लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विनय पाठक की याचिका खारिज कर दी है. न्यायालय ने कहा कि प्रो. पाठक के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध है. लिहाजा एफआईआर खारिज नहीं की जा सकती. पाठक ने अपने खिलाफ इंदिरानगर थाने में दर्ज एफआईआर को चुनौती दी थी.
यह निर्णय न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान व न्यायमूर्ति विवेक कुमार सिंह (Justice Rajesh Singh chauhan and Justice Vivek Kumar Singh) की खंडपीठ ने पारित किया है. न्यायालय ने याची, राज्य सरकार व वादी के अधिवक्ताओं की बहस सुनने के बाद अपना निर्णय 10 नवंबर को सुरक्षित कर लिया था. बहस के दौरान याची की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एलपी मिश्रा (Senior Advocate LP Mishra) ने दलील दी कि एफआईआर में लगाए गए आरोपों के अनुसार याची के विरुद्ध आईपीसी की धारा 386 (IPC section 386) का मामला नहीं बनता. उन्होंने यह भी दलील दी कि मामले में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act) की धारा 7 भी लगाई गई है. जबकि इस अधिनियम की धारा 17 ए के तहत एफआईआर दर्ज करने से पूर्व नियुक्ति प्राधिकारी से संस्तुति लेना अनिवार्य है जो इस मामले में नहीं ली गई है.
वहीं याचिका का विरोध (protest petition) करते हुए, राज्य सरकार की ओर से विशेष तौर पर नियुक्त वरिष्ठ अधिवक्ता जेएन माथुर व वादी की ओर से आईबी सिंह ने दलील दी कि एफआईआर में लगाए गए आरोपों के अनुसार मामले में संज्ञेय अपराध बन रहा है. निहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के तहत संज्ञेय अपराध के मामलों में एफआईआर खारिज नहीं की जा सकती. न्यायालय में अपने विस्तृत निर्णय में याचिका को खारिज करने के साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि याची चाहे तो अग्रिम जमानत के लिए प्रार्थना पत्र दाखिल कर सकता है, जिसका सम्बंधित अदालत त्वरित निस्तारण करेगी.
उल्लेखनीय है कि प्रो. पाठक की ओर से दाखिल उक्त याचिका में इंदिरा नगर थाने में उनके व एक अन्य के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद् करने व गिरफ़्तारी पर तत्काल रोक लगाने की याचना की गई थी. प्रो. पाठक व प्राइवेट कंपनी के मालिक अजय मिश्रा पर 29 अक्टूबर को इंदिरा नगर थाने में डेविड मारियो डेनिस ने एफआईआर दर्ज कराते हुए आरोप लगाया कि प्रो. पाठक के आगरा विश्वविद्यालय के कुलपति रहने के दौरान उसके कंपनी द्वारा की गए कार्यों के भुगतान के लिए अभियुक्तों ने 15 प्रतिशत कमीशन वसूला. उससे कुल एक करोड़ 41 लाख रुपये की वसूली अभियुक्तों द्वारा जबरन की जा चुकी है. एफआईआर में यह भी कहा गया है कि वादी को उक्त अभियुक्तों से अपनी जान को खतरा है.
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