लखनऊ : यूपी के गाजीपुर जिले के बेसिक शिक्षा अधिकारी श्रवण कुमार गुप्ता को सोमवार को निलंबित कर दिया गया. आरोप है कि गरीब बच्चों को मिलने वाली छात्रवृत्ति के पैसे का उन्होंने गबन किया. शिक्षकों के स्थानांतरण समायोजन में खेल किया गया. यहां तक कि शिक्षकों को ब्लॉक पर ट्रेनिंग के दौरान दिए जाने वाले नाश्ते के पैसे में भी गड़बड़ी की गई. कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय में छात्राओं की कम उपस्थिति होने पर भी फर्जी तरीके से भुगतान किया गया. शिक्षा विभाग में यह पहला मामला नहीं है जब किसी अधिकारी ने योगी सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति को चुनौती दी.
ईटीवी भारत की पड़ताल में बेसिक शिक्षा और माध्यमिक विभाग से जुड़े कई नाम खुलकर सामने आए जिनके कारनामों ने विभाग को शर्मिंदा किया. विभाग के प्रारंभिक जांच में इन्हें दोषी भी पाया गया. निलंबन जैसी कार्रवाई की गई. हालांकि, इनमें से कुछ की विभाग में इतनी मजबूत पकड़ है कि ऊपर बैठे इनके आका तमाम गलतियों के बाद भी इन्हें माफ कर देते हैं. विभागीय जांच में आमतौर पर इन अधिकारियों को क्लीन चिट मिल जाती है. ऐसे ही कई अधिकारियों को लेकर ईटीवी भारत ने पड़ताल की है.
मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति के लिए मांगे 10 लाख रुपये
दिसंबर 2020 में औरैया के जिला विद्यालय निरीक्षक हृदय नारायण त्रिपाठी और उनके बाबू संतोष कुमार को निलंबित कर दिया गया. उन पर मृतक आश्रित कोटे में नौकरी देने के नाम पर पैसा मांगने के आरोप लगे. शिकायत है कि करीब 10 लाख रुपये की मांग की गई. रिश्वत लेने का ऑडियो वायरल होने के बाद पूरे विभाग में हड़कंप मचा. जांच में डीआईओएस की आवाज होने की भी पुष्टि हुई. आनन-फानन में इन पर कार्रवाई करते हुए निलंबित कर दिया.
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क्रिसमस पार्टी में खूब काटी गदर, हुए सस्पेंड
बेसिक शिक्षा विभाग में 2015 में हुआ एक केस आज भी क्रिसमस पार्टी के नाम से काफी चर्चित है. इस प्रकरण में यहां के मुख्य विकास अधिकारी केदारनाथ सिंह और जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी धर्मेंद्र सक्सेना को निलंबित कर दिया गया था. आरोप लगे कि इन दोनों अधिकारियों को गेस्ट हाउस में शराब पीकर अनैतिक कृत्य किए जाने का दोषी पाया गया है. बताया तो यह भी जा रहा है कि इस कार्यक्रम में कुछ लड़कियां भी बाहर से बुलाई गई थीं.
कार्यक्रम समाप्त होने के बाद क्लब में कुछ आपत्तिजनक सामान व दारू की खाली बोतलें मिली थीं. मामला उछलने के बाद धर्मेंद्र सक्सेना को निलंबित किया गया. हालांकि बाद में विभागीय जांच में उन्हें क्लीन चिट देते हुए हाल ही में फिर से जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के पद पर तैनाती दी गई है.
रिश्तेदारों को बना दिया मास्टर, पैसे के लिए रेवड़ी की तरह बाटी नौकरियां
लखनऊ के पूर्व जिला विद्यालय निरीक्षक द्वितीय धीरेंद्र नाथ सिंह को सस्पेंड किया गया. वह यहां बालिका विद्यालय देखते थे. अपने छोटे से कार्यकाल में उन्होंने लखनऊ में बंपर नियुक्तियां की. ना कोई नियम ना कोई मानक. अपने रिश्तेदारों से लेकर जानने वालों तक को रेवड़ी की तरह नौकरियां बांटी. यह नियुक्तियां सिर्फ इसलिए हो पाई कि कई नाम शासन और प्रशासन में बैठे बड़े अधिकारियों और नेताओं के करीबियों के भी शामिल हैं.
