लखनऊ: केजीएमयू में 4,400 बेड की क्षमता है. यह देश में सर्वाधिक बेड वाला अस्पताल है. संस्थान को हर साल सरकार 950 करोड़ रुपये बतौर बजट मुहैया कराती है. इसमें 80 से 90 करोड़ की दवाएं अफसरों द्वारा खरीदी जाती हैं. इसके बावजूद भी मरीज मेडिकल स्टोर से महंगी दवा खरीदने को मजबूर हैं.
मरीजों को मिलती हैं आधी-अधूरी दवाएं
केजीएमयू में कोरोना से पहले हर रोज 8 से 10 हजार मरीजों की ओपीडी थी. अब नए नियमों के तहत हर रोज 28 विभागों में करीब 4 हजार मरीज देखे जाते हैं. इनके लिए संस्थान में एक मुफ्त दवा कांउटर खोला गया. इस पर 25 तरह की मुफ्त दवाओं का दावा है. लेकिन दवा न होने से काउंटर पर सन्नाटा रहता है. सिर्फ 60 से 70 मरीजों को मुफ्त दवा मिल पाती है. वह भी आधी-अधूरी. इसके अलावा 13 एचआरएफ, 2 अमृत फार्मेसी के काउंटर हैं. इन पर बाजार दर से 60 से 80 फीसदी तक सस्ती दवा का दावा किया जाता है. लेकिन यहां भी मरीजों को अधूरी दवाएं ही मिल पाती हैं.
असाध्य रोगी भी परेशान
असाध्य रोगियों को मुफ्त इलाज व दवा के निर्देश हैं. इन रोगियों को अस्पताल में दवा न होने पर खरीद कर देने का प्रावधान है. इसके बावजूद भी दवा न मिल पाने पर उन्हे मेडिकल स्टोर से खरीदनी पड़ती है. उधर, मेडिकल स्टोर से कमीशन का कॉकस मजबूत हैं, ऐसे में डॉक्टर भी धड़ल्ले से बाहर से दवा लिख रहे हैं.
क्या कहते हैं जिम्मेदार
संस्थान के प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह ने कहा कि ज्यादातर दवाएं स्टोर में उपलब्ध हैं. वहीं, जो दवाएं नहीं हैं, उन्हें मंगवाया जाएगा. मरीजों की भीड़ ज्यादा रहती है, हो सकता है कुछ दवाएं समाप्त हो गईं हों.
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