लखनऊः उच्च न्यायालय के महामना सभागार में मंगलवार की देर शाम भारतीय भाषा आंदोलन द्वारा हिंदी दिवस पर संगोष्ठी आयोजित की गई. इस संगोष्ठी में न्यायमूर्ति देवेंद्र उपाध्याय ने हिंदी को समृद्ध बनाने की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने कहा कि न्यायालयों में हिंदी में काम करने का हमें विधिक अधिकार हासिल है, लेकिन हीन भावना निकालनी होगी.
न्यायमूर्ति ने कहा कि विधि के क्षेत्र में हिंदी में काफी काम हुआ है. हिंदी का सबसे बड़ा नुकसान हिंदी वालों ने किया है. हिंदी के प्रगति के लिए इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए नई शब्दावली गढ़नी होगी. रस्म अदायगी और नारेबाजी से हिंदी की प्रगति हो सकेगी, इसमें हमें शंका है. भाषा के विकास के लिये शासन के संरक्षण की आवश्यकता है. नागरी प्रचारिणी सभा ने इसमें अच्छा काम किया है. महावीर प्रसाद ने हिंदी के लिए अच्छा काम किया है. हिंदी में अच्छा स्टेनो नहीं मिलता. राम चन्द्र गुहा ने लिखा है. न्यायमूर्ति देवेंद्र उपाध्याय ने कहा कि बुद्धिजीवी वर्ग पहले कम से कम दो भाषाओं को जानते थे लेकिन अब ऐसा नहीं हैं. हिंदी में बहस करने वाले अधिवक्ताओं का मैं पूरी तरह स्वागत करता हूं.
हिंदी भाषा में शब्द ही नहीं जीवन है
राज्य उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष अशोक कुमार ने कहा कि न्यायालयों में अंग्रेजी के प्रयोग से वादी को यह पता ही नहीं चल पाता कि शाम को जो वकील साहब ने जो पूछा था न्यायालय में वही बात कही कि नहीं. उन्होंने कहा कि यह बात उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति के रूप समझी और अपने सभी निर्णय हिंदी में दिए. कहा कि हिंदी का उद्भव संस्कृत से है लेकिन अब संस्कृत के आचार्य और विद्यार्थी दिखाई ही नहीं देते. उन्होंने कहा कि मैं सभी कार्य हिंदी में करता रहा हूं. न्यायमूर्ति ए आर मसूदी ने कहा कि आज मुझे इस बात की खुशी है कि मेरे न्यायालय में एक अधिवक्ता ने हमसे हिंदी में बहस की. मुझे उम्मीद है कि लखनऊ से हिंदी के लिए जो आवाज उठी है वह दिल्ली तक जाएगी. भाषा की प्रगति तभी होती है जब उसके प्रति जिज्ञासा होती है. हिंदी भाषा में शब्द ही नहीं जीवन है.
संसद में अंग्रेजी बोलने के लिए मिली थी सिर्फ 15 साल की छूट
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अरुण भरद्वाज ने कहा कि भारतीय संविधान में संसद में अंग्रेजी में बोलने की छूट सिर्फ पंद्रह साल के लिए दी गई थी. यही व्यवस्था विधानसभा सभा के लिए की गई थी. न्यायपालिका की भाषा केवल अंग्रेजी ही रखी गई है, इसमें सुधार की आवश्यकता है. अनुच्छेद 348 न्याय का अधिकार नहीं है. हम वह कहते हैं जो वादी को समझ में न आए, यह एक विचित्र सी स्थिति है. हमें भी पढ़ना पड़ेगा कोर्ट किस भाषा में निर्णय दे सकता है. भारतीय भाषाओं के लिए लड़ाई लड़नी होगी. सांस्कृतिक गुलामी वह होती है. कार्यक्रम में करुणा शंकर श्रीवास्तव, ललित मोहन सिंह, कमलेश गुप्त, हरि गोविंद उपाध्याय, एआर उपाध्याय, राजेश सिंह चौहान, करुणेश सिंह पंवार, अरुण भरद्वाज अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट। इस अवसर पर रमाकांत श्रीवास्तव, विजय बहादुर वर्मा, पूनम गौर को सम्मानित किया गया.