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महाकुंभ से बनारस लौटे जूना अखाड़े के संन्यासी; जानें क्या होती है पेशवाई, कितनी पौराणिक यह परंपरा ? - JUNA AKHARA KASHI

प्रयागराज महाकुंभ में शाही स्नान के बाद अखाड़े के संत, संन्यासी, नागा साधु काशी लौट आए हैं.

जानिए क्या है काशी में पेशवाई की परंपरा.
जानिए क्या है काशी में पेशवाई की परंपरा. (Photo Credit: ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 12, 2025, 12:24 PM IST

वाराणसी: सनातन धर्म में पौराणिक परंपराओं का सामंजस्य ऐसा है कि हमेशा इसकी विविधताएं आश्चर्य को रुप में सामने आती हैं. सनातन धर्म में संत, महात्माओं, साधु, संन्यासियों, नागा साधु, अखाड़ों का अपना महत्व है, अपनी परंपराएं हैं, जो सदियों से चली आ रही हैं. इसी का पालन करते हुए प्रयागराज महाकुंभ में स्नान के बाद अखाड़ों की वापसी होने लगी है. काशी का जूना अखाड़ा इन्हीं परंपराओं का पालन करता है. काशी पहुंच चुका अखाड़ा पेशवाई निकालता है और अखाड़ा केंद्र में देवता की स्थापना की जाती है. इस पेशवाई को देखने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु जुटते हैं.

ETV Bharat ने जूना अखाड़ा काशी की पेशवाई परंपरा के बारे में जाना. अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष महंत प्रेम गिरी ने इस प्राचीन परंपरा के बारे में बताया. साथ ही यह भी कहा कि उज्जैन और नासिक कुंभ में दूसरे देवता का पूजन होता है. आज जिनकी पेशवाई निकली, वे काशी-प्रयाग के देवता हैं. हर कुंभ, अर्धकुंभ के बाद देवता प्रयागराज से काशी लौटते हैं और अखाड़े में स्थापित होते हैं.

महाकुंभ से काशी लौटे जूना अखाड़े के संन्यासी
महाकुंभ से काशी लौटे जूना अखाड़े के संन्यासी (Photo Credit: ETV Bharat)


अनादि काल से निभाई जा रही परंपरा: महंत प्रेम गिरी ने बताया कि यह परंपरा अनादि काल से निभाई जा रही है. परंपरा के अनुसार अखाड़े के देवता यानी भगवान शिव को अखाड़े के मुख्य स्थान पर स्थापित किया जाता है. इस परंपरा के अनुरूप साधु-संत नगर प्रवेश करने के बाद पेशवाई निकालते हैं. बैंड बाजे के साथ देवता को लेकर पहुंचते हैं. देवता को अखाड़े के मुख्य कार्यालय में स्थापित किया जाता है.

महाकुंभ से काशी लौटे जूना अखाड़े के देवता. (Video Credit: ETV Bharat)


काशी में किया जाता है निर्वहन: प्रयागराज में लगने वाले कुंभ, अर्ध कुंभ और महाकुंभ के पावन उत्सव में शामिल होने के लिए 13 अखाड़े शिरकत करते हैं. इन अखाड़ों में सबसे बड़ा और प्रमुख जूना अखाड़ा है. जूना अखाड़े का हेड ऑफिस वाराणसी के हनुमान घाट क्षेत्र में स्थापित है. यहीं से जूना अखाड़े का संचालन होता है. कार्य समिति का चुनाव, अध्यक्ष से लेकर अन्य पदों पर चुनावी प्रक्रिया यही पूर्ण की जाती है. कुछ दिनों बाद यह प्रक्रिया भी संपन्न होगी.


काशी से प्रयागराज फिर देवता की काशी में वापसी: जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष महंत प्रेम गिरी बताते हैं कि जब भी प्रयागराज में कुंभ का आयोजन होता है, तब काशी के मुख्य अखाड़ा कार्यालय से हमारे देवता को हम बाजे-गाजे के साथ प्रयागराज में नगर प्रवेश करवाते हैं. जब कुंभ का शाही स्नान और मुख्य स्नान पूरा होता हैं, तो उसके बाद महाशिवरात्रि से पहले हम अपने देवता को वापस काशी लेकर आ जाते हैं.

