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कर्ज में डूबी योगी सरकार पूर्व की अखिलेश सरकार से बेहतर स्थिति में, अर्थशास्त्रियों के मुताबिक शुभ संकेत कैसे? - उज्जवला डिस्कॉम एश्योरेंस योजना

योगी सरकार प्रदेश को विकास की राह पर तेजी से आगे ले जाने को लेकर प्रयासरत है. दावा है कि योगी सरकार पार्ट-1 में ऐसा किया भी गया. लेकिन इस बीच सरकार का कर्ज भी बढ़ा है.

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अर्थशास्त्रियों के मुताबिक शुभ संकेत
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Published : Apr 29, 2022, 6:52 PM IST

Updated : Apr 29, 2022, 9:23 PM IST

लखनऊः योगी आदित्यनाथ सरकार प्रदेश को विकास की राह पर तेजी से आगे ले जाने को लेकर प्रयासरत है. जिसका वो दावा भी करते हैं कि हर क्षेत्र में सरकार ने अभूतपूर्व काम किया है. वहीं उत्तर प्रदेश सरकार पर कर्ज भी खूब बढ़ा है. यूपी सरकार काफी कर्ज में डूबी हुई है. कर्ज लेकर सरकार प्रदेश को विकास के पथ पर तेजी से आगे ले जा रही है और विकास के स्तर पर मिलने वाले राजस्व से कर्ज वापस भी कर रही है.

वर्तमान समय में यूपी सरकार कितने कर्ज में डूबी है और पूर्ववर्ती समाजवादी पार्टी की अखिलेश सरकार उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को विरासत में कितना कर्ज देकर गई है. इसको लेकर ईटीवी भारत ने पड़ताल की. हमने वित्त विभाग के आंकड़े और राजनीतिक विश्वेषक और वरिष्ठ अर्थशास्त्री से बात की और पूरी स्थिति समझने की कोशिश की. आंकड़ों पर गौर करें तो वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश सरकार और तमाम वित्तीय देनदारियां हैं. मतलब सरकार विकास परियोजनाओं को धरातल तक ले जाने के लिए बड़े कर्ज ले रखे हैं.

अर्थशास्त्रियों के मुताबिक शुभ संकेत

वित्तीय आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश सरकार पर 6,53,307 लाख करोड़ रुपये का कर्जा है. जो तमाम विकास परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए समय-समय पर अलग वित्तीय संस्थानों से लिया गया है. इससे पहले पूर्व की अखिलेश यादव सरकार ने 2017 में कितना कर्ज उत्तर प्रदेश सरकार पर छोड़ा है. अगर उन आंकड़ों की बात करें तो 4,73,348 लाख करोड़ रुपये का कर्ज मार्च 2017 में था. 2017 से 2022 तक योगी आदित्यनाथ सरकार चलाने के बाद मार्च 2022 तक उत्तर प्रदेश सरकार पर जो बकाया कर्ज है, वो 6,53,307 लाख करोड़ रुपये है, जो पूर्ववर्ती अखिलेश यादव सरकार से करीब 38 फीसदी अधिक है.

उत्तर प्रदेश सरकार तमाम विकास परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए अलग-अलग वित्तीय संस्थानों और योजनाओं के नाम पर अलग-अलग मद में कर्ज ले रखा है. मुख्य रुप से सरकार ने राज्य विकास ऋण, उज्जवला डिस्कॉम एश्योरेंस योजना, क्षतिपूर्ण एवं अन्य बांड, एनएसएसएफ, अर्थोपाय अग्रिम, एलआईसी से ऋण, जीआईसी से ऋण, नाबार्ड से ऋण, एसबीआई एवं अन्य बैंकों से ऋण, एनसीडीसी से ऋण, अन्य संस्थाओं से ऋण, बैंक एवं वित्तीय संस्थाएं, आंतरिक ऋण, केंद्र से ऋण, पीएफ से ऋण, आरक्षित कोष, जमा एवं अग्रिम आपदा राशि के नाम पर अलग-अलग कर्ज लिया गया है.

