लखनऊ: केजीएमयू की पैथोलॉजी विभाग में हुए शोध से अब कोरोना मरीजों का इलाज आसान होगा. इससे वायरस की चपेट में आने वाले मरीजों का सटीक इलाज हो सकेगा. कोरोना संक्रमण के दौरान कौन सा मरीज गंभीर होगा. अब इसका पता खून की जांच से ही चल जाएगा और हालत गंभीर होने की सूरत में मरीज को आईसीयू में शिफ्ट किया जा सकेगा.
100 मरीजों पर किया शोध: केजीएमयू पैथोलॉजी विभाग की डॉ. रश्मि कुशवाहा ने संस्थान में भर्ती 100 कोरोना मरीजों पर रिसर्च किया है. इसमें से 50 फीसद मरीज आईसीयू व 50 फीसद मरीज आइसोलेशन वार्ड के रहे. वहीं, मरीजों की उम्र 18 से 70 वर्ष बताई गई. डॉ. रश्मि के मुताबिक आईसीयू व वार्ड में भर्ती कोरोना मरीजों की खून की जांच कराई जाती है. इसमें खून की सामान्य जांच कम्प्लीट ब्लड काउंट (सीबीसी) भी होती है. इन सैम्पल के टेस्ट में आईसीयू में भर्ती मरीजों में लिम्फोसाइट कम पाया गया. वहीं, न्यूट्रोफिल्स बढ़ा मिला. इन दोनों का मानक 7.73 तय किया गया था. हालांकि, हालात बिगड़ने की स्थिति में मरीज को आईसीयू में भर्ती की जरूरत पड़ सकती है. इसके अलावा प्लेटलेट्स लिम्फोसाइट का लेवल (पीएलआर) बढ़ना भी घातक है.
उन्होंने बताया कि इसका सामान्य स्तर 126.73 है. आईसीयू मरीज में न्यूट्रोफिल्स-लिम्फोसाइट का लेवल (एनएलआर) घट जाता है. चिकित्सा विज्ञान में इसे लिम्फोसाइटोपीनिया कहते हैं. डॉ. रश्मि के मुताबिक यदि कोरोना संक्रमित में ऑक्सीजन का लेवल ठीक है. सांस लेने में दिक्कत नहीं हो रही है. वहीं एनएलआर का स्तर गड़बड़ आ रहा है तो सतर्क हो जाना चाहिए. कारण, इससे कोरोना संक्रमित की अचानक तबीयत गंभीर हो जाती है. यह शोध पत्र क्यूरियस मेडिकल जरनल में प्रकाशित हुआ है.
'सुपर इंफेक्शन' ले रहा जान: कोरोना से जूझ रहे मरीज सेकेंडरी इंफेक्शन की चपेट में आ रहे हैं. वह एकाएक बैक्टीरिया-फंगस की गिरफ्त में आ जाते हैं. साथ ही अंदर ही अंदर उनका पूरा शरीर संक्रमण की जद में आ जाता है. ऐसे में कम प्रतिरोधक क्षमता वाले मरीजों के लिए यह जानलेवा साबित हो जाता है. इसे 'सुपर इंफेक्शन' भी कहते हैं. सुपर इंफेक्शन की वजह से मरीज शॉक में जाने के साथ-साथ मल्टी ऑर्गन फेल्योर भी हो रहे हैं. ऐसे में आईसीयू में भर्ती मरीजों की समय-समय पर ब्लड मार्कर व कल्चर टेस्ट की जांच आवश्यक है.
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