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उपेक्षा का शिकार दीनदयाल पार्क, अधूरी है 20 साल पुरानी करोड़ों की परियोजना - लखनऊ पार्क

राजधानी लखनऊ में स्थित दीनदयाल पार्क सालों से उपेछा का शिकार है. 20 साल पुराने इस पार्क का नींव तत्कालीन राजनाथ सरकार में सिचाई मंत्री रहे ओमप्रकाश सिंह ने तीन सितंबर 2001 को रखी थी. लेकिन उसके बाद कितनी सरकारें आईं और गईं लेकिन इस पार्क की तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया. 4 साल से प्रदेश में बीजेपी की सरकार है, फिर भी इस पार्क दुर्दशा वैसी ही बरकरार है.

उपेक्षा का शिकार दीनदयाल पार्क
उपेक्षा का शिकार दीनदयाल पार्क
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Published : Mar 11, 2021, 10:04 PM IST

लखनऊ : भारतीय जनता पार्टी के कार्यक्रमों से लेकर सरकार की योजनाओं तक, मंच से लेकर चौपालों तक जिन पंडित दीनदयाल उपाध्याय का नाम लिया जाता है, उन्हीं के नाम पर राजधानी में बने पार्क की दुर्दशा देखी नहीं जाती. दीन दयाल पार्क (पंडित दीनदयाल उपाध्याय सिंचाई व सांस्कृतिक संग्रहालय एवं उद्यान) की नींव 20 साल पहले तत्कालीन राजनाथ सरकार में सिचाई मंत्री रहे ओमप्रकाश सिंह ने तीन सितंबर 2001 को रखी थी. मंत्री ओमप्रकाश सिंह तमाम सुविधाओं वाले इस पार्क को राजधानी वासियों को सौंपना चाहते थे, लेकिन 96.66 करोड़ के इस प्रोजेक्ट में उस वक्त रुकावट आनी शुरू हो गयी, जब उसके दूसरे साल ही उनकी सरकार चली गयी, तब से यह प्रोजेक्ट अधूरा लटका पड़ा है.

दयनीय हालत में है दीनदयाल पार्क
कई सरकारें आईं गयीं लेकिन किसी ने नहीं ली सुध

तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह के हटने के बाद बसपा अध्यक्ष मायावती राज्य की मुख्यमंत्री बनीं. मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री हुए. मुलायम के बाद एक बार फिर 2007 में बहुजन समाज पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार आई. पांच साल तक मायावती मुख्यमंत्री रहीं, लेकिन उन्होंने एक बार भी इस तरफ देखना मुनासिब नहीं समझा. मायावती के बाद 2012 में अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने और उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया. सपा की सरकार 2017 में चली गई. भाजपा सत्ता में आई. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व की यह सरकार अपने चार साल पूरे करने जा रही है. लेकिन इस पार्क की दुर्दशा देखकर लोगों को यह नहीं लगता कि पंडित दीनदयाल वाली पार्टी सत्ता में है. भाजपा के प्रेरणा स्रोत और आदर्श माने जाने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर बने इस पार्क की हालत अब भी दयनीय बनी हुई है. सवाल पार्क का नहीं बल्कि सरकारी खजाने की बर्बादी का है.

संग्रहालय समेत 12 चीजों का होना था निर्माण

सरकार हटने से विकास कार्य कैसे बाधित होते हैं, इसका जीता जागता प्रमाण हमारे सामने दीनदयाल पार्क है. मुख्यमंत्री कार्यालय से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर पीजीआई के सामने यह पार्क स्थित है. इस पार्क में 12 चीजों का निर्माण होना था. सिचाई संग्रहालय, सांस्कृतिक संग्रहालय, लेजर फाउंटेन, 150 फीट ऊंचाई का फौव्वारा, संगीतमय फव्वारा, खुला रंगमंच, गुलाब वाटिका, मनमोहक झील, बाल मनोरंजन स्थल, रेस्टोरेंट एवं जलपान गृह, कृत्रिम समुद्री लहर पुल, हस्तकला एवं हस्तशिल्प प्रदर्शनी एवं विक्रय केंद्र जैसे निर्माण होने थे.