आंकड़ों की गहराई से जांच से इस बात का खुलासा होता है कि योगी सरकार में उधारी का ज्यादा वह बेहतर इस्तेमाल विकास के कामों को आगे बढ़ाने के लिए किया गया. हनुमान बताते हैं कि 10 मार्च 2017 को राज्य की जीएसडीपी 10.11 लाख करोड़ थी, जो 30 मार्च 2022 तक बनकर 19.10 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गई. इस तरह जहां तक सरकार की उधारी यानी कर्ज का सवाल है तो योगी सरकार में राहत भरी खबर है और इसके उलट अखिलेश के मुख्यमंत्री रहते कर्ज का मर्ज ज्यादा था.

राजनीतिक विश्लेषक वरिष्ठ अर्थशास्त्री प्रोफेसर एपी तिवारी कहते हैं कि जब हम प्रदेश की राजकोषीय स्थिति को देखते हैं, तो जहां तक कुल देनदारियों की बात है तो 31 मार्च 2017 को जो देनदारी थी उसमें करीब 38 फीसदी बढ़ोतरी दिखती है. अगर हम इसकी तुलना 21 मार्च 2022 के आंकड़े को लेकर करें, तो सबसे अहम बात ये है कि जो कर्ज का बोझ होता है उत्तर प्रदेश का या किसी भी प्रदेश का उसको मापा जाता है उसके आय के सापेक्ष यानी जीएसडीपी के सापेक्ष. यानी ऐसी स्थिति में 2017 में मार्च में ये 36.7 फीसदी था. जीएसडीपी के सापेक्ष कुल देनदारी थी, जो घटकर 31 मार्च 2022 को 34.2 फीसदी आ गई है. इस तरह देखने में नजर आता है कि राज्य का ऋण भार बढ़ गया है. जहां तक उसके धनराशि का सवाल है, तो पिछले 5 सालों में यह वृद्धि 38 फीसदी की हुई है.

प्रोफेसर एपी तिवारी कहते हैं कि सबसे राहत भरी बात ये है कि राज्य का जो सकल कर्ज है, देनदारी है वह जीएसडीपी के सापेक्ष घट गई है. यह एक संकेत राजकोषीय अर्थशास्त्र में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. देनदारियां ऊपरी तौर पर तो बढ़ रही हैं, लेकिन बढ़ी हुई देनदारियों की संरचना को भी देखना बहुत महत्वपूर्ण होता है. सबसे ज्यादा ऋण जो राज्य सरकार ले रही है जो स्टेट डेवलपमेंट लोन्स के रूप में ले रही है. राज्य विकास ऋण के रूप में ले रही है. इसका आशय यह है कि इसका अधिकांश उपयोग लोन का विकासगामी कार्यक्रमों के लिए हो रहा है. इंफ्रास्ट्रक्चर बिल्ड अप करने के लिए, यही नहीं राजकोषीय घाटे को पाटने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. अगर सरकार की कुल देनदारी बजट में ज्यादा है और लेनदारी कम है तो उसे सरकार कर्ज लेकर पाटती है, यह राजकोषीय घाटे को पाटने के लिए किया जाता है, तो ये अर्थव्यवस्था के लिए एक शुभ संकेत है.

इसे भी पढ़ें- योगी सरकार का बड़ा फैसला, रिटायरमेंट के 3 दिन के अंदर ही कर्मचारियों के खाते में आएंगे पैसे

एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि उत्तर प्रदेश एफआरबीएम एक्ट है उसमें राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3 फीसदी बनाए रखने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. योगी सरकार ने इस बात का प्रयास कर इसको 2.97 पर रखकर राजकोषीय दक्षता का परिचय दिया है. मेरे कहने का आशय यह है कि सरकार का ऋण बढ़ रहा है, लेकिन बढ़े हुए ऋण
का इस्तेमाल सरकार राजकोषीय प्रवीणता के आधार पर उन कार्यों के लिए कर रही है, जो सरकार की सामाजिक प्राथमिकताएं हैं. विकास कार्य समाज के आर्थिक विकास के लिए जरूरी है, अवस्थापना सुविधाओं में यह खर्च किया जा रहा है. कोरोना संकट के चलते बड़ा भार राजकोषीय भार अर्थव्यवस्था पर पड़ा है, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने 5 सालों में जो राजकोषीय प्रबंधन किया है वह उल्लेखनीय है. वित्त आयोग और एफआरबीएम एक्ट के मानकों के अनुरूप है.


