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सावन शिवरात्रि पर भक्त विधि-विधान से करेंगे भगवान शिव की पूजा-अर्चना

सावन के महीने में हर तरफ कांवड़िये बोल-बम और हर-हर महादेव का नारा लगाते भगवान शिव की भक्ति में डूबे रहते हैं. सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व होता है.

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Published : Jul 29, 2019, 11:13 PM IST

तीनों लोक में पूजनीय हैं भगवान शिव.

लखनऊ: सावन का पावन महीना आते ही भगवान भोले के प्रति कांवड़ियों की अपार श्रद्धा दिखाई देने लगती है. कोसों मील पैदल चलकर कांवड़िया बाबा भोलेनाथ के चरणों में गंगा जल अर्पित करते हैं. बम-बम भोले की जयकार और डीजे के गीतों पर थीरकते भक्तों की भोलेनाथ के प्रति श्रद्धा देखते ही बनती है. सावन के महीने में शिवरात्रि पौराणिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है.

तीनों लोक में पूजनीय हैं भगवान शिव.

हिंदू धर्म में दो शिवरात्रि अधिक प्रसिद्ध हैं. पहली शिवरात्रि फाल्गुन महीने के त्रयोदशी के दिन पड़ती है, जिसे महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है. वहीं दूसरी शिवरात्रि सावन में पड़ती है, जिसे साव की शिवरात्रि कहते हैं. सावन की शिवरात्रि भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होती है. इस दिन भक्त शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूर, भांग और गंगा जल चढ़ाकर शिव की पूजा-अर्चना करते हैं.

तीनों लोक के सर्वप्रिय देवता हैं भगवान शिव
भगवान भोलेनाथ को देवता, असुर, नर-नारी सभी पूजते हैं. भोलेनाथ को बहुत आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है, इसीलिए भगवान शिव तीनों लोक में सर्वप्रिय देवता माने जाते हैं. शिव को सुर-असुर, नर-गंर्धव सभी प्राणी पूजते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भोलेनाथ को प्रसन्न कर देवता और असुर सभी वरदान प्राप्त कर चुके हैं.

सभी बुराइयों को स्वयं में समाहित करते हैं शिव
भगवान शिव समाज की सभी बुराइयों को स्वयं में समाहित कर समाज को भय मुक्त करते हैं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण समुद्र मंथन के दौरान उनका विष पीना है. भगवान शिव ने समुद्र मंथन में निकले कालकूट नामक विष का पान कर समाज को विष के बुरे प्रभाव से बचाया था. उन्होंने भस्मासुर जैसे कई असुरों का वध कर सभी को भय मुक्त किया था.

शिव के 12 प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग भारत के कई प्रदेशों में स्थित हैं, जो शिवलिंग के बारह खंड के नाम से जाने जाते हैं. शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है.

ज्योतिर्लिंगों के नाम
1-सोमनाथ 2-मल्लिकार्जुन 3-महाकालेश्वर 4-ओंकारेश्वर 5-वैद्यनाथ 6-भीमशंकर 7-रामेश्वर 8-नागेश्वर 9-विश्वनाथजी 10-त्र्यम्बकेश्वर 11-केदारनाथ 12-घृष्णेश्वर

लखनऊ: सावन का पावन महीना आते ही भगवान भोले के प्रति कांवड़ियों की अपार श्रद्धा दिखाई देने लगती है. कोसों मील पैदल चलकर कांवड़िया बाबा भोलेनाथ के चरणों में गंगा जल अर्पित करते हैं. बम-बम भोले की जयकार और डीजे के गीतों पर थीरकते भक्तों की भोलेनाथ के प्रति श्रद्धा देखते ही बनती है. सावन के महीने में शिवरात्रि पौराणिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है.

तीनों लोक में पूजनीय हैं भगवान शिव.

हिंदू धर्म में दो शिवरात्रि अधिक प्रसिद्ध हैं. पहली शिवरात्रि फाल्गुन महीने के त्रयोदशी के दिन पड़ती है, जिसे महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है. वहीं दूसरी शिवरात्रि सावन में पड़ती है, जिसे साव की शिवरात्रि कहते हैं. सावन की शिवरात्रि भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होती है. इस दिन भक्त शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूर, भांग और गंगा जल चढ़ाकर शिव की पूजा-अर्चना करते हैं.

तीनों लोक के सर्वप्रिय देवता हैं भगवान शिव
भगवान भोलेनाथ को देवता, असुर, नर-नारी सभी पूजते हैं. भोलेनाथ को बहुत आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है, इसीलिए भगवान शिव तीनों लोक में सर्वप्रिय देवता माने जाते हैं. शिव को सुर-असुर, नर-गंर्धव सभी प्राणी पूजते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भोलेनाथ को प्रसन्न कर देवता और असुर सभी वरदान प्राप्त कर चुके हैं.

सभी बुराइयों को स्वयं में समाहित करते हैं शिव
भगवान शिव समाज की सभी बुराइयों को स्वयं में समाहित कर समाज को भय मुक्त करते हैं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण समुद्र मंथन के दौरान उनका विष पीना है. भगवान शिव ने समुद्र मंथन में निकले कालकूट नामक विष का पान कर समाज को विष के बुरे प्रभाव से बचाया था. उन्होंने भस्मासुर जैसे कई असुरों का वध कर सभी को भय मुक्त किया था.

शिव के 12 प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग भारत के कई प्रदेशों में स्थित हैं, जो शिवलिंग के बारह खंड के नाम से जाने जाते हैं. शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है.

ज्योतिर्लिंगों के नाम
1-सोमनाथ 2-मल्लिकार्जुन 3-महाकालेश्वर 4-ओंकारेश्वर 5-वैद्यनाथ 6-भीमशंकर 7-रामेश्वर 8-नागेश्वर 9-विश्वनाथजी 10-त्र्यम्बकेश्वर 11-केदारनाथ 12-घृष्णेश्वर

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