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12 साल पहले रिटायर्ड डॉक्टर्स भी नॉन प्रैक्टिसिंग अलाउंस के हकदार: हाईकोर्ट - lucknow news

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सैकड़ों डॉक्टरों की याचिकाओं पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. न्यायालय ने 12 साल पहले रिटायर हुए पीएमएस संवर्ग के एलोपैथिक डॉक्टरों को भी नॉन प्रैक्टिस अलाउंस पाने के योग्य बताया है.

हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला
हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला
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Published : Sep 7, 2021, 10:36 AM IST

लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सैकड़ों डॉक्टरों की याचिकाओं पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा है कि 12 साल पहले अर्थात 24 अगस्त 2009 के पूर्व रिटायर हुए पीएमएस संवर्ग के एलोपैथिक डॉक्टर भी नॉन प्रैक्टिसिंग अलाउंस पाने के हकदार हैं. न्यायालय ने ऐसे सरकारी डॉक्टरों को 19 अगस्त 2019 के शासनादेश के तहत पुनरीक्षित दर से नॉन प्रैक्टिसिंग पाने के योग्य बताया है.

यह आदेश न्यायमूर्ति आलोक माथुर की एकल पीठ ने डॉ. अविनाश चंद्र श्रीवास्तव व डॉक्टरों समेत कई और याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया. याचिकाओं में 14 जुलाई व 4 सितम्बर 2020 तथा 16 जुलाई 2020 के वसूली सम्बंधी शासनादेश को चुनौती दी गई थी. न्यायालय ने मामले की विस्तृत सुनवाई के उपरांत एनपीए देने की मनाही व वसूली सम्बंधी शासनादेशों को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया. साथ ही वसूले गए नॉन प्रैक्टिसिंग अलाउंस की धनराशि को सम्बंधित डॉक्टरों को तीन माह में वापस करने का भी आदेश दिया है.

साथ ही न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यदि तीन माह में उक्त धनराशि वापस नहीं की जाती, तो आठ प्रतिशत सालाना ब्याज की दर से ब्याज भी अदा करना पड़ेगा. मामले में याचियों की ओर से दलील दी गई थी कि 24 अगस्त 2009 के पहले रिटायर हुए डॉक्टरों को उक्त पुनरीक्षित अलाउंस न दिया जाना कानून की मंशा के विपरीत है. साथ ही वसूली के प्रावधान को भी अवैधानिक बताया गया था.

लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सैकड़ों डॉक्टरों की याचिकाओं पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा है कि 12 साल पहले अर्थात 24 अगस्त 2009 के पूर्व रिटायर हुए पीएमएस संवर्ग के एलोपैथिक डॉक्टर भी नॉन प्रैक्टिसिंग अलाउंस पाने के हकदार हैं. न्यायालय ने ऐसे सरकारी डॉक्टरों को 19 अगस्त 2019 के शासनादेश के तहत पुनरीक्षित दर से नॉन प्रैक्टिसिंग पाने के योग्य बताया है.

यह आदेश न्यायमूर्ति आलोक माथुर की एकल पीठ ने डॉ. अविनाश चंद्र श्रीवास्तव व डॉक्टरों समेत कई और याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया. याचिकाओं में 14 जुलाई व 4 सितम्बर 2020 तथा 16 जुलाई 2020 के वसूली सम्बंधी शासनादेश को चुनौती दी गई थी. न्यायालय ने मामले की विस्तृत सुनवाई के उपरांत एनपीए देने की मनाही व वसूली सम्बंधी शासनादेशों को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया. साथ ही वसूले गए नॉन प्रैक्टिसिंग अलाउंस की धनराशि को सम्बंधित डॉक्टरों को तीन माह में वापस करने का भी आदेश दिया है.

साथ ही न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यदि तीन माह में उक्त धनराशि वापस नहीं की जाती, तो आठ प्रतिशत सालाना ब्याज की दर से ब्याज भी अदा करना पड़ेगा. मामले में याचियों की ओर से दलील दी गई थी कि 24 अगस्त 2009 के पहले रिटायर हुए डॉक्टरों को उक्त पुनरीक्षित अलाउंस न दिया जाना कानून की मंशा के विपरीत है. साथ ही वसूली के प्रावधान को भी अवैधानिक बताया गया था.

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