इस तरह कर्ज वापस करती है सरकारः राज्य सरकार के ऊपर जो कर्ज का बोझ है और इस कर्ज को किस प्रकार से सरकार वापस करती है. इसको लेकर राजनीतिक विश्लेषक वरिष्ठ अर्थशास्त्री प्रोफेसर एपी तिवारी कहते हैं कि कर्ज का जो पुर्नभुगतान किया जाता है या कर्ज की वापसी की जाती है तो स्वाभाविक एक ऐसी स्थिति है कि सरकार को कर एवं करेत्तर स्रोतों से जो आय प्राप्त होती है उससे की जाती है. जहां तक कर राजस्व का सवाल है तो उत्तर प्रदेश का कर राजस्व कोरोना संकट के बावजूद बेहतरी को प्रदर्शित कर रहा है. कर राजस्व के माध्यम से कर्ज वापस किया जाता है. दूसरी बात जो यूजर चार्जर लिए जाते हैं जो सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम प्रबंधित किए जाते हैं. उनसे जो इनकम होती है, उसके माध्यम से कर्ज वापस किया जाता है. सरकार यदि राजकोषीय प्रवीणता का परिचय देती है तो कम खर्च से उसी कार्य को करती है. कम खर्च करने से जो बचत होती है और उससे मिलने वाली आय से कर्ज वापस करती है.

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एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि जहां तक ऋण की वापसी का सवाल है सरकार ऋण का इस्तेमाल उन परियोजनाओं पर करती है, जिससे सरकार को लाभ प्राप्त होता है, तो उससे कर्ज की वापसी करती है. कहते हैं कि पिछले 5 सालों में जो आर्थिक परिदृश्य हैं उत्तर प्रदेश के विकासगामी खर्च बढ़ रहे हैं, पूंजीगत खर्च बढ़ रहे हैं तो यह शुभ संकेत है. सरकार ऐसी जगह पूंजी को निवेश कर रही है जहां से उसे उपार्जन प्राप्त हो रहा है और बड़े उपार्जन के जरिए ऋण की वापसी कर रही है.

लखनऊः योगी आदित्यनाथ सरकार प्रदेश को विकास की राह पर तेजी से आगे ले जाने को लेकर प्रयासरत है. जिसका वो दावा भी करते हैं कि हर क्षेत्र में सरकार ने अभूतपूर्व काम किया है. वहीं उत्तर प्रदेश सरकार पर कर्ज भी खूब बढ़ा है. यूपी सरकार काफी कर्ज में डूबी हुई है. कर्ज लेकर सरकार प्रदेश को विकास के पथ पर तेजी से आगे ले जा रही है और विकास के स्तर पर मिलने वाले राजस्व से कर्ज वापस भी कर रही है.

वर्तमान समय में यूपी सरकार कितने कर्ज में डूबी है और पूर्ववर्ती समाजवादी पार्टी की अखिलेश सरकार उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को विरासत में कितना कर्ज देकर गई है. इसको लेकर ईटीवी भारत ने पड़ताल की. हमने वित्त विभाग के आंकड़े और राजनीतिक विश्वेषक और वरिष्ठ अर्थशास्त्री से बात की और पूरी स्थिति समझने की कोशिश की. आंकड़ों पर गौर करें तो वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश सरकार और तमाम वित्तीय देनदारियां हैं. मतलब सरकार विकास परियोजनाओं को धरातल तक ले जाने के लिए बड़े कर्ज ले रखे हैं.

