लखनऊ : राजधानी में सैकड़ों माफिया व बदमाशों ने लखनऊ में अपनी दहशत फैलाई. दिन दहाड़े हत्या, वसूली और अपहरण की वारदातों ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया, लेकिन एक दौर ऐसा भी रहा जब इन दहशतगर्दों को बीच सड़क पर दौड़ा-दौड़ा कर पीटा भी गया. सुभाष भंडारी, राम गोपाल मिश्रा, अन्ना से लेकर श्री प्रकाश शुक्ला और मुख्तार अंसारी ने लखनऊ में जमकर 'रंगबाजी' की. इन्हीं की कहानियों को एक जगह पिरोने का काम किया है यूपी के पूर्व डीजीपी व राज्यसभा सांसद बृजलाल ने. पूर्व डीजीपी बृजलाल (DGP Brijlal new book on mafia Lucknow ke Rangbaaz) जल्द लेकर आ रहे हैं अपनी नई किताब 'लखनऊ के रंगबाज'.
उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी बृजलाल साल 1947 से लेकर अब तक के राजधानी के हर उस माफिया व बदमाश के इतिहास को अपनी आने वाली किताब 'लखनऊ के रंगबाज' में लेकर आ रहे हैं, जिनकी नाम की दहशत पूरे यूपी में थी. उन्होंने अपनी किताब में बेहतरीन तरीके से बताने की कोशिश की है कि कैसे बदमाशों का राज करने का तरीका बदला. बृजलाल बताते हैं कि 'उनकी किताब 'लखनऊ के रंगबाज' की कहानी की शुरूआत आजादी के उस समय से की गई है, जब बड़े व्यापारी ब्याज पर दिए गए पैसों की वसूली के लिए गुमास्ते (एजेंट) लेकर चलते थे. ये लंबे चौड़े हुआ करते थे, सिर पर पगड़ी पहनते थे और हाथों में लट्ठ लेकर चलते थे. इसके बाद अफगानी पठानों ने इन गुमास्ते की जगह ले ली. बृजलाल बताते हैं कि धीरे-धीरे 70 के दशक में लखनऊ के आस-पास के जिलों के पहलवान माफिया कहलाए जाने लगे'. पूर्व डीजीपी बताते हैं कि 'उन्होंने अपनी किताब में सबसे पहले जिस पहलवान का जिक्र किया है वह है लखनऊ में सादिक पहलवान, उसके बाद सीतापुर से लखनऊ आए पहलवान बच्चू प्रसाद दीक्षित, जिसे व्यापारियों ने राशन की दुकानों से टैक्स वसूलने के लिए बुलाया था. बच्चू महाराज ने कम समय में ही राजधानी में अपनी दहशत कायम कर ली थी. इसके बाद इसी दशक में लक्ष्मी महाराज, दर्लभ सिंह, बद्ध करैशी, खालिक पहलवान ने भी दहशतगर्दी फैलाई.
ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बृजलाल ने बताया कि '80 के दशक में उदय हुआ राम गोपाल मिश्रा का. जिसने बच्चू महाराज के साथ मिलकर काम किया, हालांकि राम गोपाल महत्वाकांक्षी था, इसलिए उसने बच्चू की हत्या कर दी और पूरे लखनऊ में अकेले राज करने लगा, बाद में उसे ही मार डाला. इसके बाद बच्चू ने अरुण शुक्ला उर्फ अन्ना महाराज के भाई प्रेम शुक्ला के साथ अपराध की दुनिया में राज करना शुरू किया, लेकिन बाद में उसे भी मार डाला. बृजलाल के मुताबिक, ये वही समय था जब लखनऊ में माफिया की एक लंबी फौज का उदय होने वाला था. अरुण शुक्ला उर्फ अन्ना, गुरू बख्श सिंह बक्शी, सुभाष भंडारी, राम गोपाल मिश्रा ने जमकर उत्पात मचाया. बस-रेलवे स्टैंड व टेंडर के लिए गैंगवार होने लगी'.
