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भ्रष्टाचार के मामले में मसूद अख्तर की जमानत अर्जी कोर्ट ने की खारिज

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के विशेष जज रमाकान्त प्रसाद ने करोड़ों रुपये के गबन के मामले में निरुद्ध उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक वित्त एवं विकास निगम के तत्कालीन महाप्रबंधक वित्त व लेखा मसूद अख्तर की जमानत अर्जी खारिज कर दी है.

मसूद अख्तर की जमानत अर्जी कोर्ट ने की खारिज
मसूद अख्तर की जमानत अर्जी कोर्ट ने की खारिज
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Published : Nov 1, 2021, 10:51 PM IST

लखनऊ : भ्रष्टाचार के एक मामले में कोर्ट ने सख्त रुख दिखाते हुए अभियुक्त की जमानत अर्जी को खारिज कर दिया है. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के विशेष जज रमाकान्त प्रसाद ने करोड़ों रुपये के गबन के इस मामले में निरुद्ध उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक वित्त एवं विकास निगम के तत्कालीन महाप्रबंधक वित्त व लेखा मसूद अख्तर की जमानत अर्जी खारिज कर दी है.


जमानत अर्जी खारिज करने के अपने आदेश में कोर्ट ने कहा है कि अभियुक्त के इस अपराध से केंद्र और राज्य सरकार को भारी आर्थिक क्षति हुई है. अभियुक्त ने एक बड़े पद पर रहते हुए प्रथम दृष्टया संगीन अपराध किया है. वर्ष 2007 में इस मामले की एफआईआर निगम के निदेशक अब्दुल वाहिद ने थाना हजरतगंज में दर्ज करायी थी.

सरकारी वकील अभितेष मिश्रा के मुताबिक वर्ष 1997 से 2014 तक मुल्जिम निगम में महाप्रबंधक वित एवं लेखा के पद पर तैनात था. हालांकि आर्थिक गड़बड़ियां मिलने के बाद अभियुक्त को बर्खास्त कर दिया गया था. पूर्व में अभियुक्त लेखाधिकारी के पद पर तैनात था. इसके द्वारा केंद्र व राज्य सरकार से प्राप्त करीब 72 करोड़ रुपये की धनराशि में सिर्फ 13 करोड़ रुपये का ऋण वितरित किया गया. जांच के दौरान 13 करोड़ रुपये के ऋण वितरण का ही साक्ष्य उपलब्ध कराया जा सका. कई बार मौका दिये जाने के बावजूद गबन किये गये शेष 58 करोड़ रुपये की धनराशि के वितरण का कोई प्रमाण वह नहीं दे सका.

इसे भी पढ़ें - हाईकोर्ट ने लगाई गायत्री प्रसाद प्रजापति की जमानत पर रोक, राज्य सरकार की याचिका पर दिया आदेश

लखनऊ : भ्रष्टाचार के एक मामले में कोर्ट ने सख्त रुख दिखाते हुए अभियुक्त की जमानत अर्जी को खारिज कर दिया है. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के विशेष जज रमाकान्त प्रसाद ने करोड़ों रुपये के गबन के इस मामले में निरुद्ध उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक वित्त एवं विकास निगम के तत्कालीन महाप्रबंधक वित्त व लेखा मसूद अख्तर की जमानत अर्जी खारिज कर दी है.


जमानत अर्जी खारिज करने के अपने आदेश में कोर्ट ने कहा है कि अभियुक्त के इस अपराध से केंद्र और राज्य सरकार को भारी आर्थिक क्षति हुई है. अभियुक्त ने एक बड़े पद पर रहते हुए प्रथम दृष्टया संगीन अपराध किया है. वर्ष 2007 में इस मामले की एफआईआर निगम के निदेशक अब्दुल वाहिद ने थाना हजरतगंज में दर्ज करायी थी.

सरकारी वकील अभितेष मिश्रा के मुताबिक वर्ष 1997 से 2014 तक मुल्जिम निगम में महाप्रबंधक वित एवं लेखा के पद पर तैनात था. हालांकि आर्थिक गड़बड़ियां मिलने के बाद अभियुक्त को बर्खास्त कर दिया गया था. पूर्व में अभियुक्त लेखाधिकारी के पद पर तैनात था. इसके द्वारा केंद्र व राज्य सरकार से प्राप्त करीब 72 करोड़ रुपये की धनराशि में सिर्फ 13 करोड़ रुपये का ऋण वितरित किया गया. जांच के दौरान 13 करोड़ रुपये के ऋण वितरण का ही साक्ष्य उपलब्ध कराया जा सका. कई बार मौका दिये जाने के बावजूद गबन किये गये शेष 58 करोड़ रुपये की धनराशि के वितरण का कोई प्रमाण वह नहीं दे सका.

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