अर्थशास्त्रियों के मुताबिक शुभ संकेत

वित्तीय आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश सरकार पर 6,53,307 लाख करोड़ रुपये का कर्जा है. जो तमाम विकास परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए समय-समय पर अलग वित्तीय संस्थानों से लिया गया है. इससे पहले पूर्व की अखिलेश यादव सरकार ने 2017 में कितना कर्ज उत्तर प्रदेश सरकार पर छोड़ा है. अगर उन आंकड़ों की बात करें तो 4,73,348 लाख करोड़ रुपये का कर्ज मार्च 2017 में था. 2017 से 2022 तक योगी आदित्यनाथ सरकार चलाने के बाद मार्च 2022 तक उत्तर प्रदेश सरकार पर जो बकाया कर्ज है, वो 6,53,307 लाख करोड़ रुपये है, जो पूर्ववर्ती अखिलेश यादव सरकार से करीब 38 फीसदी अधिक है.

उत्तर प्रदेश सरकार तमाम विकास परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए अलग-अलग वित्तीय संस्थानों और योजनाओं के नाम पर अलग-अलग मद में कर्ज ले रखा है. मुख्य रुप से सरकार ने राज्य विकास ऋण, उज्जवला डिस्कॉम एश्योरेंस योजना, क्षतिपूर्ण एवं अन्य बांड, एनएसएसएफ, अर्थोपाय अग्रिम, एलआईसी से ऋण, जीआईसी से ऋण, नाबार्ड से ऋण, एसबीआई एवं अन्य बैंकों से ऋण, एनसीडीसी से ऋण, अन्य संस्थाओं से ऋण, बैंक एवं वित्तीय संस्थाएं, आंतरिक ऋण, केंद्र से ऋण, पीएफ से ऋण, आरक्षित कोष, जमा एवं अग्रिम आपदा राशि के नाम पर अलग-अलग कर्ज लिया गया है.

आंकड़ों की गहराई से जांच से इस बात का खुलासा होता है कि योगी सरकार में उधारी का ज्यादा वह बेहतर इस्तेमाल विकास के कामों को आगे बढ़ाने के लिए किया गया. हनुमान बताते हैं कि 10 मार्च 2017 को राज्य की जीएसडीपी 10.11 लाख करोड़ थी, जो 30 मार्च 2022 तक बनकर 19.10 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गई. इस तरह जहां तक सरकार की उधारी यानी कर्ज का सवाल है तो योगी सरकार में राहत भरी खबर है और इसके उलट अखिलेश के मुख्यमंत्री रहते कर्ज का मर्ज ज्यादा था.

राजनीतिक विश्लेषक वरिष्ठ अर्थशास्त्री प्रोफेसर एपी तिवारी कहते हैं कि जब हम प्रदेश की राजकोषीय स्थिति को देखते हैं, तो जहां तक कुल देनदारियों की बात है तो 31 मार्च 2017 को जो देनदारी थी उसमें करीब 38 फीसदी बढ़ोतरी दिखती है. अगर हम इसकी तुलना 21 मार्च 2022 के आंकड़े को लेकर करें, तो सबसे अहम बात ये है कि जो कर्ज का बोझ होता है उत्तर प्रदेश का या किसी भी प्रदेश का उसको मापा जाता है उसके आय के सापेक्ष यानी जीएसडीपी के सापेक्ष. यानी ऐसी स्थिति में 2017 में मार्च में ये 36.7 फीसदी था. जीएसडीपी के सापेक्ष कुल देनदारी थी, जो घटकर 31 मार्च 2022 को 34.2 फीसदी आ गई है. इस तरह देखने में नजर आता है कि राज्य का ऋण भार बढ़ गया है. जहां तक उसके धनराशि का सवाल है, तो पिछले 5 सालों में यह वृद्धि 38 फीसदी की हुई है.

