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यूपी एक खोजः इटली की मीनार की झलक देखनी है तो लखनऊ का यह पैलेस घूम आइए, ये है खासियत

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Published : May 11, 2022, 3:18 PM IST

Updated : May 11, 2022, 4:03 PM IST

यूपी एक खोज में आज हम आपको बताने जा रहे हैं लखनऊ की एक ऐसी प्रसिद्ध इमारत के बारे में जिसमें इटली की प्रसिद्ध पीसा की मीनार की झलक मिलती है. कुछ वजहों से इसका निर्माण पूरा नहीं हो सका. चलिए जानते हैं इस बेहद खास ऐतिहासिक इमारत के बारे में.

सतखंडा पैलेस.
सतखंडा पैलेस.

लखनऊ : अवध के तीसरे बादशाह मुहम्मद अली शाह ने 1842 में सतखंडा पैलेस के नाम से एक अनूठी इमारत लखनऊ में बनवाई थी. इस इमारत में इटली की पीसा की मीनार की झलक देखने को मिलती है. इस इमारत में चारों ओर दरवाजे थे और कहीं से भी हवा के झोंके आ सकते थे इसलिए स्थानीय लोग इसे हवा महल भी कहते हैं.

सतखंडा पैलेस नाम की यह दर्शनीय इमारत राजधानी के उसी हुसैनाबाद क्षेत्र में स्थित है, जहां नवाबों के बनवाए नायाब इमामबाड़े, बावलियां और तालाब स्थित हैं. बादशाह मोहम्मद अली शाह चाहते थे कि इस ऊंचे भवन की छत से शाही इमारतों के दीदार किए जा सकें. उस समय अवध के शाही महलों और इमामबाड़ों की आभा देखते ही बनती थी. इस भवन का निर्माण अवध के तीसरे बादशाह मोहम्मद अली शाह ने 1842 में कराया था. वह आठ जुलाई 1837 को अवध के बादशाह बने थे.

यह बोले इतिहासकार.

ताजपोशी के कुछ दिनों बाद ही उन्होंने छोटे इमामबाड़े सहित कई अन्य इमारतें बनवानी शुरू कीं, जो 1841 तक बनकर तैयार हो चुकी थीं. इन्हीं भवनों के निकट सतखंडा पैलेस के निर्माण का काम जारी था. इतिहासकार मानते हैं कि यह इमारत इटली की प्रसिद्ध पीसा की मीनार से मिलती-जुलती है. हालांकि यह इमारत कुछ मायनों में इटली की इमारत से भी उत्कृष्ट मानी जाती है. महलनुमा इस मीनार की चौड़ाई और हर तल की ऊंचाई पीसा की मीनार से मिलती-जुलती है.

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हां, इसकी मेहराबों की डिजाइन शानदार है. इस भवन के हर तल का कोण बदला गया है. साथ ही मेहराबों की बनावट में भी परिवर्तन देखने को मिलता है. पीसा की मीनार पत्थरों से बनाई गई थी, जबकि सतखंडा पैलेस को लखौरी ईंटों और चूने से बनवाया गया था. बादशाह मोहम्मद अली शाह का निधन कई निर्माणाधीन भवनों के बनकर तैयार हो जाने से पहले ही हो गया था.

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इनमें सतखंडा पैलेस, जुम्मा मस्जिद और बारादरी की इमारतें प्रमुख थीं. दुर्भाग्य से सतखंडा इमारत को आगे के किसी भी बादशाह ने पूरा कराने का प्रयास नहीं किया, क्योंकि उस दौर में माना जाता था कि जो इमारत कोई बनवा रहा होता था और यदि बीच में ही उसका निधन हो जाए तो उसे मनहूस मान लिया जाता था. यही कारण था कि फिर उसमें कोई हाथ नहीं लगाता था. कोई नहीं जानता कि इस इमारत को सतखंडा क्यों कहते हैं? इस इमारत के चार खंड ही मौजूद हैं, पर ऐसा माना जाता है कि इसके छह खंड बन चुके थे और दो और बनने थे. दरअसल में यह इमारत नौखंडा बननी थी, हालांकि बादशाह के निधन के कारण उनका यह ख्वाब अधूरा ही रह गया.

