लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने पीएफआई के दो सदस्यों के खिलाफ पक्षपाती और द्वेषपूर्ण जांच के एटीएस पर लगाये गये आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है. इसके साथ ही न्यायालय ने मामले की जांच सीबीआई को देने व एसटीएफ पर झूठा साक्ष्य गढ़ने के आरोप की जांच हाईकोर्ट की निगरानी में कराने की मांग को भी नकार दिया है.
यह आदेश न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति अजय कुमार श्रीवास्तव, प्रथम की खंडपीठ ने पीएफआई सदस्य अंसद बदरुद्दीन की ओर से उसके भाई अजहर बदरुद्दीन द्वारा दाखिल याचिका पर पारित किया. न्यायालय ने अपने विस्तृत आदेश में कहा कि याची पक्ष यह सिद्ध करने में पूरी तरह असफल रहा है कि मामले की जांच दुर्भावनापूर्ण तरीके से की गयी. यह मामला विवेचनाधिकारी द्वारा शक्ति के गलत इस्तेमाल का भी नहीं है और न ही जांच में दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों का न पालन किए जाने की बात सामने आयी है.
याची की ओर से यह भी दलील दी गयी कि एटीएस की वेबसाइट पर पीएफआई को ‘साउथ टेरर’ कहकर सम्बोधित किया गया है, जिससे यह प्रतीत होता है कि राज्य सरकार और जांच एजेंसी याची के विरुद्ध दुर्भावनापूर्ण तरीके से काम कर रही है. न्यायालय ने इस दलील को भी नकारते हुए कहा कि पोर्टल पर इस शब्दावली का प्रयोग करने मात्र से यह नहीं कहा जा सकता कि जांच एजेंसी ने पक्षपात किया है. हालांकि न्यायालय ने ऐसी शब्दावली के प्रयोग को अस्वीकृत भी किया है.
उल्लेखनीय है कि पीएफआई सदस्यों अंसद बदरुद्दीन और फिरोज केसी को राजधानी के कुकरैल जंगल से 16 फरवरी को गिरफ्तार किया गया था. उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 120 बी व 121 ए, साथ ही आर्म्स एक्ट की धारा 3 व 5, विस्फोटक अधिनियम की धारा 3, 4 व 5 तथा यूएपीए की धारा 13, 16, 18 व 20 लगायी गयी है.
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