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एनीमिया से बचाव के लिए जरूरी है स्वस्थ खानपान, कई मामलों में जन्म देने से पहले थम जाती है सांस

एनीमिया से पीड़ित लोगों की संख्या बड़ रही है. यह समस्या खासकर (anemia in women) महिलाओं और बच्चों में पाई जा रही है. इसके लिये 14 सदस्य टास्क टीम का गठन किया गया है, जो कि सिर्फ प्रदेश को एनीमिया मुक्त बनाने की दिशा में कार्य करेंगे. आशा बहुओं की मदद से घर से लोगों को जागरूक किया जाएगा.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 5, 2024, 10:58 PM IST


लखनऊ: खून की कमी होने के चलते कई बार मरीजों की मौत हो जाती है. खून की कमी ज्यादातर महिलाओं में या फिर बच्चों को होती है. गर्भवतियों में खून की कमी होने के चलते, बच्चे या तो कुपोषित पैदा होते हैं या फिर कई बीमारियों से घिरे हुए पैदा होते हैं. एनीमिया मुक्त भारत (एएमबी) बनाने के लिए 2018 से चल रहे कार्यक्रम में अभी सफलता नहीं मिली. महिला रोग विशेषज्ञ के मुताबिक एनीमिया से पीड़ित गर्भवती महिलाएं अस्पतालों में बहुत आती हैं. कई बार एनीमिक मां की बच्चे को जन्म देने से पहले ही सांसें थम जाती हैं.

बड़ी आबादी को एनीमिया: वीरांगना झलकारी बाई महिला अस्पताल की सीएमएस डॉक्टर निवेदिता ने बताया कि वर्तमान में भारी संख्या में गर्भवती महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं. एनीमिया होना मतलब खून की कमी होना. आमतौर पर महिलाओं को खून की कमी होती है. उनका हीमोग्लोबिन 9 अंक के नीचे रहता है, जो की बेहद कम होता है. महिलाओं में 12 से 14 के बीच में हीमोग्लोबिन होना चाहिए तभी वह स्वस्थ की श्रेणी में कहलाएंगी. उन्होंने बताया कि रोजाना अस्पताल की ओपीडी करीब 150 गर्भवतियों की चलती है. जिसमें 60 प्रतिशत से अधिक महिलाएं एनीमिया से पीड़ित होती हैं. कई बार प्रसव से पहले जब जांच होती है, तो इस समय गर्भवती के परिवार वालों को कहा जाता है कि वह जरूरत के हिसाब से हीमोग्लोबिन का स्तर रखें ताकि प्रसव के बाद अगर जरूरत पड़े तो कोई दिक्कत न हो. उन्होंने कहा कि जब कोई गर्भवती महिला एनीमिया से ग्रसित होती है, तो उस केस में बहुत कॉम्प्लिकेशन हो जाते हैं. कई बार बच्चे की मौत तक हो जाती है.

कम उम्र के युवा होते है एनीमिया के शिकार: लोहिया संस्थान के ब्लड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के डॉ. सुब्रत चंद्रा ने बताया कि कम उम्र के युवा एनीमिया के शिकार हो रहे हैं. खानपान ठीक तरीके से नहीं होने के कारण शरीर में ब्लड बनना रूक जाता है. ब्लड ट्रांसफ्यूज़न का मतलब होता है एक नस के माध्यम से शरीर में रक्त चढ़ाना. आपके शरीर की जरूरत के आधार पर, आपके डॉक्टर लाल रक्त कोशिकाओं, सफेद रक्त कोशिकाओं, प्लेटलेट्स या क्लॉटिंग कारकों, प्लाज्मा या पूरे खून चढ़ाने का फैसला ले सकते हैं. खून कई सारे छोटे सेल्स से मिलकर बना होता है, जो शरीर में तरह-तरह की भूमिका निभाते हैं.

इसे भी पढ़े-जीरो फिगर की चाहत महिलाओं और लड़कियों के लिए घातक, ये हैं बचाव के उपाय

जंक फूड खाने से बचे: डॉ. चंद्रा ने कहा कि मौजूदा समय में ज्यादातर जो युवा पीढ़ी है, फास्ट फूड खाना ज्यादा पसंद करते हैं. यही कारण है कि आज प्रदेश के 50 फीसदी से ज्यादा लोग एनीमिया के शिकार हैं. इन में युवाओं की संख्या अधिक है. क्योंकि युवा हेल्दी फूड खाने के बजाए जंक फूड खाना पसंद करते हैं. युवा अपने खानपान पर विशेष ध्यान रखें, हेल्थी डाइट लें. सप्ताह में एक बार अच्छे से जंक फूड खाएं, बाकी दिन हेल्दी खाना खाए. जिससे उनका हीमोग्लोबिन कम न हो. उन्होंने साफ शब्दों में बताया कि एनीमिया मतलब खून की कमी. यह तब होता है, जब शरीर के रक्त में लाल कणों या कोशिकाओं के नष्ट होने की दर, उनके निर्माण की दर से अधिक होती है.

