लखनऊः आज विश्व गौरैया दिवस (20 मार्च) है. गौरिया को बचाने और संरक्षित करने के लिए इस दिन पूरे विश्व में सबको जागरूक किया जाता है. लखनऊ के अलीगंज स्थित केंद्रीय विद्यालय में विज्ञान शिक्षक सुशील द्विवेदी भी इस काम को बखूबी अंजाम दे रहे हैं. उन्होंने जूतों के अनुपयोगी डिब्बों से गौरेया के सैकड़ों घोंसले बना डाले हैं. उनके शौक को देखकर हजारों लोग भी इससे प्रेरित हुए हैं. अब तक सुशील द्विवेदी अपने घर के आसपास के करीब 15000 से ज्यादा बच्चों को भी यह हुनर सिखा चुके हैं.
पर्यावरण संरक्षक के रूप में पहचान
पेशे से शिक्षक सुशील द्विवेदी की पहचान एक पर्यावरण संरक्षक के रूप में भी की जाती है. विश्व गौरैया दिवस पर उन्होंने बताया कि गौरैया बेहद घरेलू, शर्मिला और मनमोहक पक्षी है. हमसे छूटी हुई गौरैया पुनः हमारे घरों में बने घोसलों में लौट आती है. इससे अच्छी बात क्या होगी इसके लिए कुछ कार्य करने की हमें जरूरत है. अगर गौरैया आपके घर में घोंसला बना रही है तो उसे बनाने दें. उसे हटाए नहीं. रोजाना अपने आंगन, खिड़की, बाहरी दीवारों पर उसके लिए दाना, पानी रखें और अपने वाहनों की उचित समय पर सर्विसिंग कराएं, जिससे वायु प्रदूषण कम हो. गौरैया को स्वच्छ हवा मिल सके. गर्मी के दिनों में अपने घर की छत पर एक बर्तन में पानी भरकर रखें. जूतों के खाली डिब्बों, प्लास्टिक की बड़ी बोतलों, मटकों में छेद करके इनका घर बनाकर उन्हें उचित स्थानों पर लगाएं और हरियाली बढ़ाएं. छतों पर घोंसला बनाने के लिए कुछ जगह छोड़ें और उनके घोंसले को नष्ट ना करें. प्रजनन के समय उनके अंडों की सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए.
बच्चों को सिखाया घोंसला बनाना
अपने शौक के बारे में उन्होंने कहा कि उन्हें घोंसले बनाने का शौक बचपन से है. जब वे शिक्षक बन गए और एक पिता बनकर अपने बच्चों को घोंसले बनाना सिखाने लगे तो यह शौक फिर से बढ़ गया. उन्होंने अपने बच्चों के साथ में आसपास रहने वाले और स्कूली बच्चों को विभिन्न कार्यशालाओं के माध्यम से, खेल-खेल में जीरो लागत वाले घोंसले बनाना सिखाया. उनके घर के आसपास रहने वाले बच्चों ने घोंसले बनाकर अपने घरों में टांगे हैं.
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गौरेया के लिए ये हैं समस्याएं
आधुनिक जीवन शैली गौरेया के लिए बाधा बन गई है. पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, खेतों में कृषि रसायनों का अधिकाधिक प्रयोग, यूकेलिप्टस के पेड़ों का सामाजिक वानिकी के रूप में लाना, टेलीफोन टावरों से निकलने वाली तरंगें, घरों में शीशे की खिड़कियां इनके जीवन के लिए प्रतिकूल हैं. गौरेया स्वस्थ रहने के लिए धूल स्नान करना पसंद करती हैं. ध्वनि प्रदूषण भी गौरैया की घटती आबादी का एक प्रमुख कारण है.
ग्लोबल वार्मिंग भी खतरा
ग्लोबल वार्मिंग के कारण गौरैया हमसे दूर होती जा रही है. गौरैया के गायब होने का मतलब है, सीधे-सीधे किसानों की पैदावार कम होना. सिर्फ सरकार के भरोसे हम इंसानी दोस्त गौरैया को नहीं बचा सकते. इसके लिए हमें आने वाली पीढ़ी विशेषकर बच्चों को हमें बताना होगा कि गौरैया का हमारे मानवीय जीवन और पर्यावरण के लिए क्या खास महत्व है. प्रकृति प्रेमियों को अभियान चलाकर लोगों को मानव जीवन में पशु पक्षियों के योगदान की जानकारी देनी होगी. इसके अलावा स्कूली पाठ्यक्रम में हमें गौरैया और दूसरे पक्षियों को शामिल करना होगा, वरना वह दिन दूर नहीं जब गौरैया हमारे आसपास से पूरी तरह गायब हो जाएगी.