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दशहरी आम के प्रजाति का पहला पेड़ आज भी है जीवित... पढ़ें पूरी कहानी

दशहरी आम का नाम लेते ही मलिहाबाद याद आ जाता है, लेकिन दशहरी आम की शुरुआत यहां से नहीं हुई. इस आम का नाम दशहरी क्यों पड़ा इसकी भी कहानी है. आज हम आपको दशहरी आम के सबसे पुराने पेड़ के बारे में बताएंगे जहां से दशहरी प्रजाति की शुरुआत हुई. करीब 150 साल से ज्यादा पुरान हो चुका यह पेड़ आज भी फल दे रहा है.

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first tree of dashehri mango
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Published : Mar 21, 2020, 11:16 PM IST

लखनऊः आम को यूं ही फलों का राजा नहीं कहा जाता है. इसकी सुगंध और स्वाद इसे सभी फलों से अलग और बेहतर बनाते हैं. वैसे तो आम की तमाम प्रजातियां हैं लेकिन इन प्रजातियों में दशहरी का कोई जवाब ही नहीं. दशहरी आम का लुत्फ ज्यादातर सभी ने उठाया ही होगा और इसका स्वाद लेने पर मलिहाबाद की याद भी जेहन में जरूर होगी, लेकिन दशहरी आम की उत्पत्ति दरअसल हुई कहां से आज हम इस बारे में बताएंगे. तो आज हम आपको ले चलते हैं उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से कुछ दूरी पर स्थित रहमान खेड़ा के दशहरी गांव में.

दशहरी आम का पहला पेड़ आज भी दे रहा है फल.

नबाबों के समय से है यह पेड़
150 साल से ज्यादा पुराने इस पेड़ को देख कर कोई भी यह अंदाजा नहीं लगा पाएगा कि यह इतना पुराना पेड़ हो सकता है. लहलहाते पत्ते, मोटी जड़, तना और शाखें किसी भी नए आम के पेड़ को टक्कर दे रही हैं. बताते हैं कि यह दशहरी पेड़ नवाबों के समय का रहा होगा. इस अदभुत पेड़ के बारे में गांव के लोग बताते हैं कि 110 साल के बाबा और उनके भी पिता के सामने यह पेड़ था. कहा यह भी जा रहा है कि इसी पेड़ की कलम से मलिहाबाद में दशहरी आम की नस्ल की पैदावार शुरु हुई. सिर्फ मलिहाबाद ही तक नहीं पूरे देश में इस जननी वृक्ष के दशहरी पौधे पहुंच गए.

इसी पेड़ की कलम से मलिहाबाद पहुंचा दशहरी
ग्रामीण बताते हैं कि इस पेड़ की रखवाली के लिए पहले सुरक्षा गार्ड तैनात रहते थे, पेड़ पर जाल भी डाला जाता था जिससे इसकी कलम चोरी न हो सके. यह दशहरी पेड़ दशहरी गांव तक ही सीमित रह जाए, लेकिन एक दिन सुरक्षा गार्ड सो गए और यहां से इस पेड़ की कलम चोरी हो गई जिसके बाद मलिहाबाद से लेकर देशभर में दशहरी आम की प्रजाति पहुंच गई. मलिहाबाद के आम पट्टी में आम की तमाम प्रजातियां हैं और देश-विदेश से मैंगो उत्पादक यहां से आम की नई-नई प्रजातियां लेकर जाते हैं. अब प्रशासन भी इस पर खास ध्यान दे रहा है कि दशहरी ट्री को पर्यटकों के लिए खास बनाया जाए और दशहरी गांव पर्यटन गांव के रूप में विकसित हो.

मायावी पेड़ के नाम से जानते हैं लोग
करीब 50 साल उम्र के कुन्नू लाल ने बताया कि यह पेड़ इतना पुराना है कि इसके बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं है. उन्होंने बताया कि उनके बाबा 110 वर्ष के थे वह भी इस पेड़ के बारे में नहीं जानते थे. जमींदार इस पेड़ पर जाल डलवाते थे. 4 चौकीदार सुरक्षा में तैनात रहते थे लेकिन कुछ लोग चोरी से डाल तोड़ ले गए वहीं से मलिहाबाद में दशहरी की प्रजाति पैदा होना शुरू हुई. इस पेड़ की उत्पत्ति के बारे में कोई नहीं जानता इसलिए इसे मायावी पेड़ भी कहते हैं.