परिवार कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा के मुताबिक बड़ी संख्या में लोग एनीमिया की दूरी पर है. जिसमें सबसे अधिक संख्या महिलाओं की है. उसके बाद छोटे बच्चों की है. प्रदेश सरकार के द्वारा 2008 तक एनीमिया मुक्त भारत देश बनाने का कार्यक्रम संचालित हो रहा था. जो कि अभी कामयाब नहीं हुआ है. अब भी एनीमिया से पीड़ित लोगों की संख्या काफी अधिक है. इसके लिये 14 सदस्य टास्क टीम का भी गठन किया गया है, जो कि सिर्फ प्रदेश को एनीमिया मुक्त बनाने की दिशा में कार्य करेंगे. आशा बहुओं की मदद से घर से लोगों को जागरूक करने का काम करेंगे. उन्होंने कहा कि टास्क फोर्स ने सचांलित एएमबी कार्यक्रम में बदलाव कर, कुपोषित महिलाओं और बच्चों तक पहुंच कर बाल और मातृ मृत्युदर को कम करने का काम करेंगी.

लक्षण

- त्वचा का सफेद दिखना.
- जीभ, नाखूनों एवं पलकों के अंदर सफेदी.
- कमजोरी एवं बहुत अधिक थकावट.
- चक्कर आना- विशेषकर लेटकर एवं बैठकर उठने में.
- बेहोश होना.
- सांस फूलना.
- हृदयगति का तेज होना.
- चेहरे एवं पैरों पर सूजन दिखाई देना.

कारण

- सबसे प्रमुख कारण लौह तत्व वाली चीजों का उचित मात्रा में सेवन न करना.
- मलेरिया के बाद जिससे लाल रक्त करण नष्ट हो जाते हैं.
- किसी भी कारण रक्त में कमी.

बचाव

- विटामिन 'ए' एवं 'सी' युक्त खाद्य पदार्थ खाएं.
- गर्भवती महिलाओं एवं किशोरी लड़कियों को नियमित रूप से 100 दिन तक लौह तत्व और फॉलिक एसिड की 1 गोली रोज रात को खाने के बाद लेनी चाहिए.
- जल्दी-जल्दी गर्भधारण से बचना चाहिए.
- भोजन के बाद चाय के सेवन से बचें, क्योंकि चाय भोजन से मिलने वाले जरूरी पोषक तत्वों को नष्‍ट करती है.
- काली चाय एवं कॉफी पीने से बचें.
- संक्रमण से बचने के लिए स्वच्छ पेयजल ही इस्तेमाल करें.
- स्वच्छ शौचालय का प्रयोग करें.
- खाना लोहे की कड़ाही में पकाएं.

यह भी पढ़े-ये भाग दौड़ भरी जिंदगी कहीं बना न दें एनीमिया का शिकार


लखनऊ: खून की कमी होने के चलते कई बार मरीजों की मौत हो जाती है. खून की कमी ज्यादातर महिलाओं में या फिर बच्चों को होती है. गर्भवतियों में खून की कमी होने के चलते, बच्चे या तो कुपोषित पैदा होते हैं या फिर कई बीमारियों से घिरे हुए पैदा होते हैं. एनीमिया मुक्त भारत (एएमबी) बनाने के लिए 2018 से चल रहे कार्यक्रम में अभी सफलता नहीं मिली. महिला रोग विशेषज्ञ के मुताबिक एनीमिया से पीड़ित गर्भवती महिलाएं अस्पतालों में बहुत आती हैं. कई बार एनीमिक मां की बच्चे को जन्म देने से पहले ही सांसें थम जाती हैं.

बड़ी आबादी को एनीमिया: वीरांगना झलकारी बाई महिला अस्पताल की सीएमएस डॉक्टर निवेदिता ने बताया कि वर्तमान में भारी संख्या में गर्भवती महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं. एनीमिया होना मतलब खून की कमी होना. आमतौर पर महिलाओं को खून की कमी होती है. उनका हीमोग्लोबिन 9 अंक के नीचे रहता है, जो की बेहद कम होता है. महिलाओं में 12 से 14 के बीच में हीमोग्लोबिन होना चाहिए तभी वह स्वस्थ की श्रेणी में कहलाएंगी. उन्होंने बताया कि रोजाना अस्पताल की ओपीडी करीब 150 गर्भवतियों की चलती है. जिसमें 60 प्रतिशत से अधिक महिलाएं एनीमिया से पीड़ित होती हैं. कई बार प्रसव से पहले जब जांच होती है, तो इस समय गर्भवती के परिवार वालों को कहा जाता है कि वह जरूरत के हिसाब से हीमोग्लोबिन का स्तर रखें ताकि प्रसव के बाद अगर जरूरत पड़े तो कोई दिक्कत न हो. उन्होंने कहा कि जब कोई गर्भवती महिला एनीमिया से ग्रसित होती है, तो उस केस में बहुत कॉम्प्लिकेशन हो जाते हैं. कई बार बच्चे की मौत तक हो जाती है.

