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स्मारकों में तैनात कर्मचारियों के बराबर भी नहीं आ रहे दर्शक, हर महीने के वेतन पर खर्च हो रहे करोड़ों

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Published : Jan 6, 2023, 2:38 PM IST

बहुजन समाज पार्टी की सरकार में राजधानी लखनऊ और नोएडा समेत कई शहरों में स्मारक बनाए गए थे. स्मारकों की देखरेख, मरम्मत, सुरक्षा आदि के बड़ी संख्या में कर्मचारियों की भर्ती भी की गई. कई स्मारकों में घूमने के लिए टिकट लगाए गए, लेकिन अब हालात ये हैं कि यहां तैनात कर्मचारियों के बराबर दर्शक नहीं आ रहे हैं.

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देखें पूरी खबर.

लखनऊ : बसपा काल के स्मारकों में करीब 5300 कर्मचारी तैनात हैं, लेकिन खास बात यह है कि अधिकांश दिनों में इन स्मारकों में 5000 दर्शक भी नहीं आते. यही नहीं यहां के कर्मचारियों के मासिक वेतन से कहीं कम टिकटों की बिक्री है. लगभग छह हजार करोड़ रुपये की लागत से वर्ष 2010 में बनाए गए स्मारकों की ढंग से मार्केटिंग ना होने की वजह से यहां दर्शकों की संख्या कम होती जा रही है. जब ये स्मारक बने थे तब देशभर में इनकी चर्चा थी, लेकिन कुछ खास दिनों को छोड़कर यहां दर्शकों की संख्या बहुत कम होती जा रही है.

बहुजन समाज पार्टी के कार्यकाल में बने स्मारक.
बहुजन समाज पार्टी के कार्यकाल में बने स्मारक.

बता दें, बहुजन समाज पार्टी के कार्यकाल में करीब 60 हजार करोड़ की लागत से यह स्मारक लखनऊ और नोएडा में बनाए गए थे. लखनऊ में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल, भीमराव अंबेडकर पति के स्थल डॉक्टर भीमराव अंबेडकर गोमती उद्यान, मान्यवर कांशीराम स्मारक स्थल, मान्यवर कांशीराम इको गार्डन, बौद्धविहार शांति उपवन और नोएडा में दलित चेतना स्मारक का निर्माण किया गया था. वर्ष 2011 में जब यह स्मारक खुले उसके बाद 5300 कर्मचारियों की नियुक्ति की गई थी. इन कर्मचारियों का आज का वेतन महीने में लगभग तीन करोड़ रुपये है. मगर स्मारकों की आय महीने में 15 लाख रुपये भी नहीं हो पा रही है. नए वर्ष त्योहारों और छुट्टियों के दिनों को छोड़कर आम तौर से स्मारकों में सन्नाटा रहता है. केवल भीमराव आंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल में ही थोड़ा आकर्षण दर्शकों का बना हुआ है. बाकी सभी जगह इक्का-दुक्का दर्शक ही पहुंचते हैं. लखनऊ विकास प्राधिकरण की ओर से स्मारकों के विकास के लिए लगभग हर माह कुछ ना कुछ नया विकास किया जाता है. हालांकि इसका कोई खास असर नहीं हो रहा है. पिछले दिनों क्रिसमस और नए वर्ष के अवसर पर सामाजिक परिवर्तन स्थल में भारी भीड़ उमड़ी थी. इसके बाद एक बार फिर सन्नाटा छा चुका है.

बहुजन समाज पार्टी के कार्यकाल में बने स्मारक.
बहुजन समाज पार्टी के कार्यकाल में बने स्मारक.

गर्मी में लोग आना पसंद नहीं करते : गर्मी के मौसम में यह स्मारक दर्शकों से पूरी तरह से खाली हो जाते हैं. दरअसल यहां हरियाली नाम मात्र की है. गर्मी के दिनों में पत्थरों से निकलने वाली आंच की वजह से यहां तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है. इसके बाद में सुबह और शाम के अलावा यहां तक आते ही नहीं है. इस बात की आलोचना लगातार की जाती रही है कि आखिर इन स्मारकों में हरियाली क्यों नहीं है. बहरहाल बसपा की सरकार के बाद दो सरकारें बदलने के बावजूद हरियाली के इंतजाम यहां नहीं किए गए.

बहुजन समाज पार्टी के कार्यकाल में बने स्मारक.
बहुजन समाज पार्टी के कार्यकाल में बने स्मारक.

