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पुलिस रही फेल! तभी तो जारी है टोटल लॉस वाहनों में हेराफेरी का खेल - विधान परिषद सदस्य

यूपी ही नहीं देश के कई राज्यों में वाहन चोरी के सुनियोजित अवैध कारोबार (luxury vehicles) से जुड़े कई खुलासे हो चुके हैं. चोरी की हजारों गाड़ियां बरामद होने के बाद कई वाहन चोर सलाखों के पीछे भेजे गए. वहीं पिछले दिनों फॉर्च्यूनर गाड़ी में नंबर किसी और वाहन का पड़ा होने के साथ ही चेसिस टेंपर होने के मामले का खुलासा ईटीवी भारत ने किया था.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 22, 2023, 5:56 PM IST

Updated : Dec 22, 2023, 9:04 PM IST

लखनऊ : पिछले दिनों भाजपा नेता और विधान परिषद सदस्य उमेश द्विवेदी की फॉर्च्यूनर गाड़ी में नंबर किसी और गाड़ी का पड़ा होने के साथ ही चेसिस टेंपर होने के मामले का खुलासा ईटीवी भारत ने किया था. ईटीवी भारत की पड़ताल में यह भी सामने आया था कि जिस गाड़ी की चेसिस विधायक की गाड़ी में लगी थी, वह असम के डिब्रूगढ़ जिले में कई साल पहले दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद टोटल लॉस हो चुकी है. अब जब ईटीवी ने आगे की पड़ताल की तो पता चला कि टोटल लॉस और वाहन चोरी का अवैध कारोबार एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है. निजी बीमा कंपनियों द्वारा नियामक संस्था भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (इरडा) के आदेश की अनदेखी कर टोटल लॉस गाड़ियों को रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (आरसी) के साथ बेचे जाने के कारण ही यह अवैध कारोबार पनपता है. यदि सरकारी कंपनियों की तरह ही निजी कंपनियां भी इरडा के नियम मानें और टोटल लॉस गाड़ियों की आरसी निरस्त कराने के बाद कबाड़ बेचें, तो वाहन चोरी का किस्सा खत्म हो सकता है. दुखद यह है कि पुलिस इस चोरी और टोटल लॉस के कारोबार को रोकने के लिए कोई भी कदम उठाना नहीं चाहती.


चोरी के खुलासे
चोरी के खुलासे

पहले जान लें कि क्या होता 'टोटल लॉस' : बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण यानी Insurance Regulatory and Development Authority (IRDA) नियमानुसार जब किसी वाहन को दुर्घटना में उसके बीमित मूल्य के 75% से अधिक क्षति होती है, तो उस वाहन को टोटल लॉस (total loss) मान लिया जाता है. किसी भी दुर्घटना के बाद वाहन स्वामी बीमा कंपनी को हादसे की सूचना देता है, जिसके बाद कंपनी किसी सर्वेयर को हादसे में वाहन को हुई क्षति का आकलन कर रिपोर्ट देने के लिए कहती है. यदि सर्वेयर अपनी रिपोर्ट में वाहन की 75% से ज्यादा क्षति की रिपोर्ट देता है, तो बीमा कंपनी बीमित राशि से दुर्घटनाग्रस्त वाहन, जिसे कबाड़ मान लिया जाता है, की कीमत काटकर शेष धन का भुगतान वाहन स्वामी कर करती है. नियामक संस्था इरडा का उद्देश्य बीमा पॉलिसी धारकों के हितों की रक्षा करना, बीमा उद्योग का नियमन, संवर्धन तथा संबंधित व आकस्मिक मामलों पर कार्य करना है. बीमा कंपनियों के लिए यही संस्था नियम-कायदे तय करती है और बीमा कंपनियां इस संस्था के बनाए नियमों को मानने के लिए बाध्य हैं. इसके बावजूद ज्यादातर निजी बीमा कंपनियां अपने लाभ के लिए इरडा के नियमों की अनदेखी करती हैं.

