हैदराबाद: यूपी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) को कुछ माह शेष बचे हैं. सियासी तैयारियों का आलम यह है कि बढ़ते ओमीक्रोन के खतरे को (growing threat of Omicron) दरकिनार कर जनसभाओं और यात्राओं का दौर चल रहा है. जिसमें हजारों की संख्या में लोग शरीक हो रहे हैं. लेकिन इन दृश्यों को देख यही जान पड़ता है कि सत्ता की सियासत में इंसान घून की तरह पीसने को मजबूर है. खैर, आज हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के ऐसे में मुख्यमंत्री की जो अपने करीब ढाई साल के कार्यकाल में सिर्फ दंगों और हड़ताल से जूझता रहा. जी हां, हम बात कर रहे हैं मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह की. उनके मुख्यमंत्रित्व काल में कुल 37 दंगे हुए और 181 लोगों की जानें गईं. हालांकि, वीर बहादुर सिंह की मौत भी रहस्यमय तरीके से हुई (The mysterious death of Veer Bahadur Singh) और आज भी उनकी मौत की असल वजह स्पष्ट नहीं हो सकी है.
वीर बहादुर सिंह के शासनकाल (Reign of Veer Bahadur Singh) में 37 जिलों में दंगे हुए. मेरठ के दंगों में 181 लोगों की जानें गईं और इसी दरम्यां अयोध्या विवाद शुरू हो गया. इतना ही नहीं 16 लाख सरकारी कर्मचारी हड़ताल पर चले गए. सिनेमा घरों समेत 29 संस्थानों ने हड़ताल की. किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत (Farmer leader Mahendra Singh Tikait) के आह्वान पर पूरी ग्रामीण जनता हथियार उठाने को अग्रसर थी.
वहीं, 1987 में हुए मेरठ दंगे में वीर बहादुर पर हिन्दू समर्थक होने का आरोप लगा, जिसे उन्होंने सिरे से खारिज करते हुए कहा था कि दंगा तो हमारी राष्ट्रीय समस्या है. प्रधानमंत्री बनने से पहले वीपी सिंह ने एक पब्लिक मीटिंग में वीर बहादुर सिंह को लेकर कहा था, 'इतना कमजोर नेता तो इस राज्य में कभी जन्मा ही नहीं है. कांग्रेस के कैंडिडेट से वो किसी भी सीट पर चुनाव लड़ लें, पता चल जाएगा।'
इधर, 6 बार विधानसभा पहुंचे वीर बहादुर सिंह 1967 में पहली बार गोरखपुर की पनियारा विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए थे. इसके बाद 1969, 1974, 1980 और 1985 तक पांच बार विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए. वे राज्यसभा सदस्य भी रहे. दरअसल, तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद वीर बहादुर सिंह को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया गया. 1985 से 1988 तक वो सूबे के मुख्यमंत्री रहे.
पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने उस समय पूर्वांचल के बाहुबली हरिशंकर तिवारी का विरोध किया, जब कोई ऐसा करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. उस समय जय प्रकाश नारायण का दौर था. पूरे देश में इंदिरा के खिलाफ विरोध की आग सुलग रही थी. लेकिन पूर्वांचल में अलग ही कहानी चल रही थी.
वर्चस्व के लिए अदावत की जंग का एक सिरा बाहुबली हरिशंकर तिवारी थामे हुए थे जो सियासी रूप से भी सक्रिय थे और कांग्रेस में पकड़ मजबूत कर रहे थे. असल में दोनों के बीच अदावत की जंग साल 1974 में शुरू हुई. विधान परिषद चुनाव में वीर बहादुर सिंह ने हरिशंकर तिवारी के खिलाफ एक मजबूत प्रतिद्वंदी बस्ती के शिवहर्ष उपाध्याय को मैदान में उतारा.
कांटे के मुकाबले में वीर बहादुर सिंह का प्रत्याशी 11 वोटों से जीता. तभी से हरिशंकर तिवारी और वीर बहादुर के बीच ठन गई और दोनों एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते थे. इसके बाद वीर बहादुर मुख्यमंत्री बने और प्रदेश की सत्ता संभाली.
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