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हाईकोर्ट का फैसला, तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को भी गुजारा भत्ता पाने का अधिकार

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच (Lucknow Bench of High Court) ने कहा है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को भी दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत अपने पति से गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है.

हाईकोर्ट का फैसला
हाईकोर्ट का फैसला.
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Published : Apr 18, 2022, 9:11 PM IST

लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच (Lucknow Bench of High Court) ने मुस्लिम महिलाओं के हक में महत्वपूर्ण फैसला दिया है. कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को भी दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत अपने पति से गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है. वे इद्दत की अवधि के बाद भी इसे प्राप्त कर सकती हैं.

न्यायालय ने अपने निर्णय में यह भी स्पष्ट किया कि तलाकशुदा महिलाओं को यह अधिकार तभी तक है जब तक वे दूसरी शादी नहीं कर लेतीं. यह निर्णय न्यायमूर्ति करुणेश सिंह पवार की एकल पीठ ने रजिया के आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर पारित किया. वर्ष 2008 में दाखिल इस याचिका में प्रतापगढ़ के एक सत्र न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई थी.

सत्र न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए कहा था कि मोस्लिम वीमन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन डिवोर्स) एक्ट के आने के बाद याची व उसके पति का मामला इसी अधिनियम के अधीन होगा. सत्र न्यायालय ने कहा कि उक्त अधिनियम की धारा 3 व 4 के तहत ही मुस्लिम तलाकशुदा पत्नी गुजारा भत्ता पाने की अधिकारी है. ऐसे मामलों में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 लागू नहीं होती.

इसे भी पढ़ें-इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डीएम चंदौली संजीव सिंह को जारी किया वारंट


हाईकोर्ट ने सत्र अदालत के इस फैसले को निरस्त करते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा शबाना बानो मामले में दिए गए निर्णय के बाद यह तय हो चुका है कि मुस्लिम तलाकशुदा महिला धारा 125 के तहत इद्दत की अवधि के पश्चात भी गुजारा भत्ता पाने की अधिकारी है, जब तक वह दूसरी शादी नहीं कर लेती.

लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच (Lucknow Bench of High Court) ने मुस्लिम महिलाओं के हक में महत्वपूर्ण फैसला दिया है. कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को भी दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत अपने पति से गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है. वे इद्दत की अवधि के बाद भी इसे प्राप्त कर सकती हैं.

न्यायालय ने अपने निर्णय में यह भी स्पष्ट किया कि तलाकशुदा महिलाओं को यह अधिकार तभी तक है जब तक वे दूसरी शादी नहीं कर लेतीं. यह निर्णय न्यायमूर्ति करुणेश सिंह पवार की एकल पीठ ने रजिया के आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर पारित किया. वर्ष 2008 में दाखिल इस याचिका में प्रतापगढ़ के एक सत्र न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई थी.

सत्र न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए कहा था कि मोस्लिम वीमन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन डिवोर्स) एक्ट के आने के बाद याची व उसके पति का मामला इसी अधिनियम के अधीन होगा. सत्र न्यायालय ने कहा कि उक्त अधिनियम की धारा 3 व 4 के तहत ही मुस्लिम तलाकशुदा पत्नी गुजारा भत्ता पाने की अधिकारी है. ऐसे मामलों में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 लागू नहीं होती.

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हाईकोर्ट ने सत्र अदालत के इस फैसले को निरस्त करते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा शबाना बानो मामले में दिए गए निर्णय के बाद यह तय हो चुका है कि मुस्लिम तलाकशुदा महिला धारा 125 के तहत इद्दत की अवधि के पश्चात भी गुजारा भत्ता पाने की अधिकारी है, जब तक वह दूसरी शादी नहीं कर लेती.

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