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BHU विवाद: प्रोफेसर फिरोज के गांव पहुंचकर ईटीवी भारत ने जाना हाल

BHU के मुस्लिम प्रोफेसर फिरोज खान का विरोध उनके जिले के स्कूली बच्चों को भी अब रास नहीं आ रहा है. फिरोज खान के गृह जनपद बगरू में ईटीवी भारत ने जब वहां पढ़ रहे आठवीं-दसवीं कक्षा के छात्रों से बात की, तो उन्होंने भी राधे भैया की बजाय फिरोज भैया से संस्कृत शिक्षा लेना पसंद करने की बात कही.

प्रोफेसर फिरोज.
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Published : Nov 21, 2019, 10:43 PM IST

जयपुर: शिक्षा कभी नहीं पूछती कि कौन हिंदू है और कौन मुसलमान, लेकिन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से उठा यह सवाल फिरोज खान के गृह जनपद बगरु के मासूम बच्चों के मन को भी कुरेद रहा है. उन बच्चों को जिन्होंने बचपन से भारत की धर्म निरपेक्ष संस्कृति को पढ़ा-समझा और जाना है. जिन्हें यही सिखाया गया है कि हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई आपस में हैं भाई-भाई. ईटीवी भारत ने बगरू में एक साथ शिक्षा ग्रहण कर रहे कुछ छात्रों से बात की, ये सभी छात्र उसी विद्यालय में पढ़ते हैं, जहां से फिरोज ने अपनी संस्कृत शिक्षा की शुरुआत की थी.

फिरोज के गांव पहुंचा ईटीवी भारत.

राजकीय वरिष्ठ उपाध्याय संस्कृत विद्यालय बगरू में पढ़ने वाले इन छात्रों में खास बात ये थी कि इनमें 50 फीसदी छात्र मुस्लिम समुदाय के थे. ये छात्र फर्राटे से संस्कृत के श्लोक भी बोल रहे थे, न सिर्फ श्लोक बोल रहे थे बल्कि उन्हें इस श्लोक का हिंदी अनुवाद भी कंठस्थ था. इनमें से अधिकतर संस्कृत शिक्षा में अपना भविष्य देखते हुए संस्कृत के प्रोफेसर और शिक्षक बनने की चाह रखे हुए हैं.

लेकिन इस बच्चों के मन, दिल और दिमाग में क्या चल रहा है हमने यह भी जानने की कोशिश की. हमने प्रोफेसर फिरोज खान के मामले को लेकर उनसे बात की और फिर जो जवाब आया वो यकीनन समाज के लिए सोचनीय था. सभी छात्रों ने कहा कि वो फिरोज भैया से ही पढ़ना चाहते हैं. यही नहीं उन्होंने यह भी साफ कर दिया फिरोज को लेकर जो कुछ भी चल रहा है ऐसा नहीं होना चाहिए.

ये भी पढ़ें: डिप्टी सीएम पायलट का दावा- 30 से 32 निकायों में बनेगा कांग्रेस का बोर्ड

बच्चों ने कहा वे संस्कृत पढ़कर प्रोफेसर और शिक्षक बनना चाहते हैं, लेकिन जो कुछ भी हो रहा है, उसके बाद हमें अपने भविष्य को लेकर चिंता होती है. छात्रों ने कहा कि हमारे स्कूलों में जो तालीम दी जा रही है, उसमें कहीं भी मजहब का जिक्र नहीं किया जाता. फिर उच्च शिक्षण संस्थाओं में इस तरह की बातें उठनी चिंतनीय हैं और सोचनीय भी.

जयपुर: शिक्षा कभी नहीं पूछती कि कौन हिंदू है और कौन मुसलमान, लेकिन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से उठा यह सवाल फिरोज खान के गृह जनपद बगरु के मासूम बच्चों के मन को भी कुरेद रहा है. उन बच्चों को जिन्होंने बचपन से भारत की धर्म निरपेक्ष संस्कृति को पढ़ा-समझा और जाना है. जिन्हें यही सिखाया गया है कि हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई आपस में हैं भाई-भाई. ईटीवी भारत ने बगरू में एक साथ शिक्षा ग्रहण कर रहे कुछ छात्रों से बात की, ये सभी छात्र उसी विद्यालय में पढ़ते हैं, जहां से फिरोज ने अपनी संस्कृत शिक्षा की शुरुआत की थी.

फिरोज के गांव पहुंचा ईटीवी भारत.

