लखनऊ: इलेक्ट्रिक रिक्शा ने राजधानी लखनऊ की सूरत बिगाड़कर रख दी है. हर तरफ सड़क पर ई-रिक्शा ही नजर आते है. शहर में ई-रिक्शा रात के समय साइलेंट किलर साबित हो रहे हैं. जी हां इलेक्ट्रिक वाहन होने के चलते ई-रिक्शा में आवाज नहीं होती, हॉर्न बजाते नहीं, हेडलाइट और इंडिकेटर जलाते नहीं. बैटरी बचाने के चक्कर में ये किसी की जिंदगी में कभी भी भूचाल ला सकते हैं.
इनके आगे पानी भरते हैं नियम-कानून
एक तरफ सरकार शहर को स्मार्ट सिटी बनाने को बेताब है तो दूसरी तरफ शहर की सेहत खराब करने के लिए ई-रिक्शा चालक बेताब हैं. सरकारी तंत्र का इन ई-रिक्शा चालकों पर किसी तरह का कोई नियंत्रण नहीं है. नियमों का मखौल तो इस तरह उड़ा रहे हैं जैसे इन्होंने खुद ही अपने लिए नियम-कानून तय किए हो. पुलिस, यातायात पुलिस और परिवहन विभाग के अधिकारियों के सामने ई-रिक्शा चालक नियमों का उल्लंघन करते हुए सीना चौड़ा करके ऐसे निकलते हैं, जैसे उनकी तरफ कोई अधिकारी आंख उठाकर देख नहीं सकता, कार्रवाई तो दूर की बात है.
दरअसल शहर के अंदर अधिकृत तौर पर यातायात विभाग की तरफ से 30,000 से ज्यादा ई-रिक्शा का आंकड़ा दिया गया है, जो सीधे तौर पर रजिस्टर्ड हैं. इसके अलावा भी शहर की सड़कों पर डेढ़ गुना ज्यादा ई-रिक्शा दिन रात दौड़ रहे हैं. दिन में शहर में बड़े जाम का कारण यही ई-रिक्शा बनते हैं और शाम के समय यमराज के दूत बनकर यही ई-रिक्शा सड़कों पर फर्राटा भरते हैं. यमराज इसलिए क्योंकि हेड लाइट जलाना इन्हें पसंद नहीं भले ही किसी की रोशन जिंदगी में अंधेरा हो जाए.
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इन विभागों पर है नकेल कसने की जिम्मेदारी
ई-रिक्शा पर नकेल कसने की जिम्मेदारी परिवहन विभाग, पुलिस विभाग और यातायात विभाग की है. यह तीनों विभाग जब ई-रिक्शा पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए सड़क पर उतरें तभी शहर को जाम से मुक्ति मिल सकती है. साइलेंट किलर की तरह शाम को बिना हेडलाइट और इंडिकेटर जलाए दौड़ रहे यातायात का सबब बनते इन ई-रिक्शा से हो रहे हादसों से आम लोगों को बचाया जा सकता है.
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