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विवादित ढांचा विध्वंस मामला, अभियुक्तों को बरी की जाने के खिलाफ दाखिल अपील खारिज

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Published : Nov 9, 2022, 4:20 PM IST

Updated : Nov 9, 2022, 9:10 PM IST

16:16 November 09

लखनऊ : अयोध्या के विवादित ढांचा विध्वंस मामले में सत्र अदालत द्वारा सभी अभियुक्तों को बरी किए जाने के फैसले को चुनौती देने वाली अपील को हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने खारिज कर दिया है. न्यायालय ने अयोध्या निवासियों हाजी महबूब अहमद व सैयद अखलाक अहमद को मामले का पीड़ित नहीं माना है व उनकी ओर से दाखिल उक्त अपील को अपोषणीय करार दिया है. यह निर्णय न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सरोज यादव की खंडपीठ ने बुधवार को पारित किया.

सुनवाई के दौरान न्यायालय ने पाया कि अपीलार्थी हाजी महबूब ने 7 दिसम्बर 1992 को अयोध्या के रामजन्म भूमि थाने में एक एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि लाखों कारसेवकों ने अयोध्या में अल्पसंख्यक समुदाय के घरों को आग लगा दी व लूट लिया. इस मामले में ट्रायल के उपरांत 2 दिसम्बर 1998 को अपर जिला व सत्र न्यायाधीश, फैजाबाद ने सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया था. हाजी महबूब द्वारा 2 दिसम्बर 1998 के उक्त आदेश को चुनौती नहीं दी गई. इसी प्रकार दूसरे अपीलार्थी सैयद अखलाक अहमद ने इसी मामले में एक अन्य एफआईआर लिखाई थी, जिसमें विवेचना के उपरांत घटना का कोई भी तथ्य न पाए जाने पर अंतिम रिपोर्ट 28 अप्रैल 1993 को लगा दी गई थी. सैयद अखलाक अहमद द्वारा भी उक्त अंतिम रिपोर्ट के विरुद्ध कोई भी कानूनी कार्यवाही नहीं की गई.

अपील का विरोध करते हुए कहा गया कि दोनों ही अपीलार्थियों ने स्वयं द्वारा दर्ज कराए मुकदमों में कोई भी कदम 22 सालों तक नहीं उठाया और सीबीआई द्वारा दर्ज मामले में 21 अगस्त 2020 को एक प्रार्थना पत्र विशेष न्यायाधीश (अयोध्या प्रकरण) के समक्ष दाखिल करते हुए, स्वयं को भी सुने जाने की मांग की जिसे विशेष न्यायाधीश ने 25 अगस्त 2020 को खारिज कर दिया. अपीलार्थियों ने 25 अगस्त 2020 के उक्त आदेश को भी कभी चुनौती नहीं दी.


वहीं अपीलार्थियों की ओर से दलील दी गई कि इस मामले में सीबीआई ने उन्हें अभियोजन गवाह संख्या क्रमशः 10 और 53 के तौर पर पेश किया था, सुनवाई के दौरान उन्होंने अभियोजन के केस के साथ ही उनको हुए व्यक्तिगत नुकसान के तथ्य भी बताए लिहाजा उन्हें अभियुक्तों के बरी होने के खिलाफ अपील दाखिल करने का अधिकार है. न्यायालय ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के उपरांत पारित अपने फैसले में कहा कि पूर्ण पीठ के मनोज कुमार सिंह मामले में दिए फैसले के अनुसार सिर्फ उस व्यक्ति को पीड़ित माना जा सकता है जो ट्रायल का विषय-वस्तु रहा हो और जो मामले में हुए अपराध का सीधे तौर पर भुक्तभोगी हो, जिसके स्वयं के शरीर, सम्पत्ति अथवा प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा हो.

न्यायालय ने कहा कि पूर्ण पीठ द्वारा दी गई उपरोक्त परिभाषा के तहत वर्तमान मामले में अपीलार्थियों को पीड़ित नहीं कहा जा सकता, लिहाजा उन्हें विशेष न्यायालय द्वारा पारित 30 सितम्बर 2020 के निर्णय को चुनौती देने का अधिकार नहीं है. उल्लेखनीय है कि विशेष अदालत, अयोध्या प्रकरण ने 30 सितम्बर 2020 को निर्णय पारित करते हुए, विवादित ढांचा विध्वंस मामले में पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी, पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, लोक सभा सदस्यों साक्षी महाराज, लल्लू सिंह व बृजभूषण शरण सिंह समेत सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया था.

