लखनऊः शरद ऋतु में सब्जियों की उपयोगिता बढ़ जाती है, जिसमें प्रोटीन की धनी मटर अपना विशेष स्थान रखती है. इसे शरद ऋतु की रानी के नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि यदि सर्दियों में मटर न हो तो सब्जियों का स्वाद ही नहीं मिलता. वैसे तो पूरे सीजन लोग मटर की सब्जी खाना पसंद करते हैं, लेकिन सर्दियों में इसकी उपयोगिता बढ़ जाती है. इसकी खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली जीवाश्म दोमट एवं बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है. खेत को भली-भांति तैयार करने के लिए चार पांच जुताई करके एवं पाटा चलाकर खेत का समतल कर लेना चाहिए.
बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है. ऐसे तो मटर की बहुत सी परंपरागत प्रजातियां हैं, लेकिन अगेती बुवाई हेतु आर्केल, पंत सब्जी मटर-3 एवं आजाद पी-3 अच्छी प्रजातियां हैं. जिन की बुआई अक्टूबर के प्रथम सप्ताह मे कर देना चाहिए. इसके लिए प्रति हेक्टेयर में 150 से 170 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है. मध्य समय में बुआई के लिए बोनविले, जवाहर मटर-1 एवं आजाद पी-1 अच्छी मानी जाती हैं. इनकी बीज दर 100 से 120 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता पड़ती है. मटर की संकर प्रजाति जीएस-10 का प्रचलन अधिक बड़ा है. दाना मीठा खाने में स्वादिष्ट और काफी समय तक भंडारण क्षमता वाली प्रजाति है.
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एक हेक्टेयर के लिए 60 से 70 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है. जीएस-10 की खेती पिछले कई सालों से किसान करते आ रहे हैं. इस प्रजाति में परंपरागत प्रजाति से दोगुना अधिक उत्पादन होता है. फली लंबी मीठी एवं हरी दानेदार होने के कारण अच्छा बाजार भाव मिल जाता है. यह प्रजाति 65 से 70 दिन में तैयार हो जाती है और कई बार इसकी तुड़ाई होती है. समय पर खाद एवं उर्वरक का प्रयोग करके हमारे किसान भाई अधिक लाभ उठा सकते है.
मटर की खेती के लिए 200 क्विंटल गोबर की खाद पर्याप्त होती है. अच्छी फसल लेने के लिए 40 से 50 किलोग्राम नाइट्रोजन 50 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए. चंद्रभानु गुप्त कृषि स्नातकोत्तर महाविद्यालय के कृषि कीट विज्ञान विभाग के सहायक आचार्य डॉ. सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि मटर की जीएस-10 प्रजाति बहुत अच्छी है. कैश क्रॉप के रूप में इसे उगाकर किसान अधिक लाभ उठा सकते हैं. इस प्रजाति में कीट एवं बीमारियों का प्रकोप कम होता है.