जर्जर हो गया 20 साल पुराना भवन

पार्क में प्रस्तावित निर्माणों में से सिचाई संग्रहालय और सांस्कृतिक संग्रहालय का भवन निर्माण हो गया. उसका ढांचा खड़ा है. भवन पर प्लास्टर नहीं हुआ, या फिर यूं कहें कि अधूरा कार्य ही हुआ. इसके बाद उसमें कोई काम नहीं हुआ. नतीजा यह हुआ कि करोड़ों रुपए बर्बाद हो रहे हैं. इनमें से एक बिल्डिंग की हालत तो बहुत ही खराब है. उसकी छत जर्जर हो गयी है. नौबत यह आ गयी कि व्यवस्थापकों को नोटिस चस्पा करना पड़ा कि पर्यटकों का भवन में प्रवेश वर्जित है. फौव्वारे भी लगाए गए लेकिन फौव्वारे की मशीन चोर चोरी कर ले गए. यह तब स्थिति है जब यहां सुरक्षा पर ही करीब 50 लाख रुपये सालाना खर्च किए जाते हैं. 1.8 किलोमीटर लंबे इस पार्क में गुलाब वाटिका भी विद्यमान है. पार्क के अंदर ही एक छोटी बाजार भी है. करीब दो दर्जन दुकानों का निर्माण हुआ है. परियोजना के पूर्ण नहीं हो पाने की वजह से लोगों का आना बहुत कम हो गया है. आम लोगों के नहीं आने का एक और बड़ा कारण प्रेमी जोड़े भी हैं.

सरकारी स्टाफ की फौज

सरकार ने पार्क में सरकारी स्टाफ की पूरी फौज लगा रखी है. जल शक्ति विभाग की तरफ से चार एई (असिस्टेंट इंजीनियर) और 24 जेई (जूनियर इंजीनियर) की यहां तैनाती है. इसके अलावा करीब 50 अन्य कर्मचारी भी लगाए गए हैं. यही नहीं सुरक्षा के लिए पूर्व सैनिक कल्याण निगम के जवानों को लगाया गया है. पार्क के रख-रखाव का जिम्मा निजी संस्था के पास है. एक कर्मचारी ने बताया कि पार्क के रख-रखाव पर करीब एक करोड़ रुपये सालाना खर्च किए जाते हैं. इस लिहाज से पार्क की कमाई नहीं के बराबर है. तैनात कर्मचारी ने पूरा ब्यौरा देने से मना कर दिया, लेकिन आकलन है कि ज्यादातर हर दिन 100 से 150 लोग ही आते हैं. एक व्यक्ति पर 10 रुपये का टिकट लगता है. पार्क की आमदनी हजार से डेढ़ हजार रुपये रोज की होती है. खर्च इससे कहीं ज्यादा है. यदि पार्क का निर्माण पूरा हो जाए तो पर्यटकों की संख्या में इजाफा होगा. इससे शहर को सुंदर पार्क ही नहीं बल्कि कई लोगों को रोजगार भी मिलेगा.

लखनऊ : भारतीय जनता पार्टी के कार्यक्रमों से लेकर सरकार की योजनाओं तक, मंच से लेकर चौपालों तक जिन पंडित दीनदयाल उपाध्याय का नाम लिया जाता है, उन्हीं के नाम पर राजधानी में बने पार्क की दुर्दशा देखी नहीं जाती. दीन दयाल पार्क (पंडित दीनदयाल उपाध्याय सिंचाई व सांस्कृतिक संग्रहालय एवं उद्यान) की नींव 20 साल पहले तत्कालीन राजनाथ सरकार में सिचाई मंत्री रहे ओमप्रकाश सिंह ने तीन सितंबर 2001 को रखी थी. मंत्री ओमप्रकाश सिंह तमाम सुविधाओं वाले इस पार्क को राजधानी वासियों को सौंपना चाहते थे, लेकिन 96.66 करोड़ के इस प्रोजेक्ट में उस वक्त रुकावट आनी शुरू हो गयी, जब उसके दूसरे साल ही उनकी सरकार चली गयी, तब से यह प्रोजेक्ट अधूरा लटका पड़ा है.

दयनीय हालत में है दीनदयाल पार्क
कई सरकारें आईं गयीं लेकिन किसी ने नहीं ली सुध

तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह के हटने के बाद बसपा अध्यक्ष मायावती राज्य की मुख्यमंत्री बनीं. मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री हुए. मुलायम के बाद एक बार फिर 2007 में बहुजन समाज पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार आई. पांच साल तक मायावती मुख्यमंत्री रहीं, लेकिन उन्होंने एक बार भी इस तरफ देखना मुनासिब नहीं समझा. मायावती के बाद 2012 में अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने और उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया. सपा की सरकार 2017 में चली गई. भाजपा सत्ता में आई. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व की यह सरकार अपने चार साल पूरे करने जा रही है. लेकिन इस पार्क की दुर्दशा देखकर लोगों को यह नहीं लगता कि पंडित दीनदयाल वाली पार्टी सत्ता में है. भाजपा के प्रेरणा स्रोत और आदर्श माने जाने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर बने इस पार्क की हालत अब भी दयनीय बनी हुई है. सवाल पार्क का नहीं बल्कि सरकारी खजाने की बर्बादी का है.

