लखनऊ: उत्तर प्रदेश में अखिलेश सरकार के दौरान हुए कथित गोमती रिवरफ़्रंट घोटाले के मामले में एक बार फिर सीबीआई ने सक्रियता दिखाते हुए तत्कालीन सिंचाई मंत्री शिवपाल सिंह यादव से पूछताछ करने के लिए शासन से मंजूरी मांगी है. मंजूरी लेना इस लिहाज से जरूरी था. क्योंकि शिवपाल के साथ पूर्व आईएएस अधिकारीयों से भी पूछताछ होनी है. इसके पहले सीबीआई ने इतनी ही सक्रियता पांच महीने पहले दिखाई थी, जब शासन से तत्कलीन मुख्य सचिव अलोक रंजन व प्रमुख सचिव सिंचाई दीपक सिंघल के खिलाफ जांच की मंजूरी मांगी थी. इस बीच यह सवाल उठता है कि आखिरकार 1438 करोड़ के इस घोटाले में 189 ठेकेदार, इंजीनियर व सिंचाई मंत्री के साथ महज दो ही आईएएस जिम्मेदार थे? या फिर ऐसे कई आईएएस अधिकारी हैं जिन तक जांच की आंच पहुंच ही नहीं सकी.
गोमती रिवर फ्रंट घोटाले का जिन्न उस वक्त बाहर आया है जब मैनपुरी में लोकसभा का उपचुनाव हो रहा है और शिवपाल अखिलेश के करीब जा रहे हैं. हालांकी इस घोटाले की जांच को लेकर सरकार व सीबीआई किस कदर गंभीर है, उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जून 2022 में सीबीआई ने अखिलेश सरकार के दौरान मुख्य सचिव रहे अलोक रंजन व दीपक सिंघल की जांच करने की मंजूरी मांगी गई थी. पांच महीने बीतने को है अब तक दोनों से ही पूछताछ नहीं हो सकी है. हालांकी सवाल उठता है कि ठेकेदारों व इंजीनियरों को जेल भेजने वाली सीबीआई व यूपी सरकार उन आईएएस अधिकारीयों पर शिकंजा क्यों नहीं कस पा रही है.
आलोक रंजन, तत्कालीन मुख्य सचिव | दीपक सिंघल, तत्कालीन प्रमुख सचिव सिंचाई |
अलोक रंजन उस दौरान मुख्य सचिव थे. साथ ही गोमती रिवर फ्रंट योजना के लिए गठित टास्क फोर्स के अध्यक्ष भी थे. अलोक रंजन पूरे प्रोजेक्ट की खुद मॉनिटरिंग कर रहे थे. अलोक रंजन ने टास्क फोर्स की 23 बैठकें की थीं. इस दौरान वे अधिकारियों को निर्देश दे रहे थे. गैर जरूरी उपकरणों की खरीद, दागी कंपनियों को ठेकों की स्वीकृति और बजट रिवाइज इन्हीं के निर्देशन में होता रहा, लेकिन उन्होंने किसी भी प्रकार से इस पर आपत्ति नहीं जाहिर की थी. | लखनऊ में गोमती नदी के किनाने किनारे बनने वाले रिवर फ्रंट परियोजना का काम तत्कालीन प्रमुख सचिव सिंचाई की देख रेख में शुरू हुआ था। इस काम की जिम्मेदारी उस वक़्त के अधीक्षण अभियंता रूप सिंह यादव को दी गई थी, जो दीपक सिंघल के काफी करीबी था। दीपक सिंघल ने इस प्रॉजेक्ट के 20 से 25 दौरे किए थे। प्रोजेक्ट से जुड़े हर काम का बजट छह से आठ गुना बढ़ गया, नियमों के विरुद्ध टेंडर होते रहे और मनाही के बावजूद एक काम के बजट का इस्तेमाल दूसरे काम में होता रहा। इस दौरान इन्हें कोई गड़बड़ी और अनियमितता नहीं दिखाई दी न ही किसी के खिलाफ जांच करवाई गई। बाद में दीपक सिंघल मुख्य सचिव भी बने तब भी उन्होने कोई भी कार्यवाई नही की। |
राहुल भटनागर, तत्कालीन प्रमुख सचिव वित्त | सुरेश चंद्रा, तत्कालीन प्रमुख सचिव सिंचाई विभाग |
गोमती रिवर फ्रंट की परियोजना के ऐलान होने के बाद इसका बजट 1656 करोड़ रखा गया था. बाद में बजट बढ़ता गया, हर तरफ लूट खसोट होती रही, लेकिन प्रमुख सचिव वित्त होने के नाते राहुल भटनागर ने न रोक लगाई न आपत्ति जताई. दीपक सिंघल के बाद भटनागर मुख्य सचिव भी बने. बावजूद इसके परियोजना की समीक्षा के दौरान उन्हें कोई अनियमितता नहीं दिखी. | तत्कालीन प्रमुख सचिव सिंचाई दीपक सिंह अलोक रंजन के रिटायर्ड होने के बाद मुख्य सचिव बने तो सिचाई विभाग की जिम्मेदारी आईएएस सुरेश चंद्रा को सौंपी गई. इनके सामने गोमती रिवर फ्रंट के सुंदरीकरण के नाम पर करोड़ों रुपयों की लूट होती रही और वह चुप्पी साधे रहे. |
संजीव सरन, तत्कालीन प्रमुख सचिव पर्यावरण | राजशेखर, तत्कालीन डीएम लखनऊ |
गोमती रिवर फ्रंट का जब कार्य चालू था, उस दौरान आईएएस संजीव सरन पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव थे. रिवर फ्रंट परियोजना निर्माण के लिए पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) के बगैर ही गोमती के किनारे दर्जनों क्रशर चला कर नदी को संकरा किया जा रहा था. यही नहीं दोनों तरफ 14 मीटर की दीवार खड़ी की जा रही थी. कंक्रीट का काम होता रहा. इसके बावजूद उन्होंने पर्यावरण नियमों के लिहाज से आपत्ति नहीं दर्ज करवाई. | अखिलेश सरकार के दौरान लखनऊ के डीएम के तौर पर राजशेखर ने लंबी पारी खेली थी. शहर में विकास कार्यों की समीक्षा से लेकर उनके निरक्षण की जिम्मेदारी राजशेखर सक्रिय भूमिका निभाते थे. इसी के चलते तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट गोमती रिवर फ्रंट के काम की गुणवत्ता चेक करने और उसकी प्रगति देखने राजशेखर जाते थे. इसके बाद भी किसी भी अनियमितता को झट से पकड़ने वाले आईएएस राजशेखर को रिवर फ्रंट में हुई लूट खसोट नहीं दिखी. |
वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र त्रिपाठी (Senior Journalist Raghavendra Tripathi) कहते हैं कि यूपी में हुआ खनन घोटाला हो या फिर रिवर फ्रंट घोटाला और खाद्य घोटाला, सीबीआई और शासन सिर्फ छोटी मछलियों का ही शिकार करती है. कोई भी घोटाला उस विभाग के हेड जो आईएएस अधिकारी ही होता है उसके नजरों से छुप नहीं सकता है. ऐसे में उन्हें घोटाले से किनारे कर देना समझ से परे है. बिरले ही देखा गया है कि सीबीआई ने जब शासन से किसी पूर्व या मौजूदा आईएएस अधिकारी की जांच करने के लिए अनुमति मांगी हो तब उन्हें सहमति दी गई हो. कारण साफ है कि शासन में बैठे भी आईएएस अधिकारी ही होते हैं.
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