यह भी पढ़ें : असम की चेसिस लगी है भाजपा विधायक की फॉर्च्यूनर में, बड़ा सवाल- कहां से आया गाड़ी का ढांचा

यह भी पढ़ें : फर्जी चेसिस नंबर वाली फॉर्च्यूनर से चल रहे BJP विधायक, मेरठ तक जुड़े तार, क्या है फर्जीवाड़ा?

पुलिस ने पकड़ी थीं गाड़ियां (फाइल फोटो)
पुलिस ने पकड़ी थीं गाड़ियां (फाइल फोटो)

क्या कहते हैं नियम और कौन कर रहा है अनदेखी : इरडा के नियमों को दरकिनार कर तमाम 'टोटल लॉस' के नाम पर देशभर में करोड़ों का अवैध कारोबार चल रहा है. चार वर्ष पहले तक इस घोटाले में कुछ सरकारी कंपनियां भी शामिल थीं, लेकिन लखनऊ में एक ऐसे ही बड़े मामले के पकड़े जाने और ईटीवी भारत (ईनाडु इंडिया) द्वारा जोरशोर से उठाए जाने के बाद 25 जुलाई 2019 को इरडा ने एक आदेश पारित किया कि हादसे में 'टोटल लॉस' घोषित गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (RC) पंजीयन कार्यालय (RTO) से निरस्त कराना होगा. इरडा को यह सर्कुलर इसलिए जारी करना पड़ा, क्योंकि 'टोटल लॉस' हो चुकी गाड़ियों के दस्तावेजों का चोरी की गाड़ियों में दुरुपयोग होने के तमाम मामलों का खुलासा पुलिस ने किया था. इरडा ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि गाड़ी मालिक को दुर्घटनाग्रस्त वाहन का भुगतान तभी किया जाए, जब उनके वाहन का रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (RC) निरस्त करा दिया गया हो. सरकारी बीमा कंपनियों ने तत्काल प्रभाव से इस नियम का पालन शुरू कर दिया, लेकिन निजी कंपनियों ने इसे नहीं माना. यही कारण है कि वाहन चोरी और टोटल लॉस का कारोबार फल-फूल रहा है.

वर्कशाॅप पर बनने आई थी कार (फाइल फोटो)
वर्कशाॅप पर बनने आई थी कार (फाइल फोटो)



कैसे किया जाता है टोटल लॉस गाड़ी का चोरी की गाड़ी में इस्तेमाल : निजी बीमा कंपनियां टोटल लॉस हो चुकी गाड़ी (कबाड़) का रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट निरस्त नहीं करातीं. सूत्रों के मुताबिक, वह ग्राहक को बीमित राशि देने से पहले सर्वेयर के माध्यम से या खुद चुनिंदा कबाड़ियों (इनके बाकायदा गिरोह हैं) को बुलाकर कबाड़ की कीमत लगवाती हैं और उसे कबाड़ी के हाथों कबाड़ की वास्तविक कीमत से कई गुना ज्यादा कीमत पर बेच देती हैं और ग्राहक से सादे सेल लेटर पर दबाव बनाकर साइन करा लेती हैं. इस मामले में गाड़ी मालिक को पता ही नहीं होता कि उसकी गाड़ी कौन खरीद रहा है. कबाड़ी दुर्घटनाग्रस्त वाहन के रंग की नई गाड़ी ऑन डिमांड चोरी कराता है और कबाड़ हो चुकी गाड़ी से चेचिस नंबर काट कर चोरी की गाड़ी में बहुत ही सफाई से वेल्ड कर देता है. इसके साथ ही चोरी की गई गाड़ी पर कबाड़ हो चुकी गाड़ी की नंबर प्लेट लगाकर बेंच दिया जाता है. यह कार्य ज्यादातर महंगी गाड़ियों में ही होता है, लेकिन इसे रोकने के लिए पुलिस कोई प्रयास नहीं करती.