यह भी पढ़ें : कांग्रेस नहीं लड़ेगी रामपुर व मैनपुरी का उपचुनाव, प्रदेश अध्यक्ष बोले, पूरा फोकस नगर निकाय चुनाव पर

16:16 November 09

लखनऊ : अयोध्या के विवादित ढांचा विध्वंस मामले में सत्र अदालत द्वारा सभी अभियुक्तों को बरी किए जाने के फैसले को चुनौती देने वाली अपील को हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने खारिज कर दिया है. न्यायालय ने अयोध्या निवासियों हाजी महबूब अहमद व सैयद अखलाक अहमद को मामले का पीड़ित नहीं माना है व उनकी ओर से दाखिल उक्त अपील को अपोषणीय करार दिया है. यह निर्णय न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सरोज यादव की खंडपीठ ने बुधवार को पारित किया.

सुनवाई के दौरान न्यायालय ने पाया कि अपीलार्थी हाजी महबूब ने 7 दिसम्बर 1992 को अयोध्या के रामजन्म भूमि थाने में एक एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि लाखों कारसेवकों ने अयोध्या में अल्पसंख्यक समुदाय के घरों को आग लगा दी व लूट लिया. इस मामले में ट्रायल के उपरांत 2 दिसम्बर 1998 को अपर जिला व सत्र न्यायाधीश, फैजाबाद ने सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया था. हाजी महबूब द्वारा 2 दिसम्बर 1998 के उक्त आदेश को चुनौती नहीं दी गई. इसी प्रकार दूसरे अपीलार्थी सैयद अखलाक अहमद ने इसी मामले में एक अन्य एफआईआर लिखाई थी, जिसमें विवेचना के उपरांत घटना का कोई भी तथ्य न पाए जाने पर अंतिम रिपोर्ट 28 अप्रैल 1993 को लगा दी गई थी. सैयद अखलाक अहमद द्वारा भी उक्त अंतिम रिपोर्ट के विरुद्ध कोई भी कानूनी कार्यवाही नहीं की गई.

अपील का विरोध करते हुए कहा गया कि दोनों ही अपीलार्थियों ने स्वयं द्वारा दर्ज कराए मुकदमों में कोई भी कदम 22 सालों तक नहीं उठाया और सीबीआई द्वारा दर्ज मामले में 21 अगस्त 2020 को एक प्रार्थना पत्र विशेष न्यायाधीश (अयोध्या प्रकरण) के समक्ष दाखिल करते हुए, स्वयं को भी सुने जाने की मांग की जिसे विशेष न्यायाधीश ने 25 अगस्त 2020 को खारिज कर दिया. अपीलार्थियों ने 25 अगस्त 2020 के उक्त आदेश को भी कभी चुनौती नहीं दी.


वहीं अपीलार्थियों की ओर से दलील दी गई कि इस मामले में सीबीआई ने उन्हें अभियोजन गवाह संख्या क्रमशः 10 और 53 के तौर पर पेश किया था, सुनवाई के दौरान उन्होंने अभियोजन के केस के साथ ही उनको हुए व्यक्तिगत नुकसान के तथ्य भी बताए लिहाजा उन्हें अभियुक्तों के बरी होने के खिलाफ अपील दाखिल करने का अधिकार है. न्यायालय ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के उपरांत पारित अपने फैसले में कहा कि पूर्ण पीठ के मनोज कुमार सिंह मामले में दिए फैसले के अनुसार सिर्फ उस व्यक्ति को पीड़ित माना जा सकता है जो ट्रायल का विषय-वस्तु रहा हो और जो मामले में हुए अपराध का सीधे तौर पर भुक्तभोगी हो, जिसके स्वयं के शरीर, सम्पत्ति अथवा प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा हो.

न्यायालय ने कहा कि पूर्ण पीठ द्वारा दी गई उपरोक्त परिभाषा के तहत वर्तमान मामले में अपीलार्थियों को पीड़ित नहीं कहा जा सकता, लिहाजा उन्हें विशेष न्यायालय द्वारा पारित 30 सितम्बर 2020 के निर्णय को चुनौती देने का अधिकार नहीं है. उल्लेखनीय है कि विशेष अदालत, अयोध्या प्रकरण ने 30 सितम्बर 2020 को निर्णय पारित करते हुए, विवादित ढांचा विध्वंस मामले में पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी, पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, लोक सभा सदस्यों साक्षी महाराज, लल्लू सिंह व बृजभूषण शरण सिंह समेत सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया था.

यह भी पढ़ें : कांग्रेस नहीं लड़ेगी रामपुर व मैनपुरी का उपचुनाव, प्रदेश अध्यक्ष बोले, पूरा फोकस नगर निकाय चुनाव पर

Last Updated : Nov 9, 2022, 9:10 PM IST
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