कम उम्र के युवा होते है एनीमिया के शिकार: लोहिया संस्थान के ब्लड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के डॉ. सुब्रत चंद्रा ने बताया कि कम उम्र के युवा एनीमिया के शिकार हो रहे हैं. खानपान ठीक तरीके से नहीं होने के कारण शरीर में ब्लड बनना रूक जाता है. ब्लड ट्रांसफ्यूज़न का मतलब होता है एक नस के माध्यम से शरीर में रक्त चढ़ाना. आपके शरीर की जरूरत के आधार पर, आपके डॉक्टर लाल रक्त कोशिकाओं, सफेद रक्त कोशिकाओं, प्लेटलेट्स या क्लॉटिंग कारकों, प्लाज्मा या पूरे खून चढ़ाने का फैसला ले सकते हैं. खून कई सारे छोटे सेल्स से मिलकर बना होता है, जो शरीर में तरह-तरह की भूमिका निभाते हैं.

इसे भी पढ़े-जीरो फिगर की चाहत महिलाओं और लड़कियों के लिए घातक, ये हैं बचाव के उपाय

जंक फूड खाने से बचे: डॉ. चंद्रा ने कहा कि मौजूदा समय में ज्यादातर जो युवा पीढ़ी है, फास्ट फूड खाना ज्यादा पसंद करते हैं. यही कारण है कि आज प्रदेश के 50 फीसदी से ज्यादा लोग एनीमिया के शिकार हैं. इन में युवाओं की संख्या अधिक है. क्योंकि युवा हेल्दी फूड खाने के बजाए जंक फूड खाना पसंद करते हैं. युवा अपने खानपान पर विशेष ध्यान रखें, हेल्थी डाइट लें. सप्ताह में एक बार अच्छे से जंक फूड खाएं, बाकी दिन हेल्दी खाना खाए. जिससे उनका हीमोग्लोबिन कम न हो. उन्होंने साफ शब्दों में बताया कि एनीमिया मतलब खून की कमी. यह तब होता है, जब शरीर के रक्त में लाल कणों या कोशिकाओं के नष्ट होने की दर, उनके निर्माण की दर से अधिक होती है.

परिवार कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा के मुताबिक बड़ी संख्या में लोग एनीमिया की दूरी पर है. जिसमें सबसे अधिक संख्या महिलाओं की है. उसके बाद छोटे बच्चों की है. प्रदेश सरकार के द्वारा 2008 तक एनीमिया मुक्त भारत देश बनाने का कार्यक्रम संचालित हो रहा था. जो कि अभी कामयाब नहीं हुआ है. अब भी एनीमिया से पीड़ित लोगों की संख्या काफी अधिक है. इसके लिये 14 सदस्य टास्क टीम का भी गठन किया गया है, जो कि सिर्फ प्रदेश को एनीमिया मुक्त बनाने की दिशा में कार्य करेंगे. आशा बहुओं की मदद से घर से लोगों को जागरूक करने का काम करेंगे. उन्होंने कहा कि टास्क फोर्स ने सचांलित एएमबी कार्यक्रम में बदलाव कर, कुपोषित महिलाओं और बच्चों तक पहुंच कर बाल और मातृ मृत्युदर को कम करने का काम करेंगी.

लक्षण

- त्वचा का सफेद दिखना.
- जीभ, नाखूनों एवं पलकों के अंदर सफेदी.
- कमजोरी एवं बहुत अधिक थकावट.
- चक्कर आना- विशेषकर लेटकर एवं बैठकर उठने में.
- बेहोश होना.
- सांस फूलना.
- हृदयगति का तेज होना.
- चेहरे एवं पैरों पर सूजन दिखाई देना.

कारण

- सबसे प्रमुख कारण लौह तत्व वाली चीजों का उचित मात्रा में सेवन न करना.
- मलेरिया के बाद जिससे लाल रक्त करण नष्ट हो जाते हैं.
- किसी भी कारण रक्त में कमी.

बचाव

- विटामिन 'ए' एवं 'सी' युक्त खाद्य पदार्थ खाएं.
- गर्भवती महिलाओं एवं किशोरी लड़कियों को नियमित रूप से 100 दिन तक लौह तत्व और फॉलिक एसिड की 1 गोली रोज रात को खाने के बाद लेनी चाहिए.
- जल्दी-जल्दी गर्भधारण से बचना चाहिए.
- भोजन के बाद चाय के सेवन से बचें, क्योंकि चाय भोजन से मिलने वाले जरूरी पोषक तत्वों को नष्‍ट करती है.
- काली चाय एवं कॉफी पीने से बचें.
- संक्रमण से बचने के लिए स्वच्छ पेयजल ही इस्तेमाल करें.
- स्वच्छ शौचालय का प्रयोग करें.
- खाना लोहे की कड़ाही में पकाएं.

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