पूरे भारत में पहुंच गया है दशहरी आम
आईसीएआर के डायरेक्टर शैलेन्द्र राजन ने बताया कि दशहरी आम प्रकृति की अनूठी देन है. दशहरी का यह पौधा 180 साल से ज्यादा पुराना है और इसका नाम दशहरी इसलिए पड़ा क्योंकि गांव का नाम दशहरी है. पहले जिनका इसके ऊपर अधिकार था वह नहीं चाहते थे कि दशहरी किसी और को मिले. जहां तक सुना जाता है कि चोरी से इसकी एक कलम बनाई गई. एक कलम जब आगे चली गई तो उसको चारों तरफ लोगों ने प्रसारित किया. उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे पंजाब और जम्मू तक पहुंच गई. इस पेड़ की बड़ी रोचक कहानी है और बहुत सारी किवदंतियां भी हैं.

गांव में होगा झील का निर्माण
वहीं स्थानीय निवासी विकास यादव ने बताया कि इस गांव में झील का निर्माण होना है इसकी पैमाइश चल रही है. हो सकता है जल्दी उसका कार्य चालू हो जाए. साल में विदेश से तमाम लोग आते हैं. अब आम का सीजन चालू हुआ तो ज्यादा लोग आएंगे अभी हाल ही में फ्रांस से लोग आए थे इस पेड़ की फिल्म बनाकर ले गए थे.

पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होगा दशहरी गांव
बता दें कि सरकार अब इस दशहरी ट्री को पर्यटन के रूप में बढ़ावा देने जा रही है. इस पेड़ की प्रजाति पूरे देश में फैलाई जाएगी. दशहरी गांव को दशहरी ट्री के चलते पर्यटन के रूप में विकसित किए जाने का भी पूरा प्लान है. इसके अलावा जो भी मैंगो उत्पादक राज्य भारत में हैं और इसके अलावा जो मैंगो उत्पादक देश हैं वे भी यहां पर सबसे ज्यादा आमों की वैराइटी वाले मलिहाबाद क्षेत्र में आते हैं तो वे दशहरी ट्री को जरूर देखना पसंद करते हैं. ऐसे में यह दशहरी ट्री पर्यटन का केंद्र बिंदु बनेगा.

लखनऊः आम को यूं ही फलों का राजा नहीं कहा जाता है. इसकी सुगंध और स्वाद इसे सभी फलों से अलग और बेहतर बनाते हैं. वैसे तो आम की तमाम प्रजातियां हैं लेकिन इन प्रजातियों में दशहरी का कोई जवाब ही नहीं. दशहरी आम का लुत्फ ज्यादातर सभी ने उठाया ही होगा और इसका स्वाद लेने पर मलिहाबाद की याद भी जेहन में जरूर होगी, लेकिन दशहरी आम की उत्पत्ति दरअसल हुई कहां से आज हम इस बारे में बताएंगे. तो आज हम आपको ले चलते हैं उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से कुछ दूरी पर स्थित रहमान खेड़ा के दशहरी गांव में.

दशहरी आम का पहला पेड़ आज भी दे रहा है फल.

नबाबों के समय से है यह पेड़
150 साल से ज्यादा पुराने इस पेड़ को देख कर कोई भी यह अंदाजा नहीं लगा पाएगा कि यह इतना पुराना पेड़ हो सकता है. लहलहाते पत्ते, मोटी जड़, तना और शाखें किसी भी नए आम के पेड़ को टक्कर दे रही हैं. बताते हैं कि यह दशहरी पेड़ नवाबों के समय का रहा होगा. इस अदभुत पेड़ के बारे में गांव के लोग बताते हैं कि 110 साल के बाबा और उनके भी पिता के सामने यह पेड़ था. कहा यह भी जा रहा है कि इसी पेड़ की कलम से मलिहाबाद में दशहरी आम की नस्ल की पैदावार शुरु हुई. सिर्फ मलिहाबाद ही तक नहीं पूरे देश में इस जननी वृक्ष के दशहरी पौधे पहुंच गए.