प्रोफेसर एपी तिवारी कहते हैं कि सबसे राहत भरी बात ये है कि राज्य का जो सकल कर्ज है, देनदारी है वह जीएसडीपी के सापेक्ष घट गई है. यह एक संकेत राजकोषीय अर्थशास्त्र में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. देनदारियां ऊपरी तौर पर तो बढ़ रही हैं, लेकिन बढ़ी हुई देनदारियों की संरचना को भी देखना बहुत महत्वपूर्ण होता है. सबसे ज्यादा ऋण जो राज्य सरकार ले रही है जो स्टेट डेवलपमेंट लोन्स के रूप में ले रही है. राज्य विकास ऋण के रूप में ले रही है. इसका आशय यह है कि इसका अधिकांश उपयोग लोन का विकासगामी कार्यक्रमों के लिए हो रहा है. इंफ्रास्ट्रक्चर बिल्ड अप करने के लिए, यही नहीं राजकोषीय घाटे को पाटने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. अगर सरकार की कुल देनदारी बजट में ज्यादा है और लेनदारी कम है तो उसे सरकार कर्ज लेकर पाटती है, यह राजकोषीय घाटे को पाटने के लिए किया जाता है, तो ये अर्थव्यवस्था के लिए एक शुभ संकेत है.

इसे भी पढ़ें- योगी सरकार का बड़ा फैसला, रिटायरमेंट के 3 दिन के अंदर ही कर्मचारियों के खाते में आएंगे पैसे

एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि उत्तर प्रदेश एफआरबीएम एक्ट है उसमें राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3 फीसदी बनाए रखने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. योगी सरकार ने इस बात का प्रयास कर इसको 2.97 पर रखकर राजकोषीय दक्षता का परिचय दिया है. मेरे कहने का आशय यह है कि सरकार का ऋण बढ़ रहा है, लेकिन बढ़े हुए ऋण
का इस्तेमाल सरकार राजकोषीय प्रवीणता के आधार पर उन कार्यों के लिए कर रही है, जो सरकार की सामाजिक प्राथमिकताएं हैं. विकास कार्य समाज के आर्थिक विकास के लिए जरूरी है, अवस्थापना सुविधाओं में यह खर्च किया जा रहा है. कोरोना संकट के चलते बड़ा भार राजकोषीय भार अर्थव्यवस्था पर पड़ा है, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने 5 सालों में जो राजकोषीय प्रबंधन किया है वह उल्लेखनीय है. वित्त आयोग और एफआरबीएम एक्ट के मानकों के अनुरूप है.


इस तरह कर्ज वापस करती है सरकारः राज्य सरकार के ऊपर जो कर्ज का बोझ है और इस कर्ज को किस प्रकार से सरकार वापस करती है. इसको लेकर राजनीतिक विश्लेषक वरिष्ठ अर्थशास्त्री प्रोफेसर एपी तिवारी कहते हैं कि कर्ज का जो पुर्नभुगतान किया जाता है या कर्ज की वापसी की जाती है तो स्वाभाविक एक ऐसी स्थिति है कि सरकार को कर एवं करेत्तर स्रोतों से जो आय प्राप्त होती है उससे की जाती है. जहां तक कर राजस्व का सवाल है तो उत्तर प्रदेश का कर राजस्व कोरोना संकट के बावजूद बेहतरी को प्रदर्शित कर रहा है. कर राजस्व के माध्यम से कर्ज वापस किया जाता है. दूसरी बात जो यूजर चार्जर लिए जाते हैं जो सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम प्रबंधित किए जाते हैं. उनसे जो इनकम होती है, उसके माध्यम से कर्ज वापस किया जाता है. सरकार यदि राजकोषीय प्रवीणता का परिचय देती है तो कम खर्च से उसी कार्य को करती है. कम खर्च करने से जो बचत होती है और उससे मिलने वाली आय से कर्ज वापस करती है.

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एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि जहां तक ऋण की वापसी का सवाल है सरकार ऋण का इस्तेमाल उन परियोजनाओं पर करती है, जिससे सरकार को लाभ प्राप्त होता है, तो उससे कर्ज की वापसी करती है. कहते हैं कि पिछले 5 सालों में जो आर्थिक परिदृश्य हैं उत्तर प्रदेश के विकासगामी खर्च बढ़ रहे हैं, पूंजीगत खर्च बढ़ रहे हैं तो यह शुभ संकेत है. सरकार ऐसी जगह पूंजी को निवेश कर रही है जहां से उसे उपार्जन प्राप्त हो रहा है और बड़े उपार्जन के जरिए ऋण की वापसी कर रही है.

Last Updated : Apr 29, 2022, 9:23 PM IST
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