संग्रहालय समेत 12 चीजों का होना था निर्माण

सरकार हटने से विकास कार्य कैसे बाधित होते हैं, इसका जीता जागता प्रमाण हमारे सामने दीनदयाल पार्क है. मुख्यमंत्री कार्यालय से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर पीजीआई के सामने यह पार्क स्थित है. इस पार्क में 12 चीजों का निर्माण होना था. सिचाई संग्रहालय, सांस्कृतिक संग्रहालय, लेजर फाउंटेन, 150 फीट ऊंचाई का फौव्वारा, संगीतमय फव्वारा, खुला रंगमंच, गुलाब वाटिका, मनमोहक झील, बाल मनोरंजन स्थल, रेस्टोरेंट एवं जलपान गृह, कृत्रिम समुद्री लहर पुल, हस्तकला एवं हस्तशिल्प प्रदर्शनी एवं विक्रय केंद्र जैसे निर्माण होने थे.

जर्जर हो गया 20 साल पुराना भवन

पार्क में प्रस्तावित निर्माणों में से सिचाई संग्रहालय और सांस्कृतिक संग्रहालय का भवन निर्माण हो गया. उसका ढांचा खड़ा है. भवन पर प्लास्टर नहीं हुआ, या फिर यूं कहें कि अधूरा कार्य ही हुआ. इसके बाद उसमें कोई काम नहीं हुआ. नतीजा यह हुआ कि करोड़ों रुपए बर्बाद हो रहे हैं. इनमें से एक बिल्डिंग की हालत तो बहुत ही खराब है. उसकी छत जर्जर हो गयी है. नौबत यह आ गयी कि व्यवस्थापकों को नोटिस चस्पा करना पड़ा कि पर्यटकों का भवन में प्रवेश वर्जित है. फौव्वारे भी लगाए गए लेकिन फौव्वारे की मशीन चोर चोरी कर ले गए. यह तब स्थिति है जब यहां सुरक्षा पर ही करीब 50 लाख रुपये सालाना खर्च किए जाते हैं. 1.8 किलोमीटर लंबे इस पार्क में गुलाब वाटिका भी विद्यमान है. पार्क के अंदर ही एक छोटी बाजार भी है. करीब दो दर्जन दुकानों का निर्माण हुआ है. परियोजना के पूर्ण नहीं हो पाने की वजह से लोगों का आना बहुत कम हो गया है. आम लोगों के नहीं आने का एक और बड़ा कारण प्रेमी जोड़े भी हैं.

सरकारी स्टाफ की फौज

सरकार ने पार्क में सरकारी स्टाफ की पूरी फौज लगा रखी है. जल शक्ति विभाग की तरफ से चार एई (असिस्टेंट इंजीनियर) और 24 जेई (जूनियर इंजीनियर) की यहां तैनाती है. इसके अलावा करीब 50 अन्य कर्मचारी भी लगाए गए हैं. यही नहीं सुरक्षा के लिए पूर्व सैनिक कल्याण निगम के जवानों को लगाया गया है. पार्क के रख-रखाव का जिम्मा निजी संस्था के पास है. एक कर्मचारी ने बताया कि पार्क के रख-रखाव पर करीब एक करोड़ रुपये सालाना खर्च किए जाते हैं. इस लिहाज से पार्क की कमाई नहीं के बराबर है. तैनात कर्मचारी ने पूरा ब्यौरा देने से मना कर दिया, लेकिन आकलन है कि ज्यादातर हर दिन 100 से 150 लोग ही आते हैं. एक व्यक्ति पर 10 रुपये का टिकट लगता है. पार्क की आमदनी हजार से डेढ़ हजार रुपये रोज की होती है. खर्च इससे कहीं ज्यादा है. यदि पार्क का निर्माण पूरा हो जाए तो पर्यटकों की संख्या में इजाफा होगा. इससे शहर को सुंदर पार्क ही नहीं बल्कि कई लोगों को रोजगार भी मिलेगा.

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