लखनऊः मौसम में हुए परिवर्तन से आलू की फसल बहुत अधिक प्रभावित हुई है. पिछले साल की अपेक्षा इस साल आलू का रकबा भी कम हुआ है. उत्पादन अगर कम होता है, तो कहीं न कहीं आलू जनसामान्य तक पहुंचना मुश्किल हो जाएगा. चंद्र भानु गुप्त कृषि स्नातकोत्तर महाविद्यालय के कृषि कीट विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉक्टर सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि मौसम में जो पारा लगातार गिरता चला जा रहा है, वो आलू, टमाटर, मिर्च एवं मटर के फसलों के लिए बहुत हानिकारक होता है.
प्रमुख रूप से आलू की फसल में इस समय झुलसा बीमारी का प्रकोप बढ़ता है, हमारे किसान भाई अगर समय से इस बीमारी का प्रबंधन कर लें तो उत्पादन के ऊपर प्रभाव नहीं पड़ता है. प्रमुख रूप से यह रोग पौधों के पत्तियों, डंठलों और कंदो पर दिखाई देने लगता है. इस बीमारी के प्रारंभिक लक्षण पत्तियों पर छोटे हल्के पीले हरे अनियमित आकार के धब्बों के रूप में सबसे पहले दिखाई देते हैं. ये धब्बे बहुत ही शीघ्र बढ़ने लगते हैं और गीले दिखाई देते हैं और उसके बाद यह धब्बे अपने चारों अंगूठी नुमा सफेद फफूंदी जैसा जमा लेते हैं.
हमारे किसान इस बीमारी को आसानी से पहचान लेते हैं. किसानों को सलाह दी जाती है कि जब इस प्रकार की समस्या देखने को मिले तो कॉपर ऑक्सिक्लोराइड 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव कर देना चाहिए. अधिक प्रकोप की दशा में फफूंदी नाशक मैनकोज़ेब 2 ग्राम दवा को प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए. अगर ये दवा उपलब्ध नहीं होती है तो कार्बेंडाजिम नामक फफूंदी नाशक की 3 ग्राम मात्रा को 1 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर के छिड़काव करना लाभप्रद होता है.
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डॉक्टर सिंह ने बताया कि आलू में इस समय कंद बनना प्रारंभ हो जाता है. जिन किसान भाइयों ने नवंबर महीने में आलू की बुआई की थी. अभी झुलसा की समस्या नहीं है फिर भी किसान अपनी फसल की निगरानी करते रहे और जब उनका आलू 70 से 80 दिन का हो जाए तो प्रति बीघा 10 किलोग्राम नाइट्रोजन और 2 किलोग्राम सल्फर का प्रयोग करने से आलू में कंदो का आकार एक समान हो जाता है और उत्पादन भी बढ़ जाता है. फफूंदी नाशक का छिड़काव करते समय यह अवश्य ध्यान रखें कि खेत बहुत गिला नहीं होना चाहिए और अच्छी धूप निकली हुई हो, उस समय छिड़काव लाभदायक होता है. फफूंदी नाशक का घोल अधिक समय तक बनाकर नहीं रखना चाहिए. ताजा घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए.
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