लखनऊ : प्रदेश भर से डायलिसिस कराने के लिए लोहिया अस्पताल में मरीज आते हैं. बड़े संस्थानों में कई बार ऐसा होता है कि बेड उपलब्ध नहीं हो पाते हैं, जिस कारण मरीज को 24 घंटे से अधिक इंतजार करना पड़ता है और इस स्थिति में डायलिसिस के मरीजों को सबसे अधिक दिक्कत परेशानी होती है. डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में थैलेसीमिया के मरीजों को खून चढ़वाने के लिए अब इधर-उधर भटकना नहीं पड़ेगा. संस्थान के ब्लड एवं ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग में डे केयर के आधार पर मरीजों को भर्ती किया जाएगा. अगले सप्ताह से यह सेवा शुरू हो जाएगी. थैलेसीमिया के मरीजों को बार-बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है. इन्हें ब्लड बैंक से निशुल्क खून उपलब्ध कराया जाता है, उधर मरीजों का कहना है कि अगर इस तरह की व्यवस्था अस्पताल में हो जाती है तो काफी अच्छा होगा.
रोजाना 25 से 30 मरीजों का होता है डायलिसिस : लोहिया अस्पताल के प्रवक्ता डॉ. एपी जैन के मुताबिक, 'अस्पताल में रोजाना तीन हजार से अधिक मरीज इलाज के लिए आते हैं. डायलिसिस के लिए ब्लड एवं ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग में लगभग 70 से 80 मरीज आते हैं. जिसमें से रोजाना 25 से 30 मरीज का डायलिसिस होता है. जिन मरीजों का डायलिसिस नहीं हो पाता है, उन्हें अगले दिन की तारीख दे दी जाती है. थैलेसीमिया के मरीजों को बार-बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है. इन्हें ब्लड बैंक से निशुल्क खून उपलब्ध कराया जाता है. मरीजों को खून तो मिल जाता है, लेकिन उसे चढ़ाने में करीब चार घंटे का समय लगता है.'
उन्होंने बताया कि 'ब्लड बैंक में खून देने के लिए विशिष्ट प्रकार के बेड हैं, लेकिन इन पर डोनेशन करने वाले लोग आते रहते हैं. थैलेसीमिया के मरीजों के लिए अलग से बेड की व्यवस्था न होने से वे यहां से खून लेकर अन्य विभाग जाते हैं, तब जाकर उनको खून चढ़ पाता है. इसको देखते हुए लोहिया संस्थान में थैलेसीमिया डे केयर सेंटर का प्रस्ताव तैयार किया गया. यह सेंटर हब बन गया है. ब्लड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग में ही छह बेड की यूनिट स्थापित कर दी गई है. मरीजों को अब यहीं पर खून चढ़ाया जा सकेगा. इससे उनको भटकना नहीं पड़ेगा. एनएचएम की मदद से लोहिया संस्थान में नेशनल हेल्थ मिशन के सहयोग से इस सेंटर का संचालन किया जाना है. इसके कर्मचारियों को एनएचएम से वेतन दिया जाएगा. ब्लड बैग, मेडिसिन व थैलेसीमिया मरीजों को ट्रांसफ्यूजन में उपयोग की जाने वाली सामग्री का बजट भी एनएचएम से मिलेगा.'
24 घंटे बाद उपलब्ध हुआ बेड : उत्तर प्रदेश के बस्ती जिला से डायलिसिस कराने के लिए आए गोविंद कुमार ने बताया कि 'वह बुधवार रात को लखनऊ आ गए थे. इसके बाद गुरुवार सुबह से डायलिसिस कराने के लिए बेड खाली होने का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन गुरुवार को बेड खाली नहीं हुआ था. यह तो अच्छा हुआ कि हमने पहले ब्लड नहीं लिया था. वरना ब्लड खराब हो जाता. शुक्रवार सुबह बेड खाली होने के बाद मरीज को भर्ती किया गया. सुबह 9 बजे से डायलिसिस शुरू हो गई है. यहां पर लोहिया संस्थान प्रशासन डायलिसिस मरीजों के लिए अलग-अलग से व्यवस्था कर रहे हैं. कम से कम संस्थान प्रशासन मरीजों के दुख को समझकर उसका निवारण कर रहे हैं. यह एक अच्छी बात है, प्रदेशभर से जो मरीज आते हैं उन्हें ब्लड व ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग में ही अगर डायलिसिस की व्यवस्था मिल जाएगी तो इससे अच्छी और कोई बात नहीं है.'