यह भी पढ़ें : लखनऊ: नियमों को ताक पर रख निजी बीमा कंपनियां करा रहीं करोड़ों का गोरखधंधा

यह भी पढ़ें : निजी बीमा कंपनियों के आगे नतमस्तक पुलिस प्रशासन



क्या कहता है मोटर वाहन एक्ट और बीमा कंपनियों को क्या है लाभ : मोटर वाहन एक्ट (Motor vehicle act) 1988 के सेक्शन 55 के अंतर्गत किसी भी वाहन की 75% से अधिक क्षति अथवा Total Loss होने पर उसकी RC 14 दिन के अंदर RTO से निरस्त करानी चाहिए. इरडा ने अपने उपरोक्त आदेश में इसका जिक्र भी किया है. उपरोक्त नियम सरकारी बीमा कंपनीयां तो मानती हैं, परंतु निजी बीमा कंपनियां अपने निजी हितों के कारण इन नियमों को नहीं मान रही हैं. मान लीजिए कि 40 लाख की कोई फॉर्चुनर गाड़ी 'टोटल लॉस' हो गई. गाड़ी की बीमित राशि 35 लाख थी, तो बीमा कंपनी को यह राशि बीमा धारक को देनी होती है. यदि टोटल लॉस गाड़ी (कबाड़) की कीमत दो लाख रुपये मान ली जाए (जो किसी भी टोटल लॉस गाड़ी की अधिकतम कीमत हो सकती है), तो बीमा कंपनी पर भार 33 लाख रुपये रह जाएगा. हालांकि कबाड़ हो चुके वाहन को बीमा कंपनियां 10-15 फीसद महंगा तक बेच देती हैं. इस तरह बीमा कंपनी पर बीमित राशि देने में मामूली खर्च ही आता है. यही कारण है कि निजी बीमा कंपनियां टोटल लॉस गाड़ी की आरसी आरटीओ में जमा नहीं करातीं.


कौन है इसमें शामिल, क्यों नहीं होती कार्रवाई : इस काम में निजी बीमा कंपनियों के अधिकारी, कबाड़ी और अधिकारी शामिल होते हैं. 22 जुलाई 2020 को लखनऊ और कानपुर में 122 गाड़ियां पुलिस ने बरामद कीं, जिनमें छह करोड़ की 62 लग्जरी गाड़ियां शामिल हैं. ऐसा खुलासा कोई पहली बार नहीं हुआ है. 2019 में भी लखनऊ में एक ऐसा ही खुलासा हुआ था, जिसमें करोड़ों रुपये की ऐसी की गाड़ियां बरामद हुई थीं और कुछ लोगों को जेल भी भेजा गया था. देश और प्रदेश में भी ऐसे तमाम खुलासे होते रहे हैं, किंतु किसी भी मामले में बीमा कंपनियों के वह अधिकारी पकड़े नहीं गए, जो अपने हित के लिए इरडा के आदेशों की अनदेखी करते हैं और कबाड़ियों से करोड़ों रुपये कमाते हैं.

यह भी पढ़ें : देशभर में वर्षों से चल रहा ऑन डिमांड वाहन चोरी का गोरखधंधा, अब तक असल गुनहगारों तक नहीं पहुंची पुलिस

