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वन निगम के सहायक लेखाकार को 4 साल की सजा, रिश्वत लेते हुए थे गिरफ्तार

राजधानी लखनऊ में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के विशेष जज विनय कुमार सिंह ने उत्तर प्रदेश वन निगम के तत्कालीन सहायक लेखाकार मुकेश कुमार निगम को रिश्वत के एक मामले में दोष सिद्ध करते हुए चार साल की कारावास की सजा सुनाई है. कोर्ट ने अभियुक्त पर 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है.

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम
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Published : Mar 19, 2021, 9:47 PM IST

लखनऊ: भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के विशेष जज विनय कुमार सिंह ने उत्तर प्रदेश वन निगम के तत्कालीन सहायक लेखाकार मुकेश कुमार निगम को रिश्वत के एक मामले में दोष सिद्ध करते हुए चार साल की कारावास की सजा सुनाई है. कोर्ट ने अभियुक्त पर 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है. अभियुक्त पर बिल पास करने के एवज में 10 हजार रुपये की रिश्वत लेने का आरोप था.

सरकारी वकील अभय त्रिपाठी के मुताबिक अभियुक्त अपने ही विभाग के एक कर्मचारी का विभागीय बिल पास करने के एवज में 60 हजार रुपये की रिश्वत मांग रहा था. दिनांक 14 सितंबर 2015 को अभियुक्त के खिलाफ वन निगम के लॉगिंग सहायक जय सिंह ने शिकायत दर्ज कराई थी. वादी ने विभाग में दो लाख 61 हजार 201 रुपये का बिल जमा किया था, लेकिन अभियुक्त आला अधिकारियों के नाम पर उससे रिश्वत के तौर पर 60 हजार रुपये की मांग कर रहा था.

इसे भी पढ़ें:- स्मारक घोटाला मामले में चार्जशीट खारिज करने से हाईकोर्ट का इनकार

वादी द्वारा मोलभाव करने के बाद 10 हजार रुपये में बिल पास करने के लिए मान गया. 16 सितंबर 2015 को विजिलेंस की टीम ने अभियुक्त को रिश्वत की रकम के साथ रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया. विवेचना के बाद अभियुक्त के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं में आरोप पत्र दाखिल किया गया. अभियुक्त द्वारा आला अधिकारियों के इशारे पर खुद को झूठा फंसाने की दलील दी गई, जिसे कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया.

लखनऊ: भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के विशेष जज विनय कुमार सिंह ने उत्तर प्रदेश वन निगम के तत्कालीन सहायक लेखाकार मुकेश कुमार निगम को रिश्वत के एक मामले में दोष सिद्ध करते हुए चार साल की कारावास की सजा सुनाई है. कोर्ट ने अभियुक्त पर 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है. अभियुक्त पर बिल पास करने के एवज में 10 हजार रुपये की रिश्वत लेने का आरोप था.

सरकारी वकील अभय त्रिपाठी के मुताबिक अभियुक्त अपने ही विभाग के एक कर्मचारी का विभागीय बिल पास करने के एवज में 60 हजार रुपये की रिश्वत मांग रहा था. दिनांक 14 सितंबर 2015 को अभियुक्त के खिलाफ वन निगम के लॉगिंग सहायक जय सिंह ने शिकायत दर्ज कराई थी. वादी ने विभाग में दो लाख 61 हजार 201 रुपये का बिल जमा किया था, लेकिन अभियुक्त आला अधिकारियों के नाम पर उससे रिश्वत के तौर पर 60 हजार रुपये की मांग कर रहा था.

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वादी द्वारा मोलभाव करने के बाद 10 हजार रुपये में बिल पास करने के लिए मान गया. 16 सितंबर 2015 को विजिलेंस की टीम ने अभियुक्त को रिश्वत की रकम के साथ रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया. विवेचना के बाद अभियुक्त के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं में आरोप पत्र दाखिल किया गया. अभियुक्त द्वारा आला अधिकारियों के इशारे पर खुद को झूठा फंसाने की दलील दी गई, जिसे कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया.

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