बिलासपुर: हिन्दी साहित्य, जिसके आंचल को तमाम किस्सों, कहानियों, नाटकों, कविताओं और तमाम विधाओं ने चमका रखा है. हिन्दी के तमाम रस इन्हीं विधाओं में लिपटे मिलते हैं. हम या आप इस बात से कभी इनकार नहीं कर सकते हैं कि हमारा बचपन, हमारी युवावस्था यहां तक कि हमारा बुढ़ापा बिना किस्से और कहानियों के गुजरा हो. लेकिन क्या आप जानते हैं कि किस कहानी को हिन्दी की पहली कहानी होने का गौरव मिला है और उस कहानी को लिखा किसने था.
एक कहानी है लिखी थी एक कहानीकार ने गरीब और विधवा महिला की, जिसकी झोपड़ी की एक टोकरी भर मिट्टी जमींदार नहीं उठा पाया था. ये बहुचर्चित कहानी पंडित माधव राव सप्रे ने लिखी थी और ये कहानी 'एक टोकरी भर मिट्टी' के नाम से अमर हो गई है. 'एक टोकरी भर मिट्टी' को देश की पहली कहानी के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है.
- माधव राव सप्रे ने इसे वर्ष 1901 में बिलासपुर के पेंड्रा से छपने वाली पत्र छत्तीसगढ़ मित्र में इसे प्रकाशित किया था.
- इस कहानी में सप्रे जी ने एक विधवा की व्यथा को बखूबी उभारा है और सामंती व्यवस्था पर करारा प्रहार किया.
- कहानी में जमींदार द्वारा अन्याय पूर्वक तरीके से एक बुजुर्ग महिला को घर से बेदखल करने की बात है. महिला गिड़गिड़ाती है लेकिन उसकी सुनी नहीं जाती.
- जमींदार कानूनी चाल चलकर आखिरकार उसे उसके घर से बेदखल कर ही देता है. वृद्ध महिला के साथ उसकी एक मात्र 5 बरस की पोती रहती है.
- इस कहानी में सबसे मार्मिक मोड़ तब आता है जब वृद्ध महिला जमींदार के पास पहुंचकर उससे उसके पुरानी झोंपड़ी की एक टोकरी मिट्टी मांगती है. महिला कहती है कि जब से यह घर छूटी है तब से मेरी पोती ने खाना पीना छोड़ दिया है. मैंने बहुत समझाया पर वह मानती ही नहीं. अब मैंने यही सोचा कि इस झोंपड़ी से टोकरी भर मिट्टी लेकर उसी का चुल्हा बनाकर रोटी पकाऊंगी. इससे भरोसा है कि वह रोटी खाने लगे.
- विधवा के लाख गुहार के बाद जमींदार ने एक टोकरी मिट्टी उठाकर देने की बात को मान ली लेकिन वो उस टोकरी भर मिट्टी को उठा नहीं पाया. जमींदार लज्जित भाव में कहने लगा कि यह टोकरी हमसे नहीं उठाई जाएगी.
- इस बात पर विधवा महिला कहती है कि महाराज नाराज न हों जब आप इस घर की एक टोकरी मिट्टी को नहीं उठा पा रहे हैं, तो झोंपड़ी में तो हजारों टोकरियां मिट्टी पड़ी हैं उसका भार आप जन्मभर कैसे उठा पाएंगे. इस बात पर विचार कीजिए.
- जमींदार आखिरकार पश्चाताप कर क्षमा मांगते हुए झोंपड़ी विधवा को को दे देता है.
पुरानी जमींदारी व्यवस्था को दिखाती है ये कहानी
जानकारों की मानें तो यह कहानी एक तो पुरानी जमींदारी व्यवस्था को दिखाती है तो वहीं मिट्टी से जुड़ाव का संदेश भी देती है. सप्रे जी ने टोकरी भर मिट्टी के वजन को नहीं बल्कि मिट्टी से एक बुजुर्ग विधवा के जुड़ाव के वजन को बताने की भरसक कोशिश की है.
अमर है 'एक टोकरी भर मिट्टी'
जानकार यह भी बताते हैं कि सप्रे जी ने न सिर्फ पहली कहानी के रूप में देश को यह सौगात दी है बल्कि उनके बाद के कहानीकारों को क्रूर सामंती व्यवस्था और गरीबों के साथ हुए अन्याय का एक विषय भी दिया है, जो आज भी अलग-अलग रूपों इस समाज में व्याप्त है. 'एक टोकरी भर मिट्टी' जैसी कहानी कभी भी अप्रासंगिक नहीं हो सकती.
साल 1900 में जब समूचे छत्तीसगढ़ में प्रिंटिंग प्रेस नहीं था तब इन्होंने बिलासपुर जिले के एक छोटे से गांव पेंड्रा से 'छत्तीसगढ़ मित्र' नामक मासिक पत्रिका निकाली. हालांकि ये पत्रिका 3 महीने ही चली.