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लखनऊ: ऑर्गन डोनेशन के प्रति फैली हैं कई भ्रांतियां, जागरूकता की है जरूरत - ऑर्गन ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर पीयूष श्रीवास्तव

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के ऑर्गन ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर ने बताया कि लिविंग ऑर्गन डोनेशन या फिर ब्रेन डेड मरीजों के ऑर्गन डोनेशन के प्रति जागरूकता की काफी कमी है. यदि ऑर्गन डोनेशन के प्रति जागरूकता बढ़ाई जाए और लोग आना शुरू कर दें तो, इससे कई अन्य मरीजों को नया जीवन मिल सकता है.

ऑर्गन ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर ने दी जानकारी .
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Published : Aug 23, 2019, 8:03 AM IST

लखनऊ: हमारे आसपास कई ऐसे मरीज होते हैं, जिनको किसी न किसी तरह की गंभीर बीमारी होती है. इस गंभीर बीमारी का इलाज ऑर्गन ट्रांसप्लांट कहा जाता है. ईटीवी भारत ने ऑर्गन ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर्स से बात की और ऑर्गन डोनेशन में कौन सी भ्रांतियां सामने आती हैं, उसके बारे में जाना.

ऑर्गन ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर ने दी जानकारी .

ऑर्गन ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर ने दी ये जानकारी

  • किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के ऑर्गन ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर पीयूष श्रीवास्तव ने ऑर्गन ट्रांसप्लांट के बारे में जानकारी दी.
  • आज के युग में कई ऐसी बीमारियां होती हैं, जिनके लिए ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है.
  • बीमारियों में लिवर, किडनी, हार्ट, लंग और पेनक्रियाज जैसे हिस्से शामिल होते हैं.
  • किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में लिवर और किडनी ट्रांसप्लांट किया जाता है.
  • पीयूष श्रीवास्तव ने बताया कई बार एक्सीडेंट केस में ऐसे मरीज शामिल होते हैं.
  • मरीजों को सिर में गंभीर चोटें होती हैं और इलाज के दौरान वह ब्रेन डेड हो जाते हैं.
  • मरीज की इस अवस्था में मरीजों के परिवारीजनों को काउंसिल करने की जरूरत होती है.
  • परिजन मरीज के अंगों को डोनेट कर दें, ताकि कई अन्य लोगों को जीवनदान दिया जा सके.

पढ़ें- लखनऊः केजीएमयू में घटनाओं पर नजर रखने के लिए आए कैमरे डिब्बे में ही बंद पड़े रह गए

ऑर्गन ट्रांसप्लांट को लेकर हैं कई भ्रांतियां
पीयूष श्रीवास्तव के अनुसार, हमारे समाज में कई ऐसी भ्रांतियां सुनने और देखने को मिल जाती हैं. जिसकी वजह से लोग ऑर्गन डोनेशन से पीछे हट जाते हैं. वह कहते हैं कि ऑर्गन डोनेशन की सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि परिवारीजनों को लगता है कि मरीज का ऑर्गन डोनेशन होने के बाद उन्हें अगले जन्म में वह अंग नहीं मिलेगा.


जिसकी वजह से लिविंग ऑर्गन या ब्रेन डेड मरीजों का ऑर्गन डोनेशन नहीं हो पाता है. यदि व्यक्ति ब्रेन डेड हो जाए और उसके बाद उनके ऑर्गन डोनेशन की बात की जाए तो उनके तीमारदार और परिवारीजन शरीर में चीर फाड़ करवाने के डर की वजह से भी ऑर्गन डोनेशन से कतराते हैं.

लखनऊ: हमारे आसपास कई ऐसे मरीज होते हैं, जिनको किसी न किसी तरह की गंभीर बीमारी होती है. इस गंभीर बीमारी का इलाज ऑर्गन ट्रांसप्लांट कहा जाता है. ईटीवी भारत ने ऑर्गन ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर्स से बात की और ऑर्गन डोनेशन में कौन सी भ्रांतियां सामने आती हैं, उसके बारे में जाना.

ऑर्गन ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर ने दी जानकारी .

ऑर्गन ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर ने दी ये जानकारी

  • किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के ऑर्गन ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर पीयूष श्रीवास्तव ने ऑर्गन ट्रांसप्लांट के बारे में जानकारी दी.
  • आज के युग में कई ऐसी बीमारियां होती हैं, जिनके लिए ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है.
  • बीमारियों में लिवर, किडनी, हार्ट, लंग और पेनक्रियाज जैसे हिस्से शामिल होते हैं.
  • किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में लिवर और किडनी ट्रांसप्लांट किया जाता है.
  • पीयूष श्रीवास्तव ने बताया कई बार एक्सीडेंट केस में ऐसे मरीज शामिल होते हैं.
  • मरीजों को सिर में गंभीर चोटें होती हैं और इलाज के दौरान वह ब्रेन डेड हो जाते हैं.
  • मरीज की इस अवस्था में मरीजों के परिवारीजनों को काउंसिल करने की जरूरत होती है.
  • परिजन मरीज के अंगों को डोनेट कर दें, ताकि कई अन्य लोगों को जीवनदान दिया जा सके.