बृजलाल कहते हैं इसी वक्त उनकी एंट्री लखनऊ में होती है. 17 जुलाई 1984 को वो एसपी सिटी के तौर पर तैनात किए जाते हैं. उन्होंने सबसे पहले राम गोपाल मिश्रा को नाका थाने में बंद किया, उसके बाद एक-एक अपराधियों का सफाया शुरू किया. उन्होंने बताया कि 'अन्ना अपनी आपराधिक प्रवत्ति से बाज नहीं आ रहा था, वह सिरदर्द बन रहा था. ऐसे में हमारी टीम उसकी गिरफ्तारी के लिए लगी हुई थी. उसी दौरान मई के महीने में लखनऊ विश्वविद्यालय में कुछ कानून व्यवस्था की समस्या थी, जिस कारण मैं वहीं मौजूद था. मेरा एक मुखबिर आता है और मुझे बताता है कि अन्ना लारी बिस्कुट फैक्ट्री में छिपा हुआ है. उसके बाद मैंने अपने एक खास दारोगा को फैक्ट्री में जाकर सूचना की पुष्टि करवाई. विश्वविद्यालय में काम निपटा कर मैं कैसरबाग स्थित अपने ऑफिस आया और सभी डिप्टी एसपी को बुलाकर प्लानिंग की और लारी बिस्कुट फैक्ट्री पहुंचे, जहां अन्ना छिपा हुआ था. शायद उसे सूचना मिल गयी थी कि पुलिस उसे गिरफ्तार करने आ रही है, ऐसे में बाहर फैक्ट्री का जीएम आया और बोला कि यहां अन्ना नहीं है. उन्होंने बताया कि हम अंदर गए बेड पर रखी तकिया हटाई तो एक पिस्टल, 12 बुलेट, एक सोने की चेन और नोट की गड्डी रखी हुई थी. मैंने कहा यहां है अन्ना. वो बेड में छिपा हुआ था. बाहर निकलने पर वो वहां रखी फ्रिज में अपना सिर पीटने लगा, जिससे इंजरी आ जाए और पुलिस उसका एनकाउंटर न कर पाए'. बृजलाल कहते हैं कि 'तमाम ड्रामेबाजी के बाद हम अन्ना को गिरफ्तार कर डालीगंज ले आए. अन्ना महाराज को डालीगंज की सड़कों पर दौड़ा-दौड़ा कर पीटा. उन्होंने कहा कि ये उसकी दहशत खत्म करने के लिए किया गया था'.
उन्होंने अपनी किताब में पूर्वी उत्तर प्रदेश के हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही के बीच होने वाली गैंगवार, 1990 के रेलवे के ठेके में मारपीट का भी गहरा जिक्र किया है. बृजलाल कहते है कि '90 के दशक में रेलवे के ठेके को लेकर ही गुंडई का चलन इतना बढ़ा कि 1998 के बीच श्रीप्रकाश शक्ला का जन्म हुआ और एके-47 की तड़तड़ाहट से जनपथ हजरतगंज में उसने सनसनी फैला दी थी. 13 जून 1998 को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के कैबिनेट में मंत्री रहे बृज बिहारी प्रसाद की हत्या करके एक और सनसनी फैलाई. किताब में 4 मई 1998 में एसटीएफ के बनने से 26 सितंबर 1998 को श्रीप्रकाश शक्ला के एनकाउंटर तक का किस्सा मौजूद है.'
पूर्व डीजीपी लखनऊ के एक और 'रंगबाज' का किस्सा याद करते हुए बताते हैं कि 'साल 2000 में अजीत सिंह उभरे और उनके पीछे गाड़ियों का काफिला चलता था, लेकिन उनके जन्मदिन के दिन उनकी हत्या हो गयी. उसके खात्मे के बाद पूर्वांचल में मुख्तार अंसारी उभरे और उसकी तासीर लखनऊ में भी महसूस हुई.' करीब 163 पन्नों की उनकी यह किताब मार्च 2023 में लांच होगी. उन्होंने बताया कि यह उनकी चौथी पुस्तक होगी. इसके पहले 'इंडियन मजाहिद्दीन निशाने पर गजरात' और पश्चिमी यूपी की गैंगवार से जुड़ी पस्तक 'पुलिस की बारात' बाजार में आ चुकी है, जो काफी पसंद की गई है. यही नहीं उनकी पुस्तक सियासत का सबक का प्राक्कथन खुद मख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लिखा है, ऐसे में वह गौरवान्वित हैं. जिसके लिए उन्हें साहित्य पुरस्कार भी मिला है.