डायलिसिस मरीजों को होगी सहूलियत : लखनऊ के राजाजीपुरम से डायलिसिस कराने पहुंचीं सीमा गुप्ता ने बताया कि 'उनकी सास की डायलिसिस लोहिया अस्पताल से ही होती है. यह डायलिसिस तीसरी बार है. बीते दो दिन से मेरे पति अस्पताल आकर देख रहे थे कि बेड उपलब्ध हो पा रहा है या नहीं. दो दिन पहले विशेषज्ञ डॉक्टर से मिले थे, इसके बाद बेड खाली नहीं होने के कारण उनकी डायलिसिस नहीं हो पाई. शुक्रवार को बेड खाली हुआ है. तब उसके बाद मरीज को भर्ती किया गया. डायलिसिस अभी चल रही है. सीमा ने कहा कि यहां पर इलाज अच्छा होता है, इसीलिए दूर दराज से मरीज इलाज के लिए आते हैं. कुछ चीजों पर और ध्यान दिया जाए तो मरीज यहां से हताश होकर कभी नहीं लौटेगा. डायलिसिस के लिए अगर अलग से बेड मरीजों के लिए उपलब्ध कराए जा रहे हैं तो यह बहुत खुशी की बात है. मरीजों को इधर से उधर भटकना नहीं पड़ेगा और डायलिसिस के लिए इंतजार नहीं करना पड़ेगा.'
खून मिलने के बाद उसे चढ़वाने की भी सुविधा : लोहिया अस्पताल की निदेशक डॉ. सोनिया नित्यानंद ने कहा कि 'संस्थान में थैलेसीमिया के मरीजों को निशुल्क खून मिलता है, लेकिन उनको खून चढ़वाने के लिए भटकना पड़ता है. अब उनको खून मिलने के बाद उसे चढ़वाने की सुविधा भी उसी स्थान पर मिल जाएगी, इससे उन्हें काफी सहूलियत होगी. उन्हें इधर से उधर भाग दौड़ करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. उन्होंने कहा कि कई बार हमने देखा है कि डायलिसिस कराने के लिए दूरदराज से मरीज लोहिया अस्पताल में आते हैं और यहां पर ब्लड बैंक में ब्लड लेने के बाद वह वापस विभाग में जाते हैं तो उन्हें बेड उपलब्ध नहीं हो पाता है, जिसकी वजह से डायलिसिस शुरू नहीं हो पाती है और ब्लड खराब हो जाता है. ऐसे मरीजों की तकलीफ को हमने समझा और हमें लगा कि इस तरह की व्यवस्था ब्लड एवं ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग में होनी चाहिए, ताकि जो डायलिसिस कराने के लिए मरीज आ रहे हैं उनका डायलिसिस आराम से हो सके.'
जानें क्या है थैलेसीमिया? : लोहिया अस्पताल के प्रवक्ता डॉ. एपी जैन ने कहा कि 'थैलेसीमिया एक रक्त संबंधित बीमारी है. यह व्यक्ति के शरीर की सामान्य हीमोग्लोबिन उत्पादन करने की क्षमता को प्रभावित करता है. हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं में मिलने वाला एक जरूरी प्रोटीन है. यह आपके लाल रक्त कोशिकाओं को आपके पूरे शरीर में ऑक्सीजन का परिवहन करने की अनुमति देता है, आपके शरीर की अन्य कोशिकाओं को पोषण देता है.'
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