लखनऊः राजधानी लखनऊ के मड़ियाव अंतर्गत छठा मील क्षेत्र में किसानों ने व्यापक स्तर पर फूल की खेती किया है. वहीं फूल की खेती करने वाले किसान का इन दिनों ठंड के प्रभाव से फूल का उत्पादन कम हो गया है. वहीं दूसरी तरफ कोरोना के तीसरी लहर के चलते फूल की मांग भी कम हो गई है. किसानों का कहना है कि जहां हर बार मौसम का मार किसानों को झेलना पड़ता था. वहीं दूसरी तरफ कोरोना वायरस दोहरी मार झेलना पड़ रहा है. जिससे किसानों को लागत निकालना भी मुश्किल हो गया है. किसान बताते हैं कि इन दिनों मंडियों में फूल की मांग घट गई है .जिसकी वजह से जो कुछ उत्पादन हो रहा है वह बिक्री नहीं हो पा रही है.
दूसरों के लिए खुशियों के फूल बिखरने वाले किसान आज खुद कांटो के बीच जीने के लिए मजबूर है. फूल की खेती करने वाले किसानों पर कोरोना वायरस की तीसरी लहर का साया देखने को मिल रहा है. जिससे किसान परेशान नजर आ रहे हैं. वहीं सरकार की तरफ से शादियों पार्टी सहित अनेक तरह की सामूहिक कार्यक्रमों पर गाइडलाइन जारी कर दिए गए हैं. जिसके बाद से किसानों के फूल की बिक्री पर भी असर देखने को मिल रहा है. किसानों के फूल का बिक्री पहले की अपेक्षा कम होने लगा है.
किसानों का कहना है कि गुलाब की खेती करीब एक बीघे में लागत ₹40000 से ₹50000 आई है. वहीं लागत के अनुसार इन दिनों बिक्री नहीं हो रही है. किसान बताते हैं कि जहां 1kg गुलाब ₹100 से ₹120 तक की बिक्री आम दिनों में हो जाती थी, लेकिन इन दिनों कोरोना वायरस चलते गुलाब की बिक्री के रेट दर पर भी असर देखने को मिल रहा है. जिससे 60 से 70 रुपये प्रति किलो की दर से बेचने के लिए किसान मजबूर हैं. वहीं कभी-कभी आलम यह रहता है कि मंडी से फूल को लेकर घर वापस आना पड़ता है.
सैरपुर किसान रामखेलावन से फोन पर हुई बातचीत में बताया कि इस बार मौसम के साथ-साथ कोरोना की दोहरी मार फूल की खेती पर देखने को मिल रही है. जिसकी वजह से खेत में ही फूल खराब हो जा रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ जब कभी हम लोग लखनऊ के फूल मंडी चौक, गोमती नगर सहित अलग-अलग मंडियों में फूल को लेकर पहुंचते हैं, तो फूल को औने पौने दामों पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है. क्योंकि ग्राहक पहले की अपेक्षा कम मिल रहे हैं. जिससे लागत के अनुसार मुनाफा पहले की अपेक्षा कम हो रहा है.
उन्होंने बताया कि पहले जहां फूल की खेती में ₹50000 की लागत लगाकर करीब ₹120000 तक की आमदनी हो जाती थी, जिससे एक बीघा खेती पर ₹70000 की बचत हो जाती थी. इन दिनों लागत भी निकालना मुश्किल हो गया है.
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