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रूमी दरवाजे में बढ़ती दरारों से गहराया अस्तित्व पर संकट - रूमी दरवाजे में दरार

लखनऊ में मुगलकाल का बना रूमी दरवाजा काफी प्रसिद्ध है. यह आज लखनऊ की सिग्नेचर बिल्डिंग है, लेकिन इस पर खतरा मंडरा रहा है. इसके ऊपरी हिस्से में दरार पड़ने लगी है.

Growing crack in Rumi darwaja in lucknow
रूमी दरवाजा.
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Published : Jun 11, 2021, 9:45 PM IST

लखनऊः राजधानी में नवाबों ने एक से बढ़कर एक खूबसूरत और वास्तुकला के ढंग से नायाब इमारतों का निर्माण कराया है. नवाब तो नहीं है, लेकिन उनकी बनवाई हुई, इन खूबसूरत इमारतों को देश के कोने-कोने से देखने के लिए पर्यटक जरूर आते हैं और कहते हैं 'वाह लखनऊ'. वहीं अवध की नवाब आसफुद्दौला ने अकाल राहत प्रोजेक्ट के तहत रूमी दरवाजे का निर्माण 1786 ईसवी में कराया था.

यह दरवाजा लखनऊ की एक सिग्नेचर इमारत के तौर पर पहचाना जाता है. इसका संरक्षण का काम भारतीय पुरातत्व विभाग के द्वारा किया जा रहा है, लेकिन हाल के दिनों में इस दरवाजे के कई हिस्से जर्जर होकर टूट रहे हैं. वहीं दरवाजे के ऊपर के हिस्से में दरार आ गई है. जिसके कारण इस रूमी दरवाजे की भव्यता और सुंदरता पर ग्रहण लग रहा है. वहीं पुरातत्व विभाग के द्वारा सर्वे तो जरूर कराया गया है, लेकिन आज तक मरम्मत नहीं शुरू हुई. ऐसे में लखनऊ की इस पहचान पर ही संकट के बादल मंडराने लगे हैं.

रूमी दरवाजे में बढ़ती दरारें.

लखनऊ की पहचान पर मंडरा रहा है संकट

इतिहासकार नवाब मीर जाफर अब्दुल्लाह ने बताया है कि लगातार दरवाजे से गुजर रहे ट्रैफिक की आवाजाही से इस इमारत को खतरा पहुंच रहा है. पुरातत्व विभाग के द्वारा इसका सर्वेक्षण कराया गया था, लेकिन मरम्मत नहीं हुई. इस इमारत का निर्माण में लखौरी ईंट, चुना और सुरखी का प्रयोग किया गया है, जिससे इसमें सीलन आती रहती है. उन्होंने कहा कि जल्द ही इसकी मरम्मत नहीं कराई गई तो इसके अस्तित्व पर ही खतरा आ सकता है.

इसे भी पढ़ें- अकाल के दौरान नवाब ने आखिर क्यों बना दी यह खूबसूरत इमारत, जानें हकीकत

वास्तुकला का नायाब नमूना है रूमी दरवाजा

नवाब आसफुद्दौला ने 1786 में रूमी दरवाजे का निर्माण कराया था. इसकी बनावट तुर्की के सुल्तान के दरबार के प्रवेश द्वार से काफी मिलती है. इसलिए इस दरवाजे को तुर्किश गेट के नाम से भी जाना जाता है. इसकी ऊंचाई 62 फीट है और इसकी ऊपरी भाग में छतरीनुमा कई आकृतियां बनी हुई हैं. इतिहासकारों के द्वारा बताया जाता है कि उस समय दरवाजे के ऊपरी भाग में लैंप रखे जाते थे जो अंधेरे में इस दरवाजे को रोशन करने का काम करते थे.

लखनऊः राजधानी में नवाबों ने एक से बढ़कर एक खूबसूरत और वास्तुकला के ढंग से नायाब इमारतों का निर्माण कराया है. नवाब तो नहीं है, लेकिन उनकी बनवाई हुई, इन खूबसूरत इमारतों को देश के कोने-कोने से देखने के लिए पर्यटक जरूर आते हैं और कहते हैं 'वाह लखनऊ'. वहीं अवध की नवाब आसफुद्दौला ने अकाल राहत प्रोजेक्ट के तहत रूमी दरवाजे का निर्माण 1786 ईसवी में कराया था.

यह दरवाजा लखनऊ की एक सिग्नेचर इमारत के तौर पर पहचाना जाता है. इसका संरक्षण का काम भारतीय पुरातत्व विभाग के द्वारा किया जा रहा है, लेकिन हाल के दिनों में इस दरवाजे के कई हिस्से जर्जर होकर टूट रहे हैं. वहीं दरवाजे के ऊपर के हिस्से में दरार आ गई है. जिसके कारण इस रूमी दरवाजे की भव्यता और सुंदरता पर ग्रहण लग रहा है. वहीं पुरातत्व विभाग के द्वारा सर्वे तो जरूर कराया गया है, लेकिन आज तक मरम्मत नहीं शुरू हुई. ऐसे में लखनऊ की इस पहचान पर ही संकट के बादल मंडराने लगे हैं.

रूमी दरवाजे में बढ़ती दरारें.

लखनऊ की पहचान पर मंडरा रहा है संकट

इतिहासकार नवाब मीर जाफर अब्दुल्लाह ने बताया है कि लगातार दरवाजे से गुजर रहे ट्रैफिक की आवाजाही से इस इमारत को खतरा पहुंच रहा है. पुरातत्व विभाग के द्वारा इसका सर्वेक्षण कराया गया था, लेकिन मरम्मत नहीं हुई. इस इमारत का निर्माण में लखौरी ईंट, चुना और सुरखी का प्रयोग किया गया है, जिससे इसमें सीलन आती रहती है. उन्होंने कहा कि जल्द ही इसकी मरम्मत नहीं कराई गई तो इसके अस्तित्व पर ही खतरा आ सकता है.

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वास्तुकला का नायाब नमूना है रूमी दरवाजा

नवाब आसफुद्दौला ने 1786 में रूमी दरवाजे का निर्माण कराया था. इसकी बनावट तुर्की के सुल्तान के दरबार के प्रवेश द्वार से काफी मिलती है. इसलिए इस दरवाजे को तुर्किश गेट के नाम से भी जाना जाता है. इसकी ऊंचाई 62 फीट है और इसकी ऊपरी भाग में छतरीनुमा कई आकृतियां बनी हुई हैं. इतिहासकारों के द्वारा बताया जाता है कि उस समय दरवाजे के ऊपरी भाग में लैंप रखे जाते थे जो अंधेरे में इस दरवाजे को रोशन करने का काम करते थे.

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