राजकीय वरिष्ठ उपाध्याय संस्कृत विद्यालय बगरू में पढ़ने वाले इन छात्रों में खास बात ये थी कि इनमें 50 फीसदी छात्र मुस्लिम समुदाय के थे. ये छात्र फर्राटे से संस्कृत के श्लोक भी बोल रहे थे, न सिर्फ श्लोक बोल रहे थे बल्कि उन्हें इस श्लोक का हिंदी अनुवाद भी कंठस्थ था. इनमें से अधिकतर संस्कृत शिक्षा में अपना भविष्य देखते हुए संस्कृत के प्रोफेसर और शिक्षक बनने की चाह रखे हुए हैं.

लेकिन इस बच्चों के मन, दिल और दिमाग में क्या चल रहा है हमने यह भी जानने की कोशिश की. हमने प्रोफेसर फिरोज खान के मामले को लेकर उनसे बात की और फिर जो जवाब आया वो यकीनन समाज के लिए सोचनीय था. सभी छात्रों ने कहा कि वो फिरोज भैया से ही पढ़ना चाहते हैं. यही नहीं उन्होंने यह भी साफ कर दिया फिरोज को लेकर जो कुछ भी चल रहा है ऐसा नहीं होना चाहिए.

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बच्चों ने कहा वे संस्कृत पढ़कर प्रोफेसर और शिक्षक बनना चाहते हैं, लेकिन जो कुछ भी हो रहा है, उसके बाद हमें अपने भविष्य को लेकर चिंता होती है. छात्रों ने कहा कि हमारे स्कूलों में जो तालीम दी जा रही है, उसमें कहीं भी मजहब का जिक्र नहीं किया जाता. फिर उच्च शिक्षण संस्थाओं में इस तरह की बातें उठनी चिंतनीय हैं और सोचनीय भी.

Intro:जयपुर - बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के मुस्लिम प्रोफेसर फिरोज खान का विरोध स्कूली बच्चों को भी रास नहीं आ रहा। फिरोज खान के होम टाउन बगरू में ईटीवी भारत ने जब वहां पढ़ रहे आठवीं-दसवीं कक्षा के छात्रों से बात की, तो उन्होंने भी राधे भैया की बजाय फिरोज भैया से संस्कृत शिक्षा लेना पसंद करने की बात कही। खास बात ये रही कि जिन बच्चों से हमने बात की उनमें ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के थे, जो संस्कृत शिक्षा में अपना भविष्य देखते है।


Body:शिक्षा कभी नहीं पूछती कि कौन हिंदू है, कौन मुसलमान। लेकिन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से उठा ये सवाल फिरोज खान के होम टाउन बगरु के मासूम बच्चों के मन को भी कुरेद रहा है। उन बच्चों को जिन्होंने बचपन से भारत की धर्मनिरपेक्ष संस्कृति को पढ़ा है, समझा है। और जिन्हें यही सिखाया गया है कि हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई आपस में है भाई-भाई। ईटीवी भारत ने बगरू में एक साथ शिक्षा ग्रहण कर रहे कुछ छात्रों से बात की। ये सभी छात्र उसी विद्यालय में पढ़ते हैं, जहां से फिरोज ने अपनी संस्कृत शिक्षा की शुरुआत की थी। राजकीय वरिष्ठ उपाध्याय संस्कृत विद्यालय बगरू में पढ़ने वाले इन छात्रों में खास बात ये थी कि इनमें 50 फीसदी छात्र मुस्लिम समुदाय के थे। ये छात्र फर्राटे से संस्कृत के श्लोक भी बोल रहे थे, ना सिर्फ श्लोक बोल रहे थे बल्कि उन्हें इस श्लोक का हिंदी अनुवाद भी कंठस्थ था। और इनमें से अधिकतर संस्कृत शिक्षा में अपना भविष्य देखते हुए संस्कृत के प्रोफेसर और शिक्षक बनने की चाह रखे हुए हैं। हमारे संवाददाता ने प्रोफेसर फिरोज खान के मसले में छात्रों से उनकी राय जानी तो, उन्हें भी ये विरोध नागवार गुजरा। छात्रों ने तो ये तक कह दिया कि राधे भैया और फिरोज भैया में से वो फिरोज भैया से संस्कृत की शिक्षा लेना पसंद करेंगे।


Conclusion:छात्रों की इस भावना से ये तो साफ हो गया कि हमारे स्कूलों में जो तालीम दी जा रही है, उसमें कहीं भी मजहब का जिक्र नहीं किया जाता। लेकिन यदि उच्च शिक्षण संस्थाओं में इस तरह की बातें उठती हैं, तो सवाल उठने भी लाजमी हो जाते हैं।
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