पटना : भारत एक ऐसा देश है जहां चुनाव की निरंतरता बनी रहती है. एक खत्म हुआ नहीं कि दूसरा सामने आ खड़ा होता है. अभी हाल ही में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) खत्म हुए नहीं कि यूपी चुनाव (UP Elections) की आहट सुनाई देने लगी है.
वैसे भी उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है और यहां की राजनीतिक फिजा दिल्ली के सिंहासन को तय करती है. ऐसे में यूपी चुनाव को लेकर अभी से ही बिसात बिछने लगी है. पार्टियां तैयारियों में जुटी है. आज हम बात करते हैं भारतीय जनता पार्टी (BJP) की.
यूपी चुनाव में बीजेपी की रणनीति
पश्चिम बंगाल में भले ही बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा हो पर वो किसी भी सूरत में यूपी को अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहती है. कहा जाता है उत्तर प्रदेश और बिहार में बेटी-रोटी का रिश्ता है. ऐसे में बिहार के नेताओं को यूपी में तरजीह मिलने लगी है. बीजेपी ने बिहार के दिग्गज नेताओं को उत्तर प्रदेश में अहम जिम्मेदारी भी सौंपी है.
बिहार के नेताओं की यूपी में अहम भूमिका
जाति की राजनीति किसी से छिपी नहीं है. बीजेपी ने बिहार के सवर्ण जाति के नेता राधामोहन सिंह (Radha Mohan Singh) को यूपी का प्रभारी बनाया है. बताया जाता है कि सवर्ण जाति के वोटर्स को साधने के लिए राधा मोहन सिंह को ये जिम्मेदारी सौंपी गई है. राधा मोहन यूपी की सियासी नब्ज को पहचानने के साथ पार्टी में अपनी सांगठनिक क्षमता के लिए भी जाने जाते हैं.
बिहार के नेता तैयार करेंगे चुनावी रोडमैप
वहीं, दीघा विधायक संजीव चौरसिया (Sanjiv Chaurasia) उत्तर प्रदेश में सह प्रभारी हैं. संजीव चौरसिया बिहार में दूसरी बार विधायक बने हैं. जिनकी ओबीसी वोटर्स पर अच्छी पकड़ है. इसके अलावा बिहार बीजेपी के कई ऐसे नेता हैं, जिनकी उत्तर प्रदेश की राजनीति में मजबूत दखल माना जाता है. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में बीजेपी की रणनीति रंग नहीं लाई थी और पार्टी वहां सरकार बनाने से दूर रह गई. ऐसे में बिहार के नेताओं की भूमिका यूपी में अहम होने वाली है.
यूपी चुनाव में दिखेगी बिहार की छाप
यूपी की राजनीति में बिहार का अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है. बिहार के राजनीतिक दल भी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ताकत के साथ लड़ते रहे हैं. खास तौर पर पूर्वांचल का इलाका बिहार के प्रभाव में माना जाता है. बिहार के नेताओं की भूमिका भी पूर्वांचल की राजनीति बहुत हद तक तय करती है. बिहार और उत्तर प्रदेश का रिश्ता बेटी रोटी का है, ऐसे में बिहार के राजनीतिक दलों को भी उत्तर प्रदेश से काफी उम्मीदें रहती हैं.
यूपी में जातिगत समीकरण
यूपी के चुनावों के बारे में कहा जाता है कि यहां वोटर प्रत्याशी को नहीं जाति को वोट देते हैं. यूपी विधानसभा चुनाव में जिस पार्टी को 30 प्रतिशत वोट मिलते हैं, उसकी जीत तय मानी जाती है.
बिहार में जदयू, वीआईपी और हम पार्टी बीजेपी की सहयोगी पार्टी हैं. पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने किसी भी सहयोगी दल के साथ गठबंधन नहीं किया था, लेकिन पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में शिकस्त मिलने के बाद बीजेपी सहयोगी दलों की भूमिका को लेकर मंथन कर रही है. सहयोगी दल भी गठबंधन को लेकर बीजेपी की ओर आस लगाए बैठे हैं. ऐसे में पूर्वांचल में छोटे दलों की भूमिका अहम हो सकती है.
''जीतन राम मांझी देश के बड़े दलित नेता हैं और दलितों को उन पर भरोसा है. अगर हम पार्टी गठबंधन में चुनाव लड़ेगी तो निश्चित रूप से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को फायदा होगा.''- दानिश रिजवान, राष्ट्रीय प्रवक्ता, हम पार्टी
''उत्तर प्रदेश में हम चुनाव लड़ते आ रहे हैं, हमारी पार्टी का वहां मजबूत जनाधार है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तय करेंगे कि वहां चुनाव में हमें किस तरीके से जाना है.''-अभिषेक झा, जदयू प्रवक्ता
''उत्तर प्रदेश चुनाव में बिहार भाजपा की भूमिका अहम है. उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों के बीच पारिवारिक संबंध है और बिहार के नेता भी वहां बढ़-चढ़कर अपनी भूमिका निभाएंगे. जहां तक गठबंधन का सवाल है तो उत्तर प्रदेश की इकाई और केंद्रीय नेतृत्व गठबंधन में चुनाव लड़ने पर फैसला लेगा.''- प्रेम रंजन पटेल, भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता
''बिहार और उत्तर प्रदेश की राजनीति जातिगत आधार पर होती है और जातिगत राजनीति में जाति के नेताओं का बोलबाला रहता है. बिहार के छोटे दल वहां भले ही गेमचेंजर की भूमिका में ना हो, लेकिन अगर वह साथ लड़ेंगे तो एनडीए को वोटों का फायदा हो सकता है.''- कौशलेंद्र प्रियदर्शी, वरिष्ठ पत्रकार