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बहुत बड़े गिरोह का हुआ था खुलासा : चोरी की गाड़ियों के खुलासे और टोटल लॉस का अवैध कारोबार बहुत बड़ा है, लेकिन यह पुलिस की प्राथमिकता में नहीं है. 2020 में राजधानी लखनऊ में इस तरह के बहुत बड़े गिरोह का खुलासा तत्कालीन डीसीपी (पूर्वी) सोमेन वर्मा और उनकी टीम ने किया था. वह उस गिरोह की तह तक पहुंच गए थे, लेकिन कुछ दिन बाद ही उनका तबादला हो गया. उस समय 112 चोरी की गाड़ियां बरामद हुई थीं, जिनमें ज्यादातर लग्जरी वाहन थे. यदि उस समय निजी बीमा कंपनियों पर नकेल कसी गई होती, तो शायद स्थिति में कुछ सुधार आता. वहीं एक पुलिस अधिकारी बताते हैं कि 'पुलिस की पहली प्राथमिकता हत्या, बलात्कार जैसे बड़े अपराध होते हैं. इसमें कोई संदेह नहीं कि वाहन चोरी से बहुत लोग प्रभावित होते हैं, लेकिन यह इतना बड़ा अपराध नहीं माना जाता है. वैसे भी यह मामला पुलिस के स्तर से हल नहीं हो सकता. इसके लिए जरूरी कानूनी प्रावधानों में परिवर्तन करना होगा. जिसके चलते निजी बीमा कंपनियां टोटल लॉस की गाड़ियां बेच पाती हैं.'

कानपुर पुलिस ने किया था सराहनीय काम : 30 सितंबर 2020 को पुलिस अधीक्षक नगर पश्चिम, कानपुर ने एक पत्र जारी कर सभी बीमा सर्वेक्षकों (सर्वेयर) से टोटल लॉस की गाड़ियों का नियमित ब्यौरा देने के लिए कहा था. पत्र में लिखा गया था 'विभिन्न सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि बीमा दावे के अंतर्गत पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त वाहनों के कागजों का दुरुपयोग करते हुए उक्त कागजों का अवैधानिक उपयोग चोरी के वाहनों में किया जा रहा है. जैसा कि लखनऊ प्रकरण में देखा गया है. उपरोक्त के संबंध में मोटर वाहन एक्ट 1988 के सेक्शन 55 के अंतर्गत उक्त श्रेणी में आने वाले वाहनों का पंजीयन निरस्त किए जाने का प्रावधान है. जिस संबंध में बीमा नियामक संस्था आईआरडीए द्वारा भी दिशा निर्देश जारी किए गए हैं. जिसके दृष्टिगत आपसे अपेक्षा है कि आपके द्वारा जारी की गई सर्वे रिपोर्ट के आधार पर उन सभी वाहनों का विवरण जो वाहन टोटल लॉस, नेट ऑफ साल्वेज या कैश लॉस के अंतर्गत निस्तारित किए गए हैं, की रिपोर्ट इस कार्यालय को नीचे दिए गए प्रारूप के अनुसार उपलब्ध कराएं.' इस प्रारूप के माध्यम से सर्वेयर की रिपोर्ट के आधार पर कानपुर पुलिस ने कई खुलासे भी किए थे, लेकिन बाद में शिथिलता आ गई.

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लखनऊ : पिछले दिनों भाजपा नेता और विधान परिषद सदस्य उमेश द्विवेदी की फॉर्च्यूनर गाड़ी में नंबर किसी और गाड़ी का पड़ा होने के साथ ही चेसिस टेंपर होने के मामले का खुलासा ईटीवी भारत ने किया था. ईटीवी भारत की पड़ताल में यह भी सामने आया था कि जिस गाड़ी की चेसिस विधायक की गाड़ी में लगी थी, वह असम के डिब्रूगढ़ जिले में कई साल पहले दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद टोटल लॉस हो चुकी है. अब जब ईटीवी ने आगे की पड़ताल की तो पता चला कि टोटल लॉस और वाहन चोरी का अवैध कारोबार एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है. निजी बीमा कंपनियों द्वारा नियामक संस्था भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (इरडा) के आदेश की अनदेखी कर टोटल लॉस गाड़ियों को रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (आरसी) के साथ बेचे जाने के कारण ही यह अवैध कारोबार पनपता है. यदि सरकारी कंपनियों की तरह ही निजी कंपनियां भी इरडा के नियम मानें और टोटल लॉस गाड़ियों की आरसी निरस्त कराने के बाद कबाड़ बेचें, तो वाहन चोरी का किस्सा खत्म हो सकता है. दुखद यह है कि पुलिस इस चोरी और टोटल लॉस के कारोबार को रोकने के लिए कोई भी कदम उठाना नहीं चाहती.