पढ़ें- लखनऊः केजीएमयू में घटनाओं पर नजर रखने के लिए आए कैमरे डिब्बे में ही बंद पड़े रह गए

ऑर्गन ट्रांसप्लांट को लेकर हैं कई भ्रांतियां
पीयूष श्रीवास्तव के अनुसार, हमारे समाज में कई ऐसी भ्रांतियां सुनने और देखने को मिल जाती हैं. जिसकी वजह से लोग ऑर्गन डोनेशन से पीछे हट जाते हैं. वह कहते हैं कि ऑर्गन डोनेशन की सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि परिवारीजनों को लगता है कि मरीज का ऑर्गन डोनेशन होने के बाद उन्हें अगले जन्म में वह अंग नहीं मिलेगा.


जिसकी वजह से लिविंग ऑर्गन या ब्रेन डेड मरीजों का ऑर्गन डोनेशन नहीं हो पाता है. यदि व्यक्ति ब्रेन डेड हो जाए और उसके बाद उनके ऑर्गन डोनेशन की बात की जाए तो उनके तीमारदार और परिवारीजन शरीर में चीर फाड़ करवाने के डर की वजह से भी ऑर्गन डोनेशन से कतराते हैं.

Intro:लखनऊ हमारे आसपास कई ऐसे मरीज या लोग होते हैं जिनको किसी न किसी तरह की गंभीर बीमारी होती है इस गंभीर बीमारी का इलाज ऑर्गन ट्रांसप्लांट कहा जाता है। ऐसे में ईटीवी भारत ने कुछ ऑर्गन ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर्स से बात की और जाने की कोशिश की कि ऑर्गन डोनेशन में कौन सी भ्रांतियां सामने आती हैं।


Body:वीओ1 किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के ऑर्गन ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर पीयूष श्रीवास्तव कहते हैं कि आज के युग में कई ऐसी बीमारियां होती हैं जिनके लिए ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है। इन बीमारियों में लिवर, किडनी, हार्ट, लंग और पेनक्रियाज जैसे हिस्से शामिल होते हैं। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में लिवर और किडनी ट्रांसप्लांट किया जाता है जिसके लिए काफी संख्या में मरीज रजिस्ट्रेशन करवाने आते हैं। विशेष बात यह है कि मरीजों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है पर उस लिहाज में ऑर्गन डोनर की संख्या बेहद कम है। पीयूष कहते हैं कि कई बार एक्सीडेंट केसेस में ऐसे मरीज शामिल होते हैं जिन्हें सिर में गंभीर चोटे होती हैं और इलाज के दौरान वह ब्रेन डेड हो जाते हैं। ऐसी अवस्था में और मरीजों के परिवारी जनों को काउंसिल करने की जरूरत होती है कि वह सामने से मरीज के अंगों को डोनेट कर दें ताकि कई अन्य लोगों की जिंदगी बचा कर उन्हें जीवनदान दिया जा सके। पीयूष के अनुसार हमारे समाज में कई ऐसी भ्रांतियां सुनने और देखने को मिल जाती हैं जिसकी वजह से लोग ऑर्गन डोनेशन से पीछे हट जाते हैं। वह कहते हैं कि ऑर्गन डोनेशन की सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि परिवारी जनों को लगता है कि मरीज का ऑर्गन डोनेशन होने के बाद उन्हें अगले जन्म में वह अंग नहीं मिलेगा। इसके अलावा नेत्रदान के प्रति लोगों में सबसे बड़ा मिथ यह है कि अगले जन्म में उन्हें आंखें नहीं मिलेंगी। इन सबसे परे समाज के तानों या बातों का डर लोगों को सबसे ज्यादा होता है जिसकी वजह से लिविंग ऑर्गन या ब्रेन डेड मरीजों का ऑर्गन डोनेशन नहीं हो पाता है। यदि व्यक्ति ब्रेन डेड हो जाए और उसके बाद उनके ऑर्गन डोनेशन की बात की जाए तो उनके तीमारदार और परिवारी जन शरीर में चीर फाड़ करवाने के डर की वजह से भी ऑर्गन डोनेशन से कतराते हैं।


Conclusion:पीयूष कहते हैं कि लिविंग ऑर्गन डोनेशन या फिर ब्रेन डेड मरीजों के ऑर्गन डोनेशन के प्रति जागरूकता की काफी कमी है। यदि ऑर्गन डोनेशन के प्रति जागरूकता बढ़ाई जाए और लोग आना शुरू कर दें तो इससे कई अन्य मरीजों को नया जीवन मिल सकता है क्योंकि बीमारियां साल दर साल बढ़ती जा रही है और इलाज के लिए शरीर के अंग नहीं मिलते। बाइट- पीयूष श्रीवास्तव, ऑर्गन ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर, केजीएमयू रामांशी मिश्रा
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