काशी आने के बाद सबसे पहले हमारे नगर प्रवेश की परंपरा का निर्वहन होता है, जो 2 दिन पहले किया जा चुका है. उसके बाद अब हम बैंड बाजा के साथ पेशवाई निकालकर अपने देवता को मुख्य अखाड़े में उनके स्थान पर स्थापित करते हैं. महंत प्रेम गिरि ने बताया कि यह परंपरा बहुत ही पुरानी है. इसमें हम अपने साधु, संत, संन्यासी और नागा साधुओं के साथ काशी में प्रवेश करते हैं. अपने देवता को नगर भ्रमण करवाते हैं. इसके बाद हम उन्हें अपने मुख्य अखाड़े के कार्यालय परिसर में स्थापित करते हैं. 6 वर्षों तक अब वो वहीं पर रहेंगे.



2031 में प्रयागराज महाकुंभ में जाएंगे देवता: महंत ने बताया कि देवता का पूजन, पाठ, नियमित भोग और सब प्रक्रिया पूरी की जाती रहेगी. 2031 में प्रयागराज में होने वाले कुंभ के आयोजन में हम पुनः उन्हें यहां से भव्यता के साथ लेकर जाएंगे. उन्होंने यह भी कहा कि हर क्षेत्र और हर जगह पर होने वाले कुंभ के आयोजन के लिए अलग देवता होते हैं. काशी में जो देवता स्थापित हैं, वह सिर्फ प्रयागराज में होने वाले कुंभ आयोजन में ही जाते है. नासिक, उज्जैन या हरिद्वार में होने वाले कुंभ में उन्हीं क्षेत्रों के देवता का आह्वान होता है.

महंत प्रेम गिरी ने कहा कि यह सदियों पुरानी परंपरा है. हर महाकुंभ के बाद काशी में इसको निभाया जाता है. यह परंपरा निभाकर हम सनातन की एकजुटता और एकरुपता का संदेश देते हैं. यह आध्यात्मिक तौर पर भी महत्वपूर्ण है.

यह भी पढ़ें: माघ पूर्णिमा: बनारस में लाखों श्रद्धालु कर रहे गंगा स्नान, विंध्याचल धाम में उमड़ा जन सैलाब - KASHI MAGH PURNIMA

वाराणसी: सनातन धर्म में पौराणिक परंपराओं का सामंजस्य ऐसा है कि हमेशा इसकी विविधताएं आश्चर्य को रुप में सामने आती हैं. सनातन धर्म में संत, महात्माओं, साधु, संन्यासियों, नागा साधु, अखाड़ों का अपना महत्व है, अपनी परंपराएं हैं, जो सदियों से चली आ रही हैं. इसी का पालन करते हुए प्रयागराज महाकुंभ में स्नान के बाद अखाड़ों की वापसी होने लगी है. काशी का जूना अखाड़ा इन्हीं परंपराओं का पालन करता है. काशी पहुंच चुका अखाड़ा पेशवाई निकालता है और अखाड़ा केंद्र में देवता की स्थापना की जाती है. इस पेशवाई को देखने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु जुटते हैं.

ETV Bharat ने जूना अखाड़ा काशी की पेशवाई परंपरा के बारे में जाना. अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष महंत प्रेम गिरी ने इस प्राचीन परंपरा के बारे में बताया. साथ ही यह भी कहा कि उज्जैन और नासिक कुंभ में दूसरे देवता का पूजन होता है. आज जिनकी पेशवाई निकली, वे काशी-प्रयाग के देवता हैं. हर कुंभ, अर्धकुंभ के बाद देवता प्रयागराज से काशी लौटते हैं और अखाड़े में स्थापित होते हैं.