चोरी के खुलासे
चोरी के खुलासे

पहले जान लें कि क्या होता 'टोटल लॉस' : बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण यानी Insurance Regulatory and Development Authority (IRDA) नियमानुसार जब किसी वाहन को दुर्घटना में उसके बीमित मूल्य के 75% से अधिक क्षति होती है, तो उस वाहन को टोटल लॉस (total loss) मान लिया जाता है. किसी भी दुर्घटना के बाद वाहन स्वामी बीमा कंपनी को हादसे की सूचना देता है, जिसके बाद कंपनी किसी सर्वेयर को हादसे में वाहन को हुई क्षति का आकलन कर रिपोर्ट देने के लिए कहती है. यदि सर्वेयर अपनी रिपोर्ट में वाहन की 75% से ज्यादा क्षति की रिपोर्ट देता है, तो बीमा कंपनी बीमित राशि से दुर्घटनाग्रस्त वाहन, जिसे कबाड़ मान लिया जाता है, की कीमत काटकर शेष धन का भुगतान वाहन स्वामी कर करती है. नियामक संस्था इरडा का उद्देश्य बीमा पॉलिसी धारकों के हितों की रक्षा करना, बीमा उद्योग का नियमन, संवर्धन तथा संबंधित व आकस्मिक मामलों पर कार्य करना है. बीमा कंपनियों के लिए यही संस्था नियम-कायदे तय करती है और बीमा कंपनियां इस संस्था के बनाए नियमों को मानने के लिए बाध्य हैं. इसके बावजूद ज्यादातर निजी बीमा कंपनियां अपने लाभ के लिए इरडा के नियमों की अनदेखी करती हैं.

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पुलिस ने पकड़ी थीं गाड़ियां (फाइल फोटो)
पुलिस ने पकड़ी थीं गाड़ियां (फाइल फोटो)

क्या कहते हैं नियम और कौन कर रहा है अनदेखी : इरडा के नियमों को दरकिनार कर तमाम 'टोटल लॉस' के नाम पर देशभर में करोड़ों का अवैध कारोबार चल रहा है. चार वर्ष पहले तक इस घोटाले में कुछ सरकारी कंपनियां भी शामिल थीं, लेकिन लखनऊ में एक ऐसे ही बड़े मामले के पकड़े जाने और ईटीवी भारत (ईनाडु इंडिया) द्वारा जोरशोर से उठाए जाने के बाद 25 जुलाई 2019 को इरडा ने एक आदेश पारित किया कि हादसे में 'टोटल लॉस' घोषित गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (RC) पंजीयन कार्यालय (RTO) से निरस्त कराना होगा. इरडा को यह सर्कुलर इसलिए जारी करना पड़ा, क्योंकि 'टोटल लॉस' हो चुकी गाड़ियों के दस्तावेजों का चोरी की गाड़ियों में दुरुपयोग होने के तमाम मामलों का खुलासा पुलिस ने किया था. इरडा ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि गाड़ी मालिक को दुर्घटनाग्रस्त वाहन का भुगतान तभी किया जाए, जब उनके वाहन का रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (RC) निरस्त करा दिया गया हो. सरकारी बीमा कंपनियों ने तत्काल प्रभाव से इस नियम का पालन शुरू कर दिया, लेकिन निजी कंपनियों ने इसे नहीं माना. यही कारण है कि वाहन चोरी और टोटल लॉस का कारोबार फल-फूल रहा है.

