लखनऊः कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विनय पाठक के मामले में छह पूर्व विधायक खुलकर सामने आ गए हैं. सभी पूर्व विधायकों ने राज्यपाल को पत्र लिखकर पूरे मामले की जांच निष्पक्ष कराने की मांग की है. पत्र में विधायकों ने कहा है कि उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में भ्रष्टाचार बड़े मुद्दे के रूप में उभरने लगा है. इस पूरे प्रकरण में जिस ढंग से राजभवन सांस रोके है उससे अनेक संदेह और सवाल भी पैदा हो रहे हैं. उत्तर प्रदेश में उच्च शिक्षा के सभी परिसरों की स्थिति अब सबके सामने आ चुकी है. पूर्व विधायकों ने कहा है कि प्रो. पाठक पर इस तरह के आरोप लगने के बाद भी अभी तक उनकी गिरफ्तारी नहीं हुई. इसके अलावा न तो इस पूरे मामले की जांच ईडी, आईटी और सीबीआई से कराने के आदेश दिए गए हैं.
पत्र में पूर्व विधायकों ने लिखा है कि जेल जा चुके अजय मिश्रा के ठेके अभी भी कई विश्वविद्यालयों में यथावत है. उन आठ कुलपतियों की अभी कोई खोज खबर नहीं है जिनकी नियुक्तियां विनय पाठक की कृपा पर हुई है. उत्तर प्रदेश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के योगी आदित्यनाथ के परिश्रम की धज्जियां उड़ाता यह मुद्दा अब राजनीतिक रूप लेने लगा है. उत्तर प्रदेश में उच्च शिक्षा की ऐसी तैसी करने वाले कितने ताकतवर है? जिस कुलपति के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा दर्ज है, प्रदेश की पुलिस जिसके भ्रष्टाचार के प्रमाण जुटाने के लिए कानपुर, आगरा और लखनऊ के विश्वविद्यालयों की जांच कर रही है. एक आरोपी गिरफ्तार हो चुका लेकिन राजभवन कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है.
गिरफ्तारी न होने पर उठे सवाल
पूर्व विधायकों ने आरोप लगाया कि प्रो. पाठक को उत्तर प्रदेश और केंद्र में वरिष्ठ मंत्री व परिवार का वरदहस्त है. इसी वजह से उनके मामले में केवल लीपापोती चल रही है. पूर्व विधायकों ने कहा कि प्रो. पाठक ने बेईमानी व भ्रष्टाचार सभी हदों को पार कर गए है. छोटे-छोटे मामलों में जांच, गिरफ्तारी, रिकवरी और बुलडोजर चल जाता है. लेकिन प्रो. पाठक के मामले में अभी तक कार्रवाई नहीं हुई है और वह आज़ाद घूम रहे हैं. पूर्व विधायकों ने छात्रों, शिक्षा जगत, समाज और देश हित में एक अच्छे ईमानदार, सुयोग्य अन्य कुलपति की अविलंब नियुक्त करने की भी मांग की है. राज्यपाल को पत्र भेजने वाले पूर्व विधायकों में भूधर नारायण मिश्रा, नेक चन्द्र पाण्डेय, हाफिज मोहम्मद उमर, गणेश दीक्षित, संजीव दरियाबादी और सरदार कुलदीप सिंह शामिल है.