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'VIP स्टेटस के लिए सरकारी सुरक्षा की संस्कृति ठीक नहीं, समाज और राष्ट्रहित में काम करने वालों को ही दी जाए सरकारी सुरक्षा'

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Published : Aug 4, 2021, 9:47 PM IST

लोगों को सरकारी सुरक्षा दिये जाने के मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अहम दिशा-निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि सरकारी सुरक्षा केवल उन्हीं लोगों को दी जाए, जिन्हें समाज या फिर राष्ट्रहित में कार्य करने के कारण खतरा हो. कोर्ट ने कहा कि सरकार और करदाता के पैसे से सुरक्षा प्राप्त कर के खुद को वीआईपी दिखाने की संस्कृति चल रही है. इस प्रैक्टिस को रोकना होगा.

हाईकोर्ट
हाईकोर्ट

लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सरकारी सुरक्षा प्रदान करने के सम्बंध में महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश देते हुए कहा है कि सरकारी सुरक्षा सिर्फ उन्हीं लोगों को प्रदान की जाए, जिन्हें समाज अथवा राष्ट्रहित में कार्य करने के कारण आतंकियों, नक्सलियों अथवा संगठित गिरोहों से खतरा है. न्यायालय ने कहा कि व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण किसी को खतरा होना सरकारी सुरक्षा पाने का आधार नहीं है. न्यायालय ने यह भी निर्देश दिये हैं कि इस दिशा-निर्देश के अनुपालन के लिए निर्णय की प्रति मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव गृह और डीजीपी को भी भेजी जाए.

यह निर्णय न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा व न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की खंडपीठ ने अधिवक्ता अभिषेक तिवारी की याचिका पर पारित किया. मामले में याची का कहना था कि वह आपराधिक मुकदमों का वकील है और उसने जनहित याचिकाएं भी दाखिल की हैं. इसलिए उसकी जान को खतरा है. न्यायालय ने याची की इस दलील पर कहा कि यदि इस आधार पर सुरक्षा दी जाए तो आपराधिक मुकदमों की प्रैक्टिस करने वाले हर वकील को सुरक्षा देनी होगी. वहीं याचिका का राज्य सरकार की ओर से भी विरोध किया गया. कहा गया कि याची ने खुद पर खतरे की कभी कोई एफआईआर अथवा शिकायत भी नहीं दर्ज कराई है. उस पर कोई खतरा नहीं है. यह भी कहा कि याची का वार्षिक टैक्स रिटर्न 4 लाख 50 हजार रुपये है. उसे पहले दस प्रतिशत खर्चे पर जौनपुर से एक गनर मिला हुआ था. अब उसे लखनऊ से एक गनर चाहिए, जबकि उसे कोई खतरा नहीं होने की रिपेार्ट है.


न्यायालय ने अपने निर्णय में यह भी टिप्पणी भी की कि सरकार और करदाता के पैसे से सुरक्षा प्राप्त कर के खुद को वीआईपी दिखाने की संस्कृति चल रही है. इस प्रैक्टिस को रोकना होगा. न्यायालय ने कहा कि सुरक्षा प्राप्त करने के लिए खतरे का आंकलन वास्तविक होना चाहिए. सुरक्षा समिति इसके सटीक आंकलन के लिए खुफिया एजेंसी व सम्बंधित थाने से रिपोर्ट प्राप्त करे. न्यायालय ने कहा कि जिस व्यक्ति ने सुरक्षा की मांग की है, उसका पिछला रिकॉर्ड भी देखा जाना चाहिए.

इसे भी पढ़ें - बिना कारण बताए एसपी ने दिया था एएसआई से वसूली का आदेश, हाई कोर्ट ने किया निरस्त

लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सरकारी सुरक्षा प्रदान करने के सम्बंध में महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश देते हुए कहा है कि सरकारी सुरक्षा सिर्फ उन्हीं लोगों को प्रदान की जाए, जिन्हें समाज अथवा राष्ट्रहित में कार्य करने के कारण आतंकियों, नक्सलियों अथवा संगठित गिरोहों से खतरा है. न्यायालय ने कहा कि व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण किसी को खतरा होना सरकारी सुरक्षा पाने का आधार नहीं है. न्यायालय ने यह भी निर्देश दिये हैं कि इस दिशा-निर्देश के अनुपालन के लिए निर्णय की प्रति मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव गृह और डीजीपी को भी भेजी जाए.

यह निर्णय न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा व न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की खंडपीठ ने अधिवक्ता अभिषेक तिवारी की याचिका पर पारित किया. मामले में याची का कहना था कि वह आपराधिक मुकदमों का वकील है और उसने जनहित याचिकाएं भी दाखिल की हैं. इसलिए उसकी जान को खतरा है. न्यायालय ने याची की इस दलील पर कहा कि यदि इस आधार पर सुरक्षा दी जाए तो आपराधिक मुकदमों की प्रैक्टिस करने वाले हर वकील को सुरक्षा देनी होगी. वहीं याचिका का राज्य सरकार की ओर से भी विरोध किया गया. कहा गया कि याची ने खुद पर खतरे की कभी कोई एफआईआर अथवा शिकायत भी नहीं दर्ज कराई है. उस पर कोई खतरा नहीं है. यह भी कहा कि याची का वार्षिक टैक्स रिटर्न 4 लाख 50 हजार रुपये है. उसे पहले दस प्रतिशत खर्चे पर जौनपुर से एक गनर मिला हुआ था. अब उसे लखनऊ से एक गनर चाहिए, जबकि उसे कोई खतरा नहीं होने की रिपेार्ट है.


न्यायालय ने अपने निर्णय में यह भी टिप्पणी भी की कि सरकार और करदाता के पैसे से सुरक्षा प्राप्त कर के खुद को वीआईपी दिखाने की संस्कृति चल रही है. इस प्रैक्टिस को रोकना होगा. न्यायालय ने कहा कि सुरक्षा प्राप्त करने के लिए खतरे का आंकलन वास्तविक होना चाहिए. सुरक्षा समिति इसके सटीक आंकलन के लिए खुफिया एजेंसी व सम्बंधित थाने से रिपोर्ट प्राप्त करे. न्यायालय ने कहा कि जिस व्यक्ति ने सुरक्षा की मांग की है, उसका पिछला रिकॉर्ड भी देखा जाना चाहिए.

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