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गोवत्स द्वादशी पर हुई गाय की पूजा, जानें क्या है पौराणिक महत्व - गोवत्स द्वादशी पौराणिक कथा

गोवत्स द्वादशी त्योहार को बछ बारस और वसु बारस के नाम से भी जानते हैं. यह त्योहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन गाय और बछड़े की पूजा की जाती है. मान्यता है कि गोवत्स द्वादशी के दिन गाय-बछड़े की पूजा करने से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं.

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गोवत्स द्वादशी पर हुई गाय की पूजा.
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Published : Nov 13, 2020, 12:01 PM IST

लखनऊ : गाय-बछड़ों की पूजा का त्योहार गोवत्स द्वादशी कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है. गुरुवार को भक्तों ने श्रद्धा भाव से गाय और बछड़े की पूजा कर इस पर्व की मनाया.

आज के दिन नहीं ग्रहण किये जाते दूध और तेल से बने पदार्थ

धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार, इस तिथि में मान्यता है कि एक समय भोजन किया जाता है और गाय के दूध और तेल से बने पदार्थ ग्रहण नहीं किये जाते हैं. इसके अलावा तवे पर पकाया भोजन भी करना वर्जित है. जमीन पर सोने को कहा गया है. आज के दिन गाय जब सूर्यास्त के समय वापस आती हैं तो उनको हरा चारा खिलाकर पूजा और सेवा करनी चाहिए.

ये है पौराणिक कथा

सतयुग की बात है महर्षि भृगु के आश्रम में भगवान शंकर के दर्शन की अभिलाषा में करोड़ों मुनिगण तपस्या कर रहे थे. एक दिन भगवान शंकर उन ब्राह्मणों को दर्शन देने के लिए बूढ़े ब्राह्मण का वेश रखकर वहां आये. उनके साथ गोमाता के रूप में माता जगदम्बा भी आईं. ब्राह्मण बने भगवान शंकर ने भृगु मुनि से कहा, मैं स्नान कर जम्बू क्षेत्र चला जाऊंगा, दो दिन बाद लौटूंगा, तब तक आप इस गाय की रक्षा करें. इसके बाद भगवान शिव वहां से चले गए और फिर एक व्याघ्र के रूप में प्रकट होकर गाय-बछडे़ को डराने लगे. गाय डर से कांपने लगी. तब मुनियों ने भयंकर शब्द करने वाले घंटा बजाना शुरू किया, जिससे व्याघ्र डरकर भाग गया. फिर भगवान शंकर प्रकट हुए और माता भी गो रूप त्याग कर अपने असली स्वरूप में प्रकट हुईं. दोनों ने मुनियों को दर्शन दिये. उस दिन कृष्ण पक्ष की द्वादशी थी.

लखनऊ : गाय-बछड़ों की पूजा का त्योहार गोवत्स द्वादशी कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है. गुरुवार को भक्तों ने श्रद्धा भाव से गाय और बछड़े की पूजा कर इस पर्व की मनाया.

आज के दिन नहीं ग्रहण किये जाते दूध और तेल से बने पदार्थ

धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार, इस तिथि में मान्यता है कि एक समय भोजन किया जाता है और गाय के दूध और तेल से बने पदार्थ ग्रहण नहीं किये जाते हैं. इसके अलावा तवे पर पकाया भोजन भी करना वर्जित है. जमीन पर सोने को कहा गया है. आज के दिन गाय जब सूर्यास्त के समय वापस आती हैं तो उनको हरा चारा खिलाकर पूजा और सेवा करनी चाहिए.

ये है पौराणिक कथा

सतयुग की बात है महर्षि भृगु के आश्रम में भगवान शंकर के दर्शन की अभिलाषा में करोड़ों मुनिगण तपस्या कर रहे थे. एक दिन भगवान शंकर उन ब्राह्मणों को दर्शन देने के लिए बूढ़े ब्राह्मण का वेश रखकर वहां आये. उनके साथ गोमाता के रूप में माता जगदम्बा भी आईं. ब्राह्मण बने भगवान शंकर ने भृगु मुनि से कहा, मैं स्नान कर जम्बू क्षेत्र चला जाऊंगा, दो दिन बाद लौटूंगा, तब तक आप इस गाय की रक्षा करें. इसके बाद भगवान शिव वहां से चले गए और फिर एक व्याघ्र के रूप में प्रकट होकर गाय-बछडे़ को डराने लगे. गाय डर से कांपने लगी. तब मुनियों ने भयंकर शब्द करने वाले घंटा बजाना शुरू किया, जिससे व्याघ्र डरकर भाग गया. फिर भगवान शंकर प्रकट हुए और माता भी गो रूप त्याग कर अपने असली स्वरूप में प्रकट हुईं. दोनों ने मुनियों को दर्शन दिये. उस दिन कृष्ण पक्ष की द्वादशी थी.

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