इसी पेड़ की कलम से मलिहाबाद पहुंचा दशहरी
ग्रामीण बताते हैं कि इस पेड़ की रखवाली के लिए पहले सुरक्षा गार्ड तैनात रहते थे, पेड़ पर जाल भी डाला जाता था जिससे इसकी कलम चोरी न हो सके. यह दशहरी पेड़ दशहरी गांव तक ही सीमित रह जाए, लेकिन एक दिन सुरक्षा गार्ड सो गए और यहां से इस पेड़ की कलम चोरी हो गई जिसके बाद मलिहाबाद से लेकर देशभर में दशहरी आम की प्रजाति पहुंच गई. मलिहाबाद के आम पट्टी में आम की तमाम प्रजातियां हैं और देश-विदेश से मैंगो उत्पादक यहां से आम की नई-नई प्रजातियां लेकर जाते हैं. अब प्रशासन भी इस पर खास ध्यान दे रहा है कि दशहरी ट्री को पर्यटकों के लिए खास बनाया जाए और दशहरी गांव पर्यटन गांव के रूप में विकसित हो.

मायावी पेड़ के नाम से जानते हैं लोग
करीब 50 साल उम्र के कुन्नू लाल ने बताया कि यह पेड़ इतना पुराना है कि इसके बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं है. उन्होंने बताया कि उनके बाबा 110 वर्ष के थे वह भी इस पेड़ के बारे में नहीं जानते थे. जमींदार इस पेड़ पर जाल डलवाते थे. 4 चौकीदार सुरक्षा में तैनात रहते थे लेकिन कुछ लोग चोरी से डाल तोड़ ले गए वहीं से मलिहाबाद में दशहरी की प्रजाति पैदा होना शुरू हुई. इस पेड़ की उत्पत्ति के बारे में कोई नहीं जानता इसलिए इसे मायावी पेड़ भी कहते हैं.

पूरे भारत में पहुंच गया है दशहरी आम
आईसीएआर के डायरेक्टर शैलेन्द्र राजन ने बताया कि दशहरी आम प्रकृति की अनूठी देन है. दशहरी का यह पौधा 180 साल से ज्यादा पुराना है और इसका नाम दशहरी इसलिए पड़ा क्योंकि गांव का नाम दशहरी है. पहले जिनका इसके ऊपर अधिकार था वह नहीं चाहते थे कि दशहरी किसी और को मिले. जहां तक सुना जाता है कि चोरी से इसकी एक कलम बनाई गई. एक कलम जब आगे चली गई तो उसको चारों तरफ लोगों ने प्रसारित किया. उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे पंजाब और जम्मू तक पहुंच गई. इस पेड़ की बड़ी रोचक कहानी है और बहुत सारी किवदंतियां भी हैं.

गांव में होगा झील का निर्माण
वहीं स्थानीय निवासी विकास यादव ने बताया कि इस गांव में झील का निर्माण होना है इसकी पैमाइश चल रही है. हो सकता है जल्दी उसका कार्य चालू हो जाए. साल में विदेश से तमाम लोग आते हैं. अब आम का सीजन चालू हुआ तो ज्यादा लोग आएंगे अभी हाल ही में फ्रांस से लोग आए थे इस पेड़ की फिल्म बनाकर ले गए थे.

पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होगा दशहरी गांव
बता दें कि सरकार अब इस दशहरी ट्री को पर्यटन के रूप में बढ़ावा देने जा रही है. इस पेड़ की प्रजाति पूरे देश में फैलाई जाएगी. दशहरी गांव को दशहरी ट्री के चलते पर्यटन के रूप में विकसित किए जाने का भी पूरा प्लान है. इसके अलावा जो भी मैंगो उत्पादक राज्य भारत में हैं और इसके अलावा जो मैंगो उत्पादक देश हैं वे भी यहां पर सबसे ज्यादा आमों की वैराइटी वाले मलिहाबाद क्षेत्र में आते हैं तो वे दशहरी ट्री को जरूर देखना पसंद करते हैं. ऐसे में यह दशहरी ट्री पर्यटन का केंद्र बिंदु बनेगा.

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