मोहम्मद अली शाह 67 साल की उम्र में अवध के बादशाह बने जिस समय उन्हें सल्तनत मिली वह गठिया रोग से पीड़ित थे. उनके हाथ भी कांपते थे. वह अपने हाथों से खाना भी नहीं खा सकते थे. इसके बावजूद उन्हें बहुत कुशल शासक माना जाता था. उन्होंने लखनऊ में कई नायाब निर्माण कराए और अच्छा शासन देकर अपनी योग्यता साबित की.

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लखनऊ : अवध के तीसरे बादशाह मुहम्मद अली शाह ने 1842 में सतखंडा पैलेस के नाम से एक अनूठी इमारत लखनऊ में बनवाई थी. इस इमारत में इटली की पीसा की मीनार की झलक देखने को मिलती है. इस इमारत में चारों ओर दरवाजे थे और कहीं से भी हवा के झोंके आ सकते थे इसलिए स्थानीय लोग इसे हवा महल भी कहते हैं.

सतखंडा पैलेस नाम की यह दर्शनीय इमारत राजधानी के उसी हुसैनाबाद क्षेत्र में स्थित है, जहां नवाबों के बनवाए नायाब इमामबाड़े, बावलियां और तालाब स्थित हैं. बादशाह मोहम्मद अली शाह चाहते थे कि इस ऊंचे भवन की छत से शाही इमारतों के दीदार किए जा सकें. उस समय अवध के शाही महलों और इमामबाड़ों की आभा देखते ही बनती थी. इस भवन का निर्माण अवध के तीसरे बादशाह मोहम्मद अली शाह ने 1842 में कराया था. वह आठ जुलाई 1837 को अवध के बादशाह बने थे.

यह बोले इतिहासकार.

ताजपोशी के कुछ दिनों बाद ही उन्होंने छोटे इमामबाड़े सहित कई अन्य इमारतें बनवानी शुरू कीं, जो 1841 तक बनकर तैयार हो चुकी थीं. इन्हीं भवनों के निकट सतखंडा पैलेस के निर्माण का काम जारी था. इतिहासकार मानते हैं कि यह इमारत इटली की प्रसिद्ध पीसा की मीनार से मिलती-जुलती है. हालांकि यह इमारत कुछ मायनों में इटली की इमारत से भी उत्कृष्ट मानी जाती है. महलनुमा इस मीनार की चौड़ाई और हर तल की ऊंचाई पीसा की मीनार से मिलती-जुलती है.

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हां, इसकी मेहराबों की डिजाइन शानदार है. इस भवन के हर तल का कोण बदला गया है. साथ ही मेहराबों की बनावट में भी परिवर्तन देखने को मिलता है. पीसा की मीनार पत्थरों से बनाई गई थी, जबकि सतखंडा पैलेस को लखौरी ईंटों और चूने से बनवाया गया था. बादशाह मोहम्मद अली शाह का निधन कई निर्माणाधीन भवनों के बनकर तैयार हो जाने से पहले ही हो गया था.

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इनमें सतखंडा पैलेस, जुम्मा मस्जिद और बारादरी की इमारतें प्रमुख थीं. दुर्भाग्य से सतखंडा इमारत को आगे के किसी भी बादशाह ने पूरा कराने का प्रयास नहीं किया, क्योंकि उस दौर में माना जाता था कि जो इमारत कोई बनवा रहा होता था और यदि बीच में ही उसका निधन हो जाए तो उसे मनहूस मान लिया जाता था. यही कारण था कि फिर उसमें कोई हाथ नहीं लगाता था. कोई नहीं जानता कि इस इमारत को सतखंडा क्यों कहते हैं? इस इमारत के चार खंड ही मौजूद हैं, पर ऐसा माना जाता है कि इसके छह खंड बन चुके थे और दो और बनने थे. दरअसल में यह इमारत नौखंडा बननी थी, हालांकि बादशाह के निधन के कारण उनका यह ख्वाब अधूरा ही रह गया.

मोहम्मद अली शाह 67 साल की उम्र में अवध के बादशाह बने जिस समय उन्हें सल्तनत मिली वह गठिया रोग से पीड़ित थे. उनके हाथ भी कांपते थे. वह अपने हाथों से खाना भी नहीं खा सकते थे. इसके बावजूद उन्हें बहुत कुशल शासक माना जाता था. उन्होंने लखनऊ में कई नायाब निर्माण कराए और अच्छा शासन देकर अपनी योग्यता साबित की.

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Last Updated : May 11, 2022, 4:03 PM IST
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