यूनिफार्म ठेकेदार से रिश्वत लेते रंगे हाथों धरी गई यह अधिकारी
कैराना ब्लाक की खंड शिक्षा अधिकारी राजलक्ष्मी पांडेय को को सतर्कता अधिष्ठान मेरठ की टीम ने नौ दिन पहले कपड़ा ठेकेदार से 50 हजार रुपये की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार किया. कैराना ब्लाक के करीब 30 विद्यालयों में बच्चों की यूनिफार्म का कपड़ा सप्लाई करने वाले ठेकेदार सत्यपाल की शिकायत पर यह कार्रवाई की गई थी. ठेकेदार ने आरोप लगाया था कि बीईओ उनसे कपड़ा सप्लाई का भुगतान करने की एवज में 100 रुपये प्रति बच्चे के हिसाब से रिश्वत मांग रही थी.
9 साल में मनमाने ढंग से किए शिक्षकों के बंपर ट्रांसफर
सचिव बेसिक शिक्षा परिषद प्रयागराज के पद पर संजय सिन्हा ने करीब 9 साल गुजारे. इस दौरान उन्होंने खूब तबादले किए. इन तबादलों की भनक संबंधित जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को भी नहीं लगने दी गई. यह सभी तबादले शिक्षकों के थे. प्रदेश सरकार ने बीते मार्च में ही इन्हें निदेशक साक्षरता, वैकल्पिक शिक्षा उर्दू एवं पांच भाषाएं के पद से निलंबित कर दिया. आरोप तो यह भी है कि बहराइच, लखीमपुर खीरी, फतेहपुर, इलाहाबाद, अंबेडकरनगर व अन्य कई जिलों में लगातार अनुपस्थित रहने या अन्य कारण से बर्खास्त शिक्षकों से घूस लेकर नियमावली के विपरीत फिर से सुनवाई कर उन्हें सेवा में रहने के लिए संबंधित बीएसए को आदेश तक दे दिए गए.
शासन की अनुमति प्राप्त किये बिना अंबेडकरनगर, सुलतानपुर, अमेठी, लखीमपुर खीरी, आजमगढ़, फतेहपुर, मुजफ्फरनगर, उन्नाव आदि जिलों में पांच साल से अधिक समय बीतने पर मृतक आश्रितों को सीधे अपने स्तर से नियुक्ति प्रदान करने की शिकायत भी उनके खिलाफ मिली थी. सुलतानपुर में रिक्ति शून्य होने पर भी 500 से अधिक शिक्षकों का अन्य जिलों से वहां स्थानांतरण करने का आरोप भी उन पर था.
11 महीने में कर दी 103 पदों पर नियुक्तियां
दिसंबर 2018 में जौनपुर में 11 महीने के अंदर 103 पदों पर नियुक्तियों किए जाने का खुलासा हुआ. यह नियुक्तियां तत्कालीन जिला विद्यालय निरीक्षक उमेश शुक्ला ने की थी. माध्यमिक शिक्षा अधिनियम-1921 की धारा-16ड(11) में प्राविधानित नियमों का पालन किए बिना सहायक अध्यापकों की नियुक्ति का अनुमोदन करने और 11 माह की बजाए पद का दुरुपयोग करते हुए नौकरी बरकरार रखने के आरोप में राज्यपाल के आदेश पर उमेश शुक्ला को निलंबित कर माध्यमिक शिक्षा निदेशक कार्यालय लखनऊ से संबद्ध किया गया.
एडेड जूनियर हाई स्कूलों में कर डाली 85 नियुक्तियां
आजमगढ़ में अशासकीय सहायता प्राप्त जूनियर हाईस्कूलों में 20 प्रधानाध्यापकों, 65 अध्यापकों और सहायक अध्यापकों की नियुक्ति हुई थी. स्कूल प्रबंधकों के साथ मिलकर अपनों को नौकरियां बांटने के लिए सारा खेल किया गया. इसमें, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी जनपद के 20, अशासकीय सहायता प्राप्त जूनियर हाई स्कूलों में 20, प्रधानाध्यापकों के चयन का अनुमोदन, 34 अशासकीय सहायता प्राप्त जूनियर हाई स्कूलों में कला वर्ग व भाषा अध्यापक के पद पर नियुक्ति का बिना परीक्षण किये ही 45 अध्यापकों के चयन का अनुमोदन तथा 20 अशासकीय सहायता प्राप्त जूनियर हाई स्कूलों में 20 सहायक अध्यापकों के चयन का अनुमोदन नियम विरुद्ध करने का दोषी पाया गया था.
यह भाजपा सरकार के समय में ही किया गया. मामले के खुलासे के बाद तत्कालीन बीएसए देवेंद्र कुमार पांडेय और पटल सहायक संजीव कुमार को दोषी मानते हुए निलंबित कर दिया गया. तत्कालीन खंड शिक्षाधिकारी बिलरियागंज महेंद्र प्रसाद को भी निलंबित कर दिया गया.