लखनऊ: हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक किसान की कर्ज माफी के आवेदन को तीन साल लटकाए रखने और कर्ज माफी योजना समाप्त होने के पश्चात उसके आवेदन को राज्य सरकार को अग्रसारित करने के मामले में सख्त रुख अपनाया है. न्यायालय ने कहा कि सरकारी अधिकारियों के ऐसे निरंकुश और बेलगाम कृत्यों को रोकना जरूरी हो चुका है.
यह आदेश न्यायमूर्ति श्रीप्रकाश सिंह (Justice Sriprakash Singh) की एकल पीठ ने रामचंद्र यादव की याचिका पर पारित किया. याचिका में कहा गया कि 17 जून 2012 को याची को केसीसी लोन की संस्तुति की गई थी. इस दौरान सरकार ने फसल ऋण मोचन योजना, 2017 उन किसानों के लिए लेकर आई. जिनके पास कृषि भूमि दो एकड़ से कम थी.
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याची ने भी इस योजना के तहत लाभ पाने के लिए 27 दिसम्बर 2017 को आवेदन दिया. लेकिन जिला स्तरीय कमेटी (district level committee) ने तीन साल बाद 6 जनवरी 2020 को इसे राज्य सरकार के पास अप्रूवल के लिए भेजा. सरकार ने भी इस पर अब तक निर्णय नहीं लिया. वहींं, राज्य सरकार के अधिवक्ता ने दलील दी कि वर्ष 2019 में उक्त योजना समाप्त कर दी गई. लिहाजा याची के आवेदन को सरकार के पास भेजना पड़ा.
न्यायालय ने मामले पर सख्त नाराजगी जताते हुए कहा कि यह चौंकाने वाला तथ्य है कि अथॉरिटीज समाज के अंतिम व्यक्ति के लिए बहुत ही लापरवाह हो चुकी है. एक गरीब किसान के मामले को लटकाए रखा जाता है. किसान कर्ज माफी योजना के तहत लाभ पाने का अधिकारी है या नहीं यह तय करने में तीन साल लग गए. न्यायालय ने इन टिप्पणियों के साथ याची के मामले पर तीन सप्ताह में निर्णय लेने का आदेश देते हुए, प्रमुख सचिव, कृषि से रिपोर्ट भी तलब की है.
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