महाकुंभ से काशी लौटे जूना अखाड़े के संन्यासी
महाकुंभ से काशी लौटे जूना अखाड़े के संन्यासी (Photo Credit: ETV Bharat)


अनादि काल से निभाई जा रही परंपरा: महंत प्रेम गिरी ने बताया कि यह परंपरा अनादि काल से निभाई जा रही है. परंपरा के अनुसार अखाड़े के देवता यानी भगवान शिव को अखाड़े के मुख्य स्थान पर स्थापित किया जाता है. इस परंपरा के अनुरूप साधु-संत नगर प्रवेश करने के बाद पेशवाई निकालते हैं. बैंड बाजे के साथ देवता को लेकर पहुंचते हैं. देवता को अखाड़े के मुख्य कार्यालय में स्थापित किया जाता है.

महाकुंभ से काशी लौटे जूना अखाड़े के देवता. (Video Credit: ETV Bharat)


काशी में किया जाता है निर्वहन: प्रयागराज में लगने वाले कुंभ, अर्ध कुंभ और महाकुंभ के पावन उत्सव में शामिल होने के लिए 13 अखाड़े शिरकत करते हैं. इन अखाड़ों में सबसे बड़ा और प्रमुख जूना अखाड़ा है. जूना अखाड़े का हेड ऑफिस वाराणसी के हनुमान घाट क्षेत्र में स्थापित है. यहीं से जूना अखाड़े का संचालन होता है. कार्य समिति का चुनाव, अध्यक्ष से लेकर अन्य पदों पर चुनावी प्रक्रिया यही पूर्ण की जाती है. कुछ दिनों बाद यह प्रक्रिया भी संपन्न होगी.


काशी से प्रयागराज फिर देवता की काशी में वापसी: जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष महंत प्रेम गिरी बताते हैं कि जब भी प्रयागराज में कुंभ का आयोजन होता है, तब काशी के मुख्य अखाड़ा कार्यालय से हमारे देवता को हम बाजे-गाजे के साथ प्रयागराज में नगर प्रवेश करवाते हैं. जब कुंभ का शाही स्नान और मुख्य स्नान पूरा होता हैं, तो उसके बाद महाशिवरात्रि से पहले हम अपने देवता को वापस काशी लेकर आ जाते हैं.

काशी आने के बाद सबसे पहले हमारे नगर प्रवेश की परंपरा का निर्वहन होता है, जो 2 दिन पहले किया जा चुका है. उसके बाद अब हम बैंड बाजा के साथ पेशवाई निकालकर अपने देवता को मुख्य अखाड़े में उनके स्थान पर स्थापित करते हैं. महंत प्रेम गिरि ने बताया कि यह परंपरा बहुत ही पुरानी है. इसमें हम अपने साधु, संत, संन्यासी और नागा साधुओं के साथ काशी में प्रवेश करते हैं. अपने देवता को नगर भ्रमण करवाते हैं. इसके बाद हम उन्हें अपने मुख्य अखाड़े के कार्यालय परिसर में स्थापित करते हैं. 6 वर्षों तक अब वो वहीं पर रहेंगे.



2031 में प्रयागराज महाकुंभ में जाएंगे देवता: महंत ने बताया कि देवता का पूजन, पाठ, नियमित भोग और सब प्रक्रिया पूरी की जाती रहेगी. 2031 में प्रयागराज में होने वाले कुंभ के आयोजन में हम पुनः उन्हें यहां से भव्यता के साथ लेकर जाएंगे. उन्होंने यह भी कहा कि हर क्षेत्र और हर जगह पर होने वाले कुंभ के आयोजन के लिए अलग देवता होते हैं. काशी में जो देवता स्थापित हैं, वह सिर्फ प्रयागराज में होने वाले कुंभ आयोजन में ही जाते है. नासिक, उज्जैन या हरिद्वार में होने वाले कुंभ में उन्हीं क्षेत्रों के देवता का आह्वान होता है.

महंत प्रेम गिरी ने कहा कि यह सदियों पुरानी परंपरा है. हर महाकुंभ के बाद काशी में इसको निभाया जाता है. यह परंपरा निभाकर हम सनातन की एकजुटता और एकरुपता का संदेश देते हैं. यह आध्यात्मिक तौर पर भी महत्वपूर्ण है.

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