लखनऊ: धारा 370 के हटने के बाद देश भर में जश्न का माहौल है. इस फैसले के बाद सबसे ज्यादा खुशी विस्थापित कश्मीरी पंडितों में है. सात दशक पुरानी इस दीवार के गिरने के बाद से ही कश्मीरी पंडित अपनी आजादी का जश्न मना रहे हैं. राजधानी के केजीएमयू में कार्यरत कश्मीरी विस्थापित डॉ. ए पी टिक्कू ने इस मुद्दे पर ईटीवी भारत से खास बातचीत की. डॉक्टर टिक्कू ने कहा कि वे अपने परिवार के साथ घाटी के दूध पथरी में घर बनाकर रहना चाहते हैं.
1947 में छोड़ना पड़ा था कश्मीर
केजीएमयू के दंत संकाय के हेड डॉ. असीम प्रकाश टिक्कू ने कश्मीर से जुड़े कई किस्से साझा किए. वह कहते हैं कि मेरे पिता और दादा जी 1947 में कश्मीर से विस्थापित किए गए थे. वहां से आने के बाद जयपुर में उनके पिताजी ने फ्लाइंग सीखी और उत्तर प्रदेश के एविएशन बोर्ड में रहकर ही अधिकारी बन रिटायर हुए. डॉ. टिक्कू की तीन पीढ़ियां लखनऊ में ही पैदा हुईं और पली-बढ़ी हैं. वह सरकार का धन्यवाद करते हुए कहते हैं कि धारा 370 के हटने से कश्मीरी पंडितों को अपनी जड़ों को वापस पाने का अधिकार मिल गया है.
राज्ञा देवी मंदिर के बारे में दी जानकारी
डॉ. टिक्कू बताते हैं कि हमारी कुलदेवी राज्ञा देवी का श्रीनगर में बड़ा मंदिर है. मैं अपने परिवार के साथ एक बार इस मंदिर का दर्शन करने जा चुका हूं. वहां जाकर ऐसा लगता है कि हम अपने देश में नहीं बल्कि किसी अलग मुल्क में आ गए हों. धारा 370 की समाप्ति के बाद हम वहां जा सकते हैं और अपनी आजादी के साथ अपनी आस्था को जिंदा रख सकते हैं.
प्रोफेसर टिक्कू कहते हैं कि वे कई बार जम्मू कश्मीर गए हैं. इस दौरान उन्होंने जम्मू कश्मीर की कई जगहों की सैर की है. लेकिन उन्हें दूध पथरी से बेहतरीन जगह दुनिया भर में कोई और नहीं मिली. वह कहते हैं कि अगर दुनिया में कहीं आपको स्वर्ग दिखे तो वह दूध पथरी में ही है. डॉ टिक्कू ने कहा कि मैं यहां अपने परिवार के साथ बसने का ख्बाव देखता था ताकि पीढ़ियां अपनी जड़ों से घुल सकें. आर्टिकल 370 के साथ 35a के हटने से दूध पथरी में बसने का उनका सपना पूरा होता दिख रहा है.