इस बारे में लखनऊ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष और स्मारक संरक्षण समिति के पदेन सचिव इंद्रमणि त्रिपाठी का कहना है कि निश्चित तौर पर हम इस मार्ग को और अधिक खूबसूरत बनाने और दर्शकों को आकर्षित करने के प्रयास कर रहे हैं. आने वाले दिनों में हमारी कुछ नई कोशिश की होंगी. जिससे यहां अधिक दर्शक आएंगे. इसके अलावा जहां भी हम को भूमि उपलब्ध होगी हरियाली का इंतजाम भी स्मारकों में जरूर किया जाएगा.

यह भी पढ़ें : भारत सीरीज दे रही परिवहन विभाग को टेंशन, सरकार को हो रहा इतने टैक्स का नुकसान

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लखनऊ : बसपा काल के स्मारकों में करीब 5300 कर्मचारी तैनात हैं, लेकिन खास बात यह है कि अधिकांश दिनों में इन स्मारकों में 5000 दर्शक भी नहीं आते. यही नहीं यहां के कर्मचारियों के मासिक वेतन से कहीं कम टिकटों की बिक्री है. लगभग छह हजार करोड़ रुपये की लागत से वर्ष 2010 में बनाए गए स्मारकों की ढंग से मार्केटिंग ना होने की वजह से यहां दर्शकों की संख्या कम होती जा रही है. जब ये स्मारक बने थे तब देशभर में इनकी चर्चा थी, लेकिन कुछ खास दिनों को छोड़कर यहां दर्शकों की संख्या बहुत कम होती जा रही है.

बहुजन समाज पार्टी के कार्यकाल में बने स्मारक.
बहुजन समाज पार्टी के कार्यकाल में बने स्मारक.

बता दें, बहुजन समाज पार्टी के कार्यकाल में करीब 60 हजार करोड़ की लागत से यह स्मारक लखनऊ और नोएडा में बनाए गए थे. लखनऊ में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल, भीमराव अंबेडकर पति के स्थल डॉक्टर भीमराव अंबेडकर गोमती उद्यान, मान्यवर कांशीराम स्मारक स्थल, मान्यवर कांशीराम इको गार्डन, बौद्धविहार शांति उपवन और नोएडा में दलित चेतना स्मारक का निर्माण किया गया था. वर्ष 2011 में जब यह स्मारक खुले उसके बाद 5300 कर्मचारियों की नियुक्ति की गई थी. इन कर्मचारियों का आज का वेतन महीने में लगभग तीन करोड़ रुपये है. मगर स्मारकों की आय महीने में 15 लाख रुपये भी नहीं हो पा रही है. नए वर्ष त्योहारों और छुट्टियों के दिनों को छोड़कर आम तौर से स्मारकों में सन्नाटा रहता है. केवल भीमराव आंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल में ही थोड़ा आकर्षण दर्शकों का बना हुआ है. बाकी सभी जगह इक्का-दुक्का दर्शक ही पहुंचते हैं. लखनऊ विकास प्राधिकरण की ओर से स्मारकों के विकास के लिए लगभग हर माह कुछ ना कुछ नया विकास किया जाता है. हालांकि इसका कोई खास असर नहीं हो रहा है. पिछले दिनों क्रिसमस और नए वर्ष के अवसर पर सामाजिक परिवर्तन स्थल में भारी भीड़ उमड़ी थी. इसके बाद एक बार फिर सन्नाटा छा चुका है.

बहुजन समाज पार्टी के कार्यकाल में बने स्मारक.
बहुजन समाज पार्टी के कार्यकाल में बने स्मारक.

गर्मी में लोग आना पसंद नहीं करते : गर्मी के मौसम में यह स्मारक दर्शकों से पूरी तरह से खाली हो जाते हैं. दरअसल यहां हरियाली नाम मात्र की है. गर्मी के दिनों में पत्थरों से निकलने वाली आंच की वजह से यहां तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है. इसके बाद में सुबह और शाम के अलावा यहां तक आते ही नहीं है. इस बात की आलोचना लगातार की जाती रही है कि आखिर इन स्मारकों में हरियाली क्यों नहीं है. बहरहाल बसपा की सरकार के बाद दो सरकारें बदलने के बावजूद हरियाली के इंतजाम यहां नहीं किए गए.

बहुजन समाज पार्टी के कार्यकाल में बने स्मारक.
बहुजन समाज पार्टी के कार्यकाल में बने स्मारक.

इस बारे में लखनऊ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष और स्मारक संरक्षण समिति के पदेन सचिव इंद्रमणि त्रिपाठी का कहना है कि निश्चित तौर पर हम इस मार्ग को और अधिक खूबसूरत बनाने और दर्शकों को आकर्षित करने के प्रयास कर रहे हैं. आने वाले दिनों में हमारी कुछ नई कोशिश की होंगी. जिससे यहां अधिक दर्शक आएंगे. इसके अलावा जहां भी हम को भूमि उपलब्ध होगी हरियाली का इंतजाम भी स्मारकों में जरूर किया जाएगा.

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