कहा गया कि उक्त तबादला आदेश 29 सितम्बर 2018 के तबादला नीति के विरुद्ध है. याचियों की ओर से यह भी दलील दी गयी कि कुछ याचियों के माता-पिता दिव्यांग हैं, कुछ के बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं तो कुछ के पति अथवा पत्नी का इलाज चल रहा है. ऐसे में इन पहलुओं पर गौर किये बगैर उक्त तबादला आदेश पारित कर दिया गया है. याचिका में कहा गया कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने एक आदेश में कहा है कि शैक्षिक सत्र के बीच में तबादला आदेश पारित करने से बचना चाहिए. याचिका में यह भी आधार लिया गया कि कोविड- 19 महामारी की तीसरी लहर सम्भावित है, ऐसी स्थिति में नई जगह पर याचियों व उनके परिवार को रहने इत्यादि की भारी समस्या से गुजरना पड़ेगा.

इसे भी पढ़ें - 15 वर्ष से अधिक आयु की पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना दुष्कर्म नहींः हाईकोर्ट

लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने चिकित्सा विभाग में बड़े पैमाने पर हुए लिपिकों के तबादले पर राज्य सरकार से जवाब तलब किया है. न्यायालय ने सरकार के अधिवक्ता को दो दिनों का समय देते हुए निर्देश प्राप्त कर कोर्ट को अवगत कराने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई 10 अगस्त को होगी.


यह आदेश न्यायमूर्ति इरशाद अली की एकल पीठ ने आशीष कुमार सिंह व अन्य की सेवा सम्बंधी याचिका पर पारित किया. याचिका में कहा गया है कि 15 जुलाई को जारी तबादला आदेश में इस बात का कहीं जिक्र नहीं है कि तबादले जनहित में या प्रशासनिक कारणों से किये जा रहे हैं. लिहाजा उक्त तबादला आदेश गैरकानूनी है.

याचिका में कहा गया कि उक्त तबादला आदेश 29 सितम्बर 2018 के तबादला नीति के विरुद्ध है. याचियों की ओर से यह भी दलील दी गयी कि कुछ याचियों के माता-पिता दिव्यांग हैं, कुछ के बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं तो कुछ के पति अथवा पत्नी का इलाज चल रहा है. ऐसे में इन पहलुओं पर गौर किये बगैर उक्त तबादला आदेश पारित कर दिया गया है. याचिका में कहा गया कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने एक आदेश में कहा है कि शैक्षिक सत्र के बीच में तबादला आदेश पारित करने से बचना चाहिए. याचिका में यह भी आधार लिया गया कि कोविड- 19 महामारी की तीसरी लहर सम्भावित है, ऐसी स्थिति में नई जगह पर याचियों व उनके परिवार को रहने इत्यादि की भारी समस्या से गुजरना पड़ेगा.

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