वर्कशाॅप पर बनने आई थी कार (फाइल फोटो)
वर्कशाॅप पर बनने आई थी कार (फाइल फोटो)



कैसे किया जाता है टोटल लॉस गाड़ी का चोरी की गाड़ी में इस्तेमाल : निजी बीमा कंपनियां टोटल लॉस हो चुकी गाड़ी (कबाड़) का रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट निरस्त नहीं करातीं. सूत्रों के मुताबिक, वह ग्राहक को बीमित राशि देने से पहले सर्वेयर के माध्यम से या खुद चुनिंदा कबाड़ियों (इनके बाकायदा गिरोह हैं) को बुलाकर कबाड़ की कीमत लगवाती हैं और उसे कबाड़ी के हाथों कबाड़ की वास्तविक कीमत से कई गुना ज्यादा कीमत पर बेच देती हैं और ग्राहक से सादे सेल लेटर पर दबाव बनाकर साइन करा लेती हैं. इस मामले में गाड़ी मालिक को पता ही नहीं होता कि उसकी गाड़ी कौन खरीद रहा है. कबाड़ी दुर्घटनाग्रस्त वाहन के रंग की नई गाड़ी ऑन डिमांड चोरी कराता है और कबाड़ हो चुकी गाड़ी से चेचिस नंबर काट कर चोरी की गाड़ी में बहुत ही सफाई से वेल्ड कर देता है. इसके साथ ही चोरी की गई गाड़ी पर कबाड़ हो चुकी गाड़ी की नंबर प्लेट लगाकर बेंच दिया जाता है. यह कार्य ज्यादातर महंगी गाड़ियों में ही होता है, लेकिन इसे रोकने के लिए पुलिस कोई प्रयास नहीं करती.

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क्या कहता है मोटर वाहन एक्ट और बीमा कंपनियों को क्या है लाभ : मोटर वाहन एक्ट (Motor vehicle act) 1988 के सेक्शन 55 के अंतर्गत किसी भी वाहन की 75% से अधिक क्षति अथवा Total Loss होने पर उसकी RC 14 दिन के अंदर RTO से निरस्त करानी चाहिए. इरडा ने अपने उपरोक्त आदेश में इसका जिक्र भी किया है. उपरोक्त नियम सरकारी बीमा कंपनीयां तो मानती हैं, परंतु निजी बीमा कंपनियां अपने निजी हितों के कारण इन नियमों को नहीं मान रही हैं. मान लीजिए कि 40 लाख की कोई फॉर्चुनर गाड़ी 'टोटल लॉस' हो गई. गाड़ी की बीमित राशि 35 लाख थी, तो बीमा कंपनी को यह राशि बीमा धारक को देनी होती है. यदि टोटल लॉस गाड़ी (कबाड़) की कीमत दो लाख रुपये मान ली जाए (जो किसी भी टोटल लॉस गाड़ी की अधिकतम कीमत हो सकती है), तो बीमा कंपनी पर भार 33 लाख रुपये रह जाएगा. हालांकि कबाड़ हो चुके वाहन को बीमा कंपनियां 10-15 फीसद महंगा तक बेच देती हैं. इस तरह बीमा कंपनी पर बीमित राशि देने में मामूली खर्च ही आता है. यही कारण है कि निजी बीमा कंपनियां टोटल लॉस गाड़ी की आरसी आरटीओ में जमा नहीं करातीं.


कौन है इसमें शामिल, क्यों नहीं होती कार्रवाई : इस काम में निजी बीमा कंपनियों के अधिकारी, कबाड़ी और अधिकारी शामिल होते हैं. 22 जुलाई 2020 को लखनऊ और कानपुर में 122 गाड़ियां पुलिस ने बरामद कीं, जिनमें छह करोड़ की 62 लग्जरी गाड़ियां शामिल हैं. ऐसा खुलासा कोई पहली बार नहीं हुआ है. 2019 में भी लखनऊ में एक ऐसा ही खुलासा हुआ था, जिसमें करोड़ों रुपये की ऐसी की गाड़ियां बरामद हुई थीं और कुछ लोगों को जेल भी भेजा गया था. देश और प्रदेश में भी ऐसे तमाम खुलासे होते रहे हैं, किंतु किसी भी मामले में बीमा कंपनियों के वह अधिकारी पकड़े नहीं गए, जो अपने हित के लिए इरडा के आदेशों की अनदेखी करते हैं और कबाड़ियों से करोड़ों रुपये कमाते हैं.

