लखनऊ : पिछले दो दशक से उत्तर प्रदेश में विभिन्न सरकारें पर्यावरण संरक्षण की चिंता में पॉलिथीन पर प्रतिबंध लगाती आ रही हैं, पर मजाल है कि इन कोशिशों का रंच मात्र भी प्रभाव पड़ा हो. पॉलिथीन प्रतिबंध के आदेश दर्शाते हैं कि सरकार की कोशिशों में कभी गंभीरता थी ही नहीं. जिस सचिवालय और विधानसभा में कानून बनते हैं, ठीक उसके बाहर दुकानों, ठेलों ओर खोमचों में नियमों की धज्जियां उड़ती देखी जा सकती हैं. सोमवार को मुख्य सचिव को एक बार फिर इस संबंध में आदेश जारी करना पड़ा. इस बार उन्होंने सरकारी कार्यालयों में प्लास्टिक बोतल और प्लास्टिक फोल्डर्स उपयोग पर रोक लगाने के लिए कहा है, हालांकि योगी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में ही पॉलिथीन पर पूर्णतया प्रतिबंध लगाया था. इससे पहले अखिलेश और उनकी पूर्ववर्ती बसपा सरकार मैं भी पॉलिथीन पर प्रतिबंध लगाए थे, जिनका पॉलिथीन उपयोग और बिक्री पर जरा भी असर नहीं पड़ा.
अपने हालिया आदेश में मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल और कागज की बर्बादी को लेकर कदम उठाए हैं. उन्होंने अपने आदेश में सभी सरकारी अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि कार्यालयों में अधिक से अधिक सॉफ्ट कॉपी का इस्तेमाल किया जाए, जिससे कागज की बर्बादी पर अंकुश लगाया जा सके, वहीं बैठकों में पानी के लिए प्लास्टिक बोतल का उपयोग नहीं करने के लिए भी कहा गया है. मुख्य सचिव की ओर से जारी निर्देशों में कहा गया है कि देखने में आ रहा है कि बार-बार निर्देशों के बावजूद विभागों द्वारा प्लास्टिक कवर तथा सिंगल साइड प्रिंट कर बुकलेट प्रस्तुत किया जा रहा है. यह कागज का दुरुपयोग है. इसी तरह प्लास्टिक का प्रयोग पर्यावरण की दृष्टि से उचित नहीं है, जबकि पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता प्रत्येक अधिकारी की नैतिक एवं शासकीय जिम्मेदारी है कि वह इसे रोके. मुख्य सचिव की ओर से जारी निर्देशों में कहा गया है कि कार्यालयों में फिजिकल (हार्ड) कॉपी का प्रयोग कम से कम किया जाए तथा जब भी प्रिंट करने की आवश्यक्ता हो तो डबल साइड ही प्रिंट किया जाए. प्लास्टिक कवर और स्पाइरल बाइंडिंग का कदापि प्रयोग न किया जाए. समस्त पत्रावलियां ई-ऑफिस के माध्यम से ही भेजी जाएं. यदि भौतिक पत्रावलियां भेजना अपरिहार्य हो तो कागज के दोनों तरफ प्रिंट किया जाए. बैठकों में पानी के लिए प्लास्टिक बोलत का उपयोग कदापि न किया जाए.
सवाल उठता है कि पहले से शासनादेश होने के बावजूद इस तरह के आदेश बार-बार जारी क्यों करने पड़ते हैं? क्यों सरकार दर सरकार पर्यावरण की चिंता आदेशों से आगे नहीं बढ़ पाती? इसका एक ही कारण है कि सरकार आदेश तो करती है, लेकिन उसके लिए जरूरी कदम नहीं उठाती. पॉलीथिन प्रतिबंध पर सरकार की कोशिशें तभी कामयाब हो सकती हैं, जबकि पॉलीथिन का विकल्प लोगों के लिए उपलब्ध हो और दूसरी बात पॉलिथीन बनाने वाली फैक्ट्रियों पर प्रतिबंध लगे. साथ ही बाहर से आमद भी पूरी तरह से रोकी जा सके. इन तीनों ही मोर्चों पर किसी सरकार में कोई गंभीर कोशिश नहीं की गई. हर बार पॉलीथिन प्रतिबंध को लेकर शासनादेश हुए. साथ ही दिखावे के लिए कुछ ठेलों और परचून की दुकानों पर कार्रवाई की गई. असल में सिर्फ इतने भर से कुछ भी होने वाला नहीं है. सरकार को किस दिशा में ईमानदारी से प्रयास करने चाहिए. मुख्य सचिव के ताजा आदेश का भी सरकारी स्तर पर अनुपालन हो पाएगा इसमें बड़ा संदेह है. हां, आदेश से मुख्य सचिव की पर्यावरण के प्रति चिंता जरूर जाहिर हो गई है. शायद वह भी यही चाहते होंगे. गौरतलब है कि योगी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल के दौरान अक्टूबर 2019 में सिंगल यूज प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया था. सरकार की मंशा 2022 तक प्रदेश को पॉलिथीन मुक्त बनाने का थी.
इस संबंध में पर्यावरण और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ अंजना कहती हैं 'सरकारें जब चाहेंगी तो इन प्रतिबंधों को मनवा भी लेंगी. शायद अभी सिंगल यूज प्लास्टिक से हो रहे पर्यावरण को नुकसान को लेकर कोई भी गंभीर नहीं है. यही कारण है कि सिर्फ कागजी आदेश होते हैं और असल में कुछ भी नहीं बदलता. सिंगल यूज प्लास्टिक नष्ट नहीं होती. इससे तमाम जानवरों की मौतें होती हैं, साथ ही कई रासायनिक दुष्प्रभाव भी पड़ते हैं.' वह कहती हैं 'सरकार की जिम्मेदारी अपनी जगह पर है, लेकिन इसके लिए जन जागरूकता की भी बहुत जरूरत है. इस नुकसान को ठीक तरीके से तभी रोका जा सकता है, जब आम लोग भी जागरूक होकर संकल्प लें कि वह सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग नहीं करेंगे, क्योंकि यह भावी पीढ़ियों के लिए खतरनाक है. सरकार को अपनी नीतियों के माध्यम से प्लास्टिक के विकल्पों को प्रोत्साहित करना चाहिए. यदि सिंगल यूज प्लास्टिक के सस्ते और आसान विकल्प बाजार में हों, तो इस पर प्रतिबंध आसान हो सकता है.'
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