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बहुत बड़े गिरोह का हुआ था खुलासा : चोरी की गाड़ियों के खुलासे और टोटल लॉस का अवैध कारोबार बहुत बड़ा है, लेकिन यह पुलिस की प्राथमिकता में नहीं है. 2020 में राजधानी लखनऊ में इस तरह के बहुत बड़े गिरोह का खुलासा तत्कालीन डीसीपी (पूर्वी) सोमेन वर्मा और उनकी टीम ने किया था. वह उस गिरोह की तह तक पहुंच गए थे, लेकिन कुछ दिन बाद ही उनका तबादला हो गया. उस समय 112 चोरी की गाड़ियां बरामद हुई थीं, जिनमें ज्यादातर लग्जरी वाहन थे. यदि उस समय निजी बीमा कंपनियों पर नकेल कसी गई होती, तो शायद स्थिति में कुछ सुधार आता. वहीं एक पुलिस अधिकारी बताते हैं कि 'पुलिस की पहली प्राथमिकता हत्या, बलात्कार जैसे बड़े अपराध होते हैं. इसमें कोई संदेह नहीं कि वाहन चोरी से बहुत लोग प्रभावित होते हैं, लेकिन यह इतना बड़ा अपराध नहीं माना जाता है. वैसे भी यह मामला पुलिस के स्तर से हल नहीं हो सकता. इसके लिए जरूरी कानूनी प्रावधानों में परिवर्तन करना होगा. जिसके चलते निजी बीमा कंपनियां टोटल लॉस की गाड़ियां बेच पाती हैं.'

कानपुर पुलिस ने किया था सराहनीय काम : 30 सितंबर 2020 को पुलिस अधीक्षक नगर पश्चिम, कानपुर ने एक पत्र जारी कर सभी बीमा सर्वेक्षकों (सर्वेयर) से टोटल लॉस की गाड़ियों का नियमित ब्यौरा देने के लिए कहा था. पत्र में लिखा गया था 'विभिन्न सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि बीमा दावे के अंतर्गत पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त वाहनों के कागजों का दुरुपयोग करते हुए उक्त कागजों का अवैधानिक उपयोग चोरी के वाहनों में किया जा रहा है. जैसा कि लखनऊ प्रकरण में देखा गया है. उपरोक्त के संबंध में मोटर वाहन एक्ट 1988 के सेक्शन 55 के अंतर्गत उक्त श्रेणी में आने वाले वाहनों का पंजीयन निरस्त किए जाने का प्रावधान है. जिस संबंध में बीमा नियामक संस्था आईआरडीए द्वारा भी दिशा निर्देश जारी किए गए हैं. जिसके दृष्टिगत आपसे अपेक्षा है कि आपके द्वारा जारी की गई सर्वे रिपोर्ट के आधार पर उन सभी वाहनों का विवरण जो वाहन टोटल लॉस, नेट ऑफ साल्वेज या कैश लॉस के अंतर्गत निस्तारित किए गए हैं, की रिपोर्ट इस कार्यालय को नीचे दिए गए प्रारूप के अनुसार उपलब्ध कराएं.' इस प्रारूप के माध्यम से सर्वेयर की रिपोर्ट के आधार पर कानपुर पुलिस ने कई खुलासे भी किए थे, लेकिन बाद में शिथिलता आ गई.

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Last Updated : Dec